Monday 1 May 2017

अमेरिकी मजदूर दिवस और भारतीय सेवक

वर्णव्यवस्था धर्म में तथाकथित  तीनो उच्च वर्णो की सेवा करने का कर्तव्य सबसे निचले अर्थात शूद्र वर्ण के लिए निर्धारित किया गया है।
किसान, शिल्पी, दासों आदि को शूद्रों की श्रेणी में रखा गया है, व्यास स्मृति में एक लंबी सूची दी हुई है कि कौन से श्रमिक( कामगार) शूद्रों की श्रेणी में आते हैं।

मनुस्मृति कहती है कि शूद्र चाहे खरीदा हो या न खरीदा हो वह तीनो उच्च वर्णो का सेवक है ।

वर्ण व्यवस्था में अपने को सबसे शीर्ष पर बैठाने वाला यह जानता था कि वह नँगा नही घूम सकता कपडा तो पहनना ही होगा। जूता ,चप्पल तो पहनना ही होगा ।खाना खाने के लिए बर्तन की जरूरत तो होगी ही , यज्ञ के लिए घी की जरूरत तो होगी ही। घर भी चाहिए रहने के लिए, घर को साफ़ भी रखना होगा ,कपडे भी धोने ही होंगे ।

किन्तु, वह न तो पहनने के लिए जूते ही बना सकता था ,न कपडे, न बर्तन और न ही यज्ञ के लिए घी । न ही वह घर की सफाई कर सकता था,न मरे हुए पशु ही उठा सकता था न खेत में अन्न ही उगा सकता था ।हल की मुठिया तक पकड़ना उसने अपने लिए पाप घोषित किया हुआ था ।जीवन की  सब कामो के लिए स्वयं घोषित शीर्ष उच्च वर्ण को दूसरों पर निर्भर रहना होता था ,अगर वह जरूरत के लिए हर चीज ख़रीदे तो उसके लिए धन की जरूरत होती । धन बिना परिश्रम के नहीं कमाया जा सकता और परिश्रम को उसने शूद्रता घोषित किया हुआ था ।

तब उसने अपनी सभी जरूरतों के लिए 'दान व्यवस्था' लागू करवाई, दान केवल शीर्ष वर्ण को ही दिया जा सकता था श्रमिको को नही। श्रमिक तो बिना खरीदे गुलाम थे ।

कृष्ण तक कहते हैं कि सभी को अपने वर्णधर्म का पालन करना चाहिए यही उनका( ईश्वर) का बनाया नियम है ,शूद्र का वर्ण धर्म सेवा करना है।

शूद्रों को सेवा के लिए किसी तरह मेहनताना मिले ऐसा धार्मिक व्यवस्था नही थी। शूद्र को सेवा पिछले जन्म के 'पापो'के कारण करनी थी इसलिए उसे अपनी सभी सेवाये जैसे जूते, कपडे, अन्न, सफाई,बर्तन , घी आदि मुफ्त देनी थी । इस सेवा के बदले धर्मसूत्र कहता है कि सेवादारों को सवर्णो के उतरे कपडे , जूठन , टूटे बर्तन आदि ही मिलनी थी ।

सेवक धन रख के कंही सम्पन्न न हो जाए और वह तथाकथित उच्च वर्णो की सेवादारी से मुखर न हो जाए इसलिए मनु महाराज निर्देश देते हैं कि स्त्री के साथ सेवक भी धन नही रख सकते थे।

सब अमानवीय यातनाएं सहने के बाद भी सेवको(शूद्रों) ने कभी अपनी स्थिति के प्रति रोष क्यों नहीं प्रकट किया?क्या कारण रहा की सेवक वर्ग अपने शोषण के प्रति कोई आंदोलन नहीं खड़ा कर पाया ?

निश्चय ही इसका कारण धर्म रहा , धर्म की घुट्टी ऐसी पिला दी गई थी की शूद्र वर्ग सेवा करना  ही अपना कर्तव्य समझता रहा । उसे यह अहसास दिला दिया गया था कि वह जो सेवक(शूद्र) योनि मे पैदा हुआ है वह उसके पिछले जन्मों के पापो नतीजा है ,यदि वह इस जन्म में बिना न नुकार के सवर्णों की सेवा करता है तो अगले जन्म में वह भी सवर्ण बनेगा । सेवक स्वयं और बाल बच्चे समेत अपने मालिक का सेवक होता , काम का कोई घण्टा निर्धारित न था । 24 घण्टे मालिक की सेवा में उपस्थित रहना पड़ता था ,क्या पता कब मालिक उन्हें बुला लें!

अमेरिका में वर्णव्यवस्था नहीं थी न ही वँहा के सेवको को यह धर्म का यह भय था कि यदि इस जन्म में अपने मालिको से अपने अधिकारों की मांग रखेगा तो अगले जन्म में फिर सेवक बनेगा। इसलिए वँहा के सेवको(मजदूरों) में चेंतना का विकास हुआ और अपने शोषण के विरुद्ध उठ खड़े हुए ।
उन्होंने आंदोलन किया अपने हको को लेके ,अपने काम करने के घण्टे निर्धारित करवाये ।

सोचिये यदि अमेरिकी मजदूरों में अपने हकों को लेके चेंतना का विकास न हुआ होता और वह आंदोलन भारत न पहुंचता तो  भारतीय सेवक आज भी धर्म के उसी 24x7 के नियम पर काम कर रहे होते , उन्हें पता ही नही होता की काम करने के भी घण्टे निर्धारित होते हैं।

खैर, अपने मजदूर भाइयो को मज़दूर दिवस की हार्दिक बधाई....
फ़ोटो सभार गुगल






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