Tuesday 14 February 2017

हसन मियां का वैलेंटाइन- कहानी


" का बात है आज कौनो ख़ास बात है? ई इत्ता भीड़ काहे है लल्लन की ठीहे पे?" हसन मिंया ने लल्लन फुलवाले की दुकान पर लगी भीड़ देख  बगल में बैठे रामआसरे को कोहनी मारते हुए पूछा।
"हमें ज्यादा तो नाही पता पर सुना है कि आज कौनो अंग्रेजी त्यौहार है " रामआसरे ने लापरवाही से कहा ।
"अंग्रेजी त्यौहार ? तब फूल काहे खरीद रहे हैं कि लरिका-लाइका( लड़का-लड़की)?" हसन मिंया ने फिर पूछा।
"हमको इतना तो नाही पता पर सुना है कि कौनो अंग्रेजी पीर बाबा रहे थे .... उन्ही से मन्नत मांगने को लइका -लरिका उन के नाम पर चढ़ाते हैं" रामआसरे ने सर खुजाते हुए गहन सोच के बाद कहा।
"अच्छा! त बहुत बड़का पीर बाबा रहे होंगे ... नाम का था ओकर? हसन मिंया की जिज्ञासा अब चरम पर थी।
"देखा है हसन भाई,हमहू तोहरे की तरह इंहा चौक पर बइठ के बढई गीरी क मजूरी करता हूँ.....अब हम्मे का पता ई ससुर कौन सा अंग्रेज पीर फ़कीर था जोके याद में लोग फूल देवत हैं.... अइसन करा की लल्लन से ही जाइके पूछ लियो"रामआसरे ने अपना पीछा छुड़ाते हुए कहा ।

रामआसरे की बात सुन हसन मिंया उदास हो गएँ,किन्तु अंग्रेज पीर बाबा के बारे में जिज्ञासा शांत न हुई ।जब उनसे रहा नहीं गया तो  बीड़ी पीने के बहाने उठे और लल्लन के ठीहे पर जा खड़े हुए।
थोड़ी इधर उधर की बात घुमाने पर असल मुद्दे पर आये ।
"आज बहुत बिक्री हैय रई है गुलाबन कि .... कौनो ख़ास बात है का ?" पोपले गालो को बीड़ी का सुट्टा खींच फुलाते हुए पूछा हसन मिंया ने।
"अरे हसन मिंया मत पूछा,आज एक अंग्रेज बाबा का जन्मदिन है " लल्लन ने फूलों को करीने से लगाते हुए कहा ।
"कौनो पहुंचे पीर रहे होंगे....का नाम था इनका?" हसन मिंया ने  फिर सवाल दागा।
"बहुत पहुंचे हुए पीर थे ,जेकर प्रताप अंग्रेजिस्तान से लेके इंहा अपने शहर तक रहा"लल्लन ने ज्ञान देने वाली मुद्रा में कहा ।
"अच्छा! जे बात है... जे अंग्रेज पीर बाबा को नाम का रहा? और कउन कउन मुराद पूरी करत हैं जे? ?" अब हसन मिंया अपनी मेन समस्या का समाधान चाह रहे थे लल्लन से।

"भईये हसन तुम पूछत हो तो बता ही देत हैं... बिनको  नाम रहो बाबा भैलनतेन शाह .... पहुंचे हुए औलिया थे....बिझड़े जोड़े मिलावत रहे वो सब लोगन क.... जो कोई किसी से प्यार -फ्यार करता उनके नाम का एकठो गुलाब बस चढ़ा देता अपने जोड़ा को  और बोल दे " हुप्पी भैलनतेन ढे"  उसका जोड़े के साथ जिंदगी भर का प्यार रहता है  .....बस बाकी तो   बाबा भैलनतेन शाह की कृपा" इतना समझा लल्लन ने दोनों हाथ ऐसे जोड़े की जैसे वह बाबा भैलनतेन शाह का आशीर्वाद ले रहा हो।

लल्लन की बात सुन हसन मियां की आँखों में चमक आ गई ,उन्होंने फटा फट बीड़ी फेंकी और जा के रामआसरे के साथ कुर्सी बनाने लग गएँ।

हसन मिंया की उम्र रही होगी 60 साल के करीब । पतला दुबला शरीर , बाल पके हुए हलकी दाढ़ी।
यूँ तो दो बेटे और तीन बेटियां थी हसन मिंया के पर सबकी शादी हो चुकी थी  सबसे छोटे बेटे की अभी शादी की थी, उनकी बेगम का नाम था शकीला जो लगभग 55साल की रही होगी।

हाथ के कारीगर थे इसलिए घर पर बैठना अच्छा न लगता था और रामआसरे के साथ सेठ मुनिराम के फर्नीचर की दुकान पर बढई गीरी करते इससे घर खर्च में हाथ भी बंटा देते वो।


शाम को जब छुट्टी हुई तो हसन मिंया ने सेठ मुनिराम से 100 रूपये एडवांस लिए और रामआसरे को बिना बताए चुप चाप 40 रूपये का एक गुलाब खरीद अपने लंच वाले झोले में डाल लिया ।

घर पहुँच के जल्दी जल्दी खाना खाया और फिर झूठ मूठ  सोने की तैयारी करने के बहाने अपने कमरे में आ लेट गएँ। अभी शकीला बेगम अपनी बहुओं के साथ रसोई में ही व्यस्त थी, हसन मिंया बैचेन हो बार बार दरवाजे से बाहर झांकते की शकीला बेगम कब आयेगी। इस चक्कर में उन्हें थोड़ी झुंझलाहट भी हो रही थी शकीला बेगम पर,पर क्या करें मामला चिल्लाने वाला नहीं था न सो चुप चाप इन्तेजार करते रहें।

तकरीबन डेढ़ घण्टे बाद शकीला बेगम कमरे में आई तो झट उनका हाथ खींच चारपाई पर बैठा दिया और  झोले से गुलाब निकाल शकीला बेगम को थमाते हुए बोले " हुप्पी भैलन तेन ...ढे" ।
किन्तु शकीला बेगम शकीला बेगम गुलाब का फूल देखते ही खुश होने की जगह बिदक गईं और गुस्से में बोली-"जे का लिआये? का करेंगे हम जाको? फिजूल खर्ची बहुत करने लगे हो इस उम्र में तुम....अरे आज दस रोज से ऊपर हो गया कहे की नई चप्पल ले लो अपनी ...पर  तुम....ई फूल ली आये ... का काम है इका हमारे लिए ? जाओ बकरियां को डाल दो.... बड़े आए फूल लेके "

हसन मिया ने शकीला बेगम की जली कटी सुनी तो सारा  उत्साह जैसे बर्फ में धंस गया हो । बड़ी मुश्किल से वो बोले-
" पर लल्लन बोल रहा था कि आज अंग्रेज पीर भैलनतेन शाह का उर्स है ,और अपने प्यार करने वाले जोड़े को गुलाब दिया जाता है ..... तबही हमउ  सोचे ..." कहते कहते चुप हो गएँ हसन मिंया।
"अरे पांच बच्चे पैदा कर दिए....तब नाही सोचे प्यार- फ्यार .... अब ई बुढ़ापे में बचकाना सूझ रहा है तुम्हे" कहते हुए फिर झाड़ लगाई शकीला बेगम ने ।

झाड़ सुन हसन मिंया बहुत उदास हुए और बाहर चलने लगे ताकी गुलाब बकरी को खिला सके।

अभी दरवाजे तक ही पहुंचे होंगे की शकीला बेगम ने आवाज लगाई, वापस आये तो शकीला बेगम ने उन्हें पकड़ लिया और मुंह पर जोरदार चुमम्बन लेते हुए बोली- " हैप्पी वैलेंटाइन डे" और इतना कह दुप्पटे से एक गुलाब निकाल के उन्हें पकड़ा दिया ।

हसन मिंया को तो जैसे समझ ही नहीं आया ,अचरज से भरे जैसे आसमान में उड़ रहे हों ।,आँखे फ़टी की फटी रह हैं.... मारे आस्चर्य के जैसे बेहोश होने वाले हों।
"अइसन कहा जाता है हैप्पी वैलेंटाइन डे" शकीला बेगम ने हँसते हुए कहा ।

दरवाजे के पीछे हसन मिंया की दोनों बहुएं मुस्कुरा रही थीं।

बस यंही तक थी कहानी....

5 comments:

  1. चलिए जवानी में ना सहीं बुढ़ापे में तो पता चल गया प्यार करने का भी कोईं दिन होता हैं। वैलेंटाइन डे।
    http://savanxxx.blogspot.in

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  2. आभार आदरणीया.... क्षमा किजिये विलम्ब से उत्तर के लिए

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