Wednesday, 31 August 2016

जानिए क्या है पाप पुण्य की अवधारणा



पाप और पुण्य  दो ऐसी धारणाये है जिन के आधार पर धर्म मजहब टिके होते है ।पाप पुण्य की अवधारणा समाज में हर एक को घुट्टी के समान बचपन से ही पिला दी जाती है जिनका असर अजीवन मानव मस्तिष्क में रहता है ।

जंहा दान, कर्मकांड, हवन, पूजा प्रार्थना , नमाज पढना , ईश्वर अल्लह को मानना पुन्य की श्रेणी में रखा जाता है वन्ही इसके विपरीत कार्यो को पाप कहा गया है। विभिन्न धर्मो में पाप की परिभाषा अपने अपने ढंग से की है यानि ऐसा कोई निश्चित पैमाना नहीं है की जिसमे ' पाप" शब्द सभी धर्मो पर एक साथ और एक रूप के अर्थ पर लागू हो।

एक कार्य किसी धर्म वाले के लिए पाप हो सकता है तो दुसरे धर्म वाले व्यक्ति के लिए वह कार्य पुन्य हो सकता है । जैसा की किसी धर्म में पशु हत्या करने पर पाप लगता है तो दुसरे धर्म वाले को पशु हत्या करते समय पाप नहीं लगता।
इसी प्रकार हिंसा करना पाप समझा जाता है परन्तु यह भी कहा गया है की ' वैदिक हिंसा हिंसा नहीं होती' यानि वह हिंसा पाप नहीं होती।

इसके आलावा आम बोलचाल में जो पाप की परिभाषा है वह है " जो कार्य अंतरात्मा की आवाज के विरुद्ध किया जाये वाही पाप है' पर इसके लिए समझना होगा की अंतरात्मा क्या है? बहुत हद तक बचपन के संस्कारो के आधार पर ही अंतरात्मा का विवेक निर्भर करता है।

जैसे यदि किसी को बचपन से ही पशु हत्या को जायज ठहराए जाने को अच्छा कार्य बताया जाए तो उसकी अंतरात्मा पशु हत्या को सही मानेगी परन्तु यदि किसी को बचपन से ऐसे संस्कार दिए जाए की पशु हत्या गलत है तो उसकी अंतरात्मा उसे गलत ही मानेगी।

एक उधारण और देखिये ,यदि किसी बच्चे को पैदा होते ही ऐसे बियावान स्थान पर रखा जाता है जन्हा उसे मानव समाज से दूर रखा जाये ,उसे किसी सामाजिक नियम के विषय में न बताया जाए । तो क्या वह समझ पायेगा की पाप क्या है या पुन्य क्या है? यदि किसी को अच्छे बुरे कार्य करने की भावना बचपन से ही न हो तो उसे कोई कार्य करने में हिचक महसूस होगी?
नहीं... इसी लिए यंहा अंतरात्मा की थ्योरी भी काम नहीं करती ।

पाप का अर्थ यदि केवल अनैतिक आचरण न करना है तो उस पर कोई आपत्ति नहीं , परन्तु ऐसा है नहीं । पाप का मतलब धर्मसम्मत आचरण न किया जाना ही निस्चित किया जाता है। धर्म गुरुओ ने जानबूझ कर ऐसी बाते धार्मिक पुस्तको में शामिल कर लिया है, जो बास्तव में नैतिक गुण हैं । ऐसी बातो को धार्मिक गुण गिनाने का उद्देश्य यही होता है की उनके नैतिक गुणों के साथ साथ धार्मिक आडम्बरो का भी पालन कराया जा सके जिससे उनकी रोजी रोटी चलती है। जो इन आडम्बरो और कर्मकांडो का पालन करता है उसे पुण्य कह के उसे संतुष्ट किया जाता है ताकि उसके स्वयं के लुटने का अहसास न हो।




Tuesday, 30 August 2016

तरुण सागर जी और जैन मत -



भारतीय दर्शनों को दो भागो में विभक्त किया जाता है, एक आस्तिक  और दूसरा अनीश्वरवाद( नास्तिक कह लीजिये सुविधा के लिए)
सीधे रूप से हम कह सकते एक वौदिक और दूसरा अवैदिक ।
आस्तिक ग्रन्थ वो जो वेदों का समर्थन करें अवैदिक या नास्तिक वे जो वेदों को न माने ।

बौद्ध, लोकायत , जैन ऐसे ही दर्शन माने गए हैं , अर्थात ब्राह्मण न इन्हें नास्तिक दर्शन में रखा है ।

बौद्ध और जैन धर्म में समानता यह है की दोनों ही ईश्वर को नहीं मानते , दोनों ही वेदों का खंडन कर देते हैं (हलाकि यह विषय अलग है की बुद्ध के समय वेद थे ही नहीं बल्कि बाद की रचना हैं) ।

जैन और बौद्ध दोनों पर्यायवाची शब्द है दोनों का अर्थ एक ही है , जैन शब्द जिन से बना है और बुद्ध बुद्धि से ।
जिन का अर्थ भी चेतना है और बुद्ध शब्द का भी ।

अमरकोश जैसे ग्रन्थ में बौद्धों और जैनियो को एक ही कहा गया है , वह कहता है की गौतम को दोनों ही मानते है ।दीपवंश जैसे प्राचीन बौद्ध साहित्य में शाक्य मुनि गोतम को अक्सर महावीर के नाम से ही संबोधित किया गया है , निश्चय ही उस समय बौद्ध और जैन एक ही धर्म रहा होगा ।
जैन मत के अनुसार जीव ही परमेश्वर हो जाता है ,वे तीर्थंकारो को ही मोक्ष प्राप्त परमेश्वर मानते हैं , अनादि परमेश्वर कोई नहीं ।

जैन मत के अनुसार -

1- जैसे  हम इस समय परमेश्वर को नहीं देखते इसलिए कोई सर्वज्ञ अनादि परमेश्वर प्रत्यक्ष नहीं । जब ईश्वर में  प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं तो अनुमान भी घट सकता है क्यों की एकदेश  प्रत्यक्ष के बिना अनुमान नहीं हो सकता ।

2- चित् और अचित् अर्थात चेतना और जड़ दो ही परमतत्व है और उन दोनों की विवेचना का नाम विवेक है , जो जो ग्रहण करने लायक है उस उस को ग्रहण और जो जो त्याग करने लायक है उसको त्याग करने वाले को विवेकी कहते हैं ।

3- जगत का कर्ता ईश्वर है इस अविवेकी मत का त्याग और योग से लक्षित परमज्योतिस्वरूप जीव है उसका ग्रहण करना उत्तम है ।

किन्तु कालांतर में जैन और बौद्ध मत में अंतर आ गया , जैसे - बौद्ध धर्म में निर्वाण प्राप्ति के लिये मध्यम मार्ग बताया जिसके लिए मृत्यु आवश्यक नहीं अपितु कोई भी अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण कर यह प्राप्त कर सकता है ।
जबकि जैन मत में कैवल्य की प्राप्ति के लिए मृत्यु आवश्यक है , दुखो से मुक्ति के लिए उपवास , उग्र तपस्या (संथारा भी शामिल) जरुरी है ।

बाद में यह अंतर इतना बढ़ गया की वैष्णव और जैनियो में फर्क करना भी मुश्किल हो गया और इसका श्रेय जाता है हेमचन्द्र सूरी जी को जिन्होंने जैन मत को ब्रह्मणिक धर्म में विलय सा ही कर दिया ।आज के जैन मुनि तरुण सागर जी स्त्री , आरक्षण आदि पर जो विचार प्रकट करते है वह उसी विलय का नतीजा है ।


किन्तु आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद जी अपने सत्यार्थ प्रकाश के 12 समुल्लास में जैन मत का खंडन करते हुए कहते हैं की जैन मत छोकरा बुद्धि है , स्वामी जी यंहा तक कह देते हैं की जैन मत "जो ईर्ष्या द्वेषी हो तो जैनियो से बढ़ के दूसरा कोई न होगा ।

कुछ भी हो इतना तो तय है की जैन मत और बौद्ध धर्म कभी एक ही रहे थे और जो आज तरुण सागर जी के विचार है वे मूल जैन मत के विचार नहीं हैं लगते ।

Thursday, 25 August 2016

मोटी- कहानी

चंचल का दिल आज फिर टूट गया था , टूटे भी क्यों न आखिर तीसरी बार उसको लड़के वालो ने इसलिये नापसन्द कर दिया था की वह थोड़ी ज्यादा ' मोटी' है ।
वह उदास सी अपने कमरे बैठी खिड़की से बाहर झाँक रही थी उसे रह रह के याद आ रहा था की क्या क्या नहीं किया था उसने पतली होने के लिए ।

घी चिकनाई  युक्त और बाजार का खाना तो  बिलकुल बंद कर दिया था  यंहा तक की बचपन से  सबसे पसन्दीदा  गर्म गर्म  समोसे को खाना तो अलग उसे देखना तक बन्द कर दिया था ।सुबह खाली पेट नीबू पानी,शहद  भी पिया , पूरे पूरे दिन भूखी रही केवल सलाद खाया पर रत्ती भर फर्क न पड़ा ।

हाँ, उसे वह भी याद है जब टीवी में सोना बैल्ट का विज्ञापन देख के उसके पिता जी उसके लिए बैल्ट खरीद लाये थे,
टीवी में कैसे दिखाते हैं मोटी लड़की ने बैल्ट पहना और पतली हो गई ।
एक अंग्रेज मुंह बना बना हिंदी में बोलता है "पहले मैं बहुत मोटा था... मुझ्र सब लोग मोटा बोल के चिढ़ाते थे ... फिर मैंने सोना बैल्ट इस्तेमाल किया और मैं एक दम से पतला हो  गया"

पर हाय रे! बैल्ट भी काम न आई ,बैल्ट खुद ढीली हो गई पर कमर कम न हुई ।चंचल का जी में आया की ऐसी फ्रॉड विज्ञापन बेचने वालो के खिलाफ कंज्यूमर कोर्ट में शिकायत करे।उस मुंह बना के हिंदी बोलने वाले अंग्रेज का मुंह नोच ले  ,पर आह भर के चुप रही ।

सुबह उठ के टीवी में आने वाला योगा का प्रोग्राम देख के कमर हिलाई , सर के बल पर खड़ा होने की कोशिश की तो ऐसी गिरी की बस मत पूछो कम से कम 10 दिन गर्दन में मोच रही तब से योगा का चैनल देखना ही छोड़ दिया।

 चंचल बैड से उठी और सूनी और खामोश आँखों से खिड़की के नीचे झांकने लगी , बाहर लोग आ जा रहे थे ।पतली पतली सुंदर लड़कियो आते जाते देख चंचल की आँखों में आंसू आ गए ।कितना मन होता था उसका भी जीरो फिगर वाली  पतली लड़कियो की तरह  स्लिम जीन्स और स्लीवलैस टॉप पहनने का पर ... पर ..आह! थुलथुली बांह और थाई साफ़ पता चलती ,कितनी शर्म लगती थी उसे खुद पर ... बिलकुल पहलवान सी लगती ।

और हाँ! वह मामा के लड़के की शादी कैसे भूल सकती है , मामा की लड़की अंजली ,हूँ .. अंजली ! जाने क्या समझती है अपने को पतली छिपकली सी! आई बड़ी जीरो फिगर वाली ....खुद को विपासा बासु समझती है ।अंजली का स्मरण करते ही चंचल के  ह्रदय में ईर्ष्या और जलन का ज्वारभांटा उमड़ने लगा ।

मामा के लड़के की शादी में अंजली ने साडी पहनी थी और उस पर बैकलेस ब्लाउज , पतली कमर पर  स्टोन की फेशनेबल  तगड़ी .... कमीनी ! चंचल ने मन ही मन फिर कोसा अंजली को ... हूँ ! बेवकूफ लड़के ...लट्टू हो रहे थे उस पर।

चंचल ने भी साडी बाँधी थी पर कमर और पेट का पता ही नहीं चल रह था ,उपर से पेट का मांस दोहरा होके लटक गया था ।चंचल कमर क्या दिखाती उसे तो शर्म के कारण पेट को भी साड़ी से ढंकना पड़ा था ।तगड़ी भी न दिखा पाई थी किसी को ,बाद में गुस्से में आके तगड़ी उतार के फेंक दी थी ।

अंजली सुबह फेरो तक बार बार चंचल के आस पास ही मंडराती रही और बात बात पर खिल खिला के हंसती रही जैसे चंचल पर ही हंसी के व्यंग वाण चला रही हो ।चंचल कितने ही खून के घूंट पी के रह गई थी ।

चंचल को वह दिन भी याद आया जब पापा ने उसे दौड़ लगाने के लिए कहा था ।पापा उसके लिए स्पोर्ट शू भी ले आये थे , चंचल ने  सुबह 5 बजे उठ के दौड़ना भी शुरू कर दिया था ।

चार -पांच दिन तक तो सब ठीक रहा पर एक बार  सुबह के तकरीबन पांच बजे होंगे चंचल सड़क पर दौड़ लगा रही थी , एक जगह स्ट्रीट लाइट नही होने के कारण अँधेरा था ।
अचानक चंचल का पैर एक सो रहे कुते पर पड़ गया ,फिर क्या था कुते ने चंचल को दौड़ा दौड़ा के काटा । किसी तरह लोगो ने सहारा दे के चंचल को घर तक पहुँचाया था , कुत्ते ने गुस्से में चंचल के जूते तक फाड़ दिए थे ।
पुरे 14 इंजेक्शन लगाये थे डॉक्टर ने और कितने ही दिन तक बिस्तर पर लेटा रहना पड़ा था उसे  , तब से दौड़ लगाने के नाम से भी काँप जाती है चंचल ।


चंचल इन्ही सब यादो में खोई हुई थी की उसे पता ही न चला की कब उसकी मम्मी उसके पीछे आके के खड़ी हो गईं थी ।जब उन्होंने चंचल के कंधे पर हाथ रखा तो चंचल चौंकते हुए बोली -
" मम्मी आप!" चंचल ने त्वरित अपनी नम आँखों को पोछते हुये कहा

चंचल की माँ ने उसका सर पर हाथ फेरते हुए अपने सीने से लगा लिया और पुचकारते हुए बोलीं-
" दुखी मत हो मेरी बच्ची ... तू बहुत सुंदर है ! कौन कहता है की तू मोटी है ? जो कहते हैं वे बकवास करते हैं "
माँ की बाते सुन चंचल उनके गले से लिपट गई , दो आंसू की  बुँदे  उसके गालो पर लुडक गएँ ।

कुछ दिन बाद ।

बस खचा खच भरी हुई थी , जितने लोग सीट्स पर बैठे थे उससे अधिक खड़े थे ।चंचल को सीट नहीं मिली थी जिस कारण वह कानो में हैड फोन लगाये सीट के सहारे खड़ी हुई भीड़ से बेखबर गाने सुन रही थी ।
उससे थोड़ी ही दूर पर दो लड़कियां भी खड़ी थीं पतली और खूबसूरत  , चंचल की नज़र बरबस ही कभी कभी उन पर पड़ जाती तो तुरंत ही नजरे हटा लेती ।जैसे उन लड़कियों का पतला होना चंचल के मोटापे को जीभ चिढ़ा रहा हो ।
बस एक स्टेण्ड पर रुकी तो बहुत सी सवारियां और चढ़ गईं , चंचल सीट्स के बगल में खड़ी गाने सुनने में अब भी मगन थी ।

कुछ देर बाद उस की नजर अचानक उन पतली लड़कियो पर पड़ी तो देखा की लडकिया चुप हैं और परेशान सी लग रही है ।चंचल ने गौर से देखा तो दो लड़के उन लड़कियो के पीछे खड़े थे जो बार बार उन लड़कियो से जानबुझ के टकरा रहे थे ।लडकिया जितना हटती लड़के उतना ही उनसे अपना आगे का शरीर स्पर्श कर देते ।
चंचल सारा माजरा समझ गई थी की लड़के उन लड़कियो के साथ छेड़ छाड़ कर रहे थे और लड़कियां उनकी हरकतों से विचलित हैं।

चंचल ने आस पास देखा तो बस में कई लोग उन लड़को की गन्दी हरकते देख रहे थे पर सब देख के अनदेखा सा कर दे रहें है , जैसे किसी को कोई मतलब ही न हो ।
चंचल ने लोगो का उपेक्षित व्यवहार देखा तो उसे बड़ा बुरा सा लगा , पर फिर उसने सोचा की जब कोई नहीं बोल रहा है तो उसे भी क्या गरज पड़ी है ? यह सोच वह फिर गाने सुनने में व्यस्त हो गई ।

किन्तु उसकी नजरे उन लड़को की हरकतों पर गड़ी रही , कुछ क्षण बाद उसने देखा की एक लड़के जिसने नीली सी शर्ट पहन रखी थी उसने एक लड़की के नितम्बो को जोर से दबा दिया ।लड़की ने चीखने के साथ जोरदार तमाचा नीली शर्ट वाले लड़के के गालो पर जड़ दिया ।

चांटा पड़ते ही कुछ पल के लिए दोनों लड़के सकपका गए पर अगले ही क्षण नीली शर्ट वाले ने भी लड़की को भद्दी सी गाली देते हुए चांटा मारा ।दूसरे लड़के ने तुरंत मुंह से सर्जिकल ब्लेड निकाल लिया और दोनों उंगलियो में फंसा के चेतावनी भरे लहजे में बोला- साला!कोई बीच में आया तो गाल पर भारत का नक्शा खीच दूंगा "

बस के सभी यात्री सहम से गए , बस में अधिकतर रोज के ही पैसेंजर थे और वे इन जेबकतरो को पहचानते थे की कितने खतरनाक हैं ये लोग पूरा गैंग था इनका ।कई महीने पहले कंडक्टर ने रोका था इन्हें एक की जेब काटते हुए , बाद में कंडक्टर को चाक़ू मार दिया था भरी बस में  इन लोगो ने तब से कोई विरोध नहीं करता था इनका ।

नीली शर्ट वाले की लड़की के साथ अभद्रता बढ़ गई , फिर उन्होंने लड़कियो का हैंडबैग छीना और निकास द्वार की तरफ भागने लगे  ।पीछे लडकियाँ चीख रहीं थी ।

वे चंचल के पास से गुजरे , चंचल ने बिजली सी तीव्रता से नीली शर्ट वाले लड़के का कालर पकड़ लिया और पूरी ताकत से थप्पड़ मारा । थप्पड़ इतना तेज था की नीली शर्ट वाले के कान से तेज खून की धार निकली ।उसके मुंह से चीख तक न निकली और धड़ाम से बस की  फ्लोर पर चित्त गिर गया ।
किसी को समझ ही नहीं आया की आखिर हुआ क्या ,बस तेज ध्वनि सुनाई दी थी चांटे की ।

ब्लेड वाला लड़का नीली शर्ट वाले के आगे था , जब उसने मुड़ के देखा तो उसका साथी नीली शर्ट वाला बस के फ्लोर पर चित्त पड़ा हुआ था  था ।वह हतप्रभ कुछ क्षण के लिये जड़ खड़ा रहा ,शायद उसे यकीं न हो रहा था की एक लड़की उसके साथी का सिर्फ एक थप्पड़ में यह हाल कर सकती है ।
फिर उसे अपनी उंगलियो के बीच फंसे ब्लेड का ध्यान आया और उसने गाली देते हुए चंचल पर ब्लेड चला दिया ।
जेबकतरे की उंगलियो में फंसे सर्जिकल ब्लेड के बारे में चंचल को ज्ञात था अतः उसने उसकी उंगलियो से बचते हुए कलाई पकड़ ली ।

चंचल ने जेबकतरे की कलाई पकड़ के कलाइ पर पूरा जोर लगा दिया ।
"कटाक" की  आवाज करते हुए जेबकतरे की कलाई ऐसे टूट गई जैसे किसी ने झाड़ू की सींक को बीच में से तोड़ दिया हो ।असहनीय दर्द के कारण जेबकतरा ऐसे कर्दन कर उठा जैसे हलाल करते वक्त कोई बकरा ।

अब जैसे लोगो में भी हिम्मत आ गई उन्होंने जेबकतरो को पकड़ लिया, ड्राइवर ने बस सीधा थाने पर जा खड़ी कर दी , सभी लोग चंचल के साहस की भूरी भूरी प्रशंसा कर रहे थे ।

अगले दिन सुबह अखबार में चंचल की फोटो के साथ उसके साहस की कहानी छपी हुई थी ।
चंचल ने अख़बार पर नजर डाली तो मुस्कुरा दी , जैसे आज उसे अपने मोटापे से कोई शिकायत न थी ।

बस यंही तक थी कहानी.....

Wednesday, 24 August 2016

जानिए ऋग्वेदिक कृष्ण के बारे में



यह सर्व ज्ञात है की भारतीय लोग श्याम वर्णीय रहे हैं , ऋग्वेद के प्रथम मंडल के 100 वें सूक्त के 18 वें मन्त्र में इसका स्पष्ट उदहारण मिल जाता है ।

मन्त्र में कहा गया है " दस्युमिच्छम्युश्च...... सुव्रज

अर्थात -अनेक यजमानो द्वारा बुलाये गए इंद्र ने गतिशील मरुतो के सहयोग को पा शत्रुओ एंव राक्षसो पर आक्रमण हिंसक व्रज द्वारा उनका वध किया ।शोभन व्रजयुक्त इंद्र ने श्वेत वर्ण के अलंकारो से दीप्तांग मरुतो के साथ द्वारा अधिकृत भूमि को बाँट लिया।

यंहा स्पष्ट है की बाहरी लोग श्वेत वर्ण के थे और भरतीय काले ।

कृष्ण काले थे यह इसका प्रमाण देने की आवशयकता नहीं , ऋग्वेद में ही कृष्ण नाम के एक असुर का जिक्र आया है जो इस प्रकार है ।

ऋग्वेद मंडल 1,सूक्त 130, मन्त्र 8-

"हे इंद्र!युद्ध में आर्य यजमानो की रक्षा करते हैं , अपने भक्तो की अनेक प्रकार से रक्षा वाले इंद्र उसे समस्त युद्धों से बचाते है । इंद्र ने अपने भक्तो के कल्याण के निमित्त यज्ञ द्वेषियो की हिंसा की थी । इंद्र ने कृष्ण नामक असुर की काली खाल उतार कर उसे अंशुमती ( यमुना)  नदी के किनारे मारा और भस्म कर दिया । इंद्र ने सभी हिंसक मनुष्यो को नष्ट कर डाला ।

जैसा की हम जानते हैं कृष्ण ने इंद्र के यज्ञ का विरोध किया था , उन्होंने गोकुल वासियो द्वारा  इंद्र की पूजा करने और यज्ञ हवन बंद करवा देने के कारण इंद्र कुपित हुआ था जिस कारण कृष्ण ने गोकुल वासियो सहती गोवर्धन पर्वत पर आश्रय लिया था ।इस बात पर तो दो मत हो ही नहीं सकते की कृष्ण इंद्र के विरोधी थे ।

जैसा की ऋग्वेद के मन्त्र में वर्णित है की इंद्र ने कृष्ण को यमुना नदी के तट पर मारा था और उनकी त्वचा का रंग काला था तो दोनों ही बाते वर्तमान प्रचलित कृष्ण से मेल खाती है ।ऋग्वेदिक कृष्ण और भागवत कृष्ण दोनों इस सम्बन्ध में एक ही लगते हैं।

कुछ और उदहारण देखिये इस शंका की पुष्टि के लिए-

ऋग्वेद 8 वां मंडल, सूक्त 85,मन्त्र 13

"शीघ्र गति से चलने वाला एंव दस हजार सेनाओ को साथ लेकर चलने वाला कृष्ण नामक असुर अंशुमती(यमुना) नदी के किनारे रहता था ।इंद्र ने उसे खोजा और उसका वधकारणि सेनाओ को नष्ट कर दिया।

भागवत कृष्ण का यमुना तट से घहरा सम्बद्ध है ।

अब दूसरा मन्त्र ( मन्त्र 17) देखिये ,

" तुमने कृष्ण असुर को नीचे की ओर मुंह करके मारा था तथा अपनी शक्ति से शत्रुओ की गाये प्राप्त की थीं"

भागवत कृष्ण का गाय के साथ सम्बन्ध गहरा है , ऋग्वेदिक असुर कृष्ण के पास भी गाये थी जिसे इंद्र छीन लेता है "

इसके आलावा बौद्ध ग्रन्थ दीघ निकाय के अम्बठ्ठ सुत्त में कृष्ण एक महान दार्शनिक रूप में विद्यमान हैं ।

तो क्या इन प्रमाणो से यह निष्कर्ष निकल सकता है की कृष्ण असुर जननायक रहे होंगे जिन्होंने यज्ञ करने वाले इंद्र से युद्ध किया होगा ?, परन्तु आम जननायक होने के कारण  यंहा के लोगो के स्मृतियों में रचे बसे थे जिनको वैदिक लोगो भरकस प्रयास करने के बाद भी न निकाल पाये अतः उसका ब्रह्मणिकरण कर दिया गया ?

जैसे बुद्ध को विष्णु का अवतार घोषित कर दिया गया ।
यह आप सब निष्कर्ष निकालिये की यह बात कितनी सत्य हो सकती है ।


Tuesday, 23 August 2016

धर्म और नैतिकता



बहुत से विद्वान् विचारको की नज़रो में धर्म या मज़हब मध्ययुग के अन्धविश्वास से अधिक कुछ भी नहीं है ।
विश्व इतिहास के  मध्ययुग में धर्म या मज़हब का स्थान बड़ा भव्य था । बड़े बड़े विजेताओं की जीत का लक्ष्य ही धर्म मज़हब का विस्तार था जिसमे निजी स्वार्थ तो था ही धर्म का नाम लेके राजनैतिक विस्तार भी था ।

बड़े बड़े शासको ने धर्म मज़हब के नाम पर लाखो इंसानो को युद्ध में झोंक देते थे । धर्म मज़हब के नाम पर अमानुषिय अत्याचार किये जाते थे , फिर भी धर्म मज़हब का इतना नशा था की लोग उन पर अंधविश्वास और अटूट श्रद्धा रखते थे क्यों की धर्म मज़हब उन्हें स्वर्ग और अगले जन्म का लालच देते थे ।

जैसे जैसे विज्ञानं उन्नति करता गया नविन चेतना की प्रतिष्ठा हुई , अपने आसपास के जगत देखने का नया दृष्टिकोण स्थापित हुआ । पहले सोचने का अधिकर केवल पुरोहित और शासक वर्ग को ही था , पर विज्ञान के प्रसार और आधुनिक युग में एक साधारण इंसान को भी प्रश्न करने, तर्क करने और शंका करने का अधिकार मिला।

अब धर्म में जो शाश्वत सत्य माने जाते थे उन पर भी शंका उठी , जिन धर्म और शास्त्रो द्वारा आम जनता को मुर्ख बना पुरोहित वर्ग अपना उल्लू सीधा करता रहा उन पर प्रश्न किये जाने लगे ।धर्म हमेशा अपने दो खोटे सिक्के जिन्हें पाप और पुण्य कहा जाता है उन्हें जनता में चलाता आ रहा है , जनता पाप पुण्य के प्राचीन माप दण्डो को मान कर पाखण्डी पुरोहितो के जाल में फंस के उनकी जीविका का साधन मुहैया कराती रही है ।
पाप पुण्य की व्याख्या हर ईश्वरीय ठेकेदार के अनुसार भिन्न भिन्न रही है , एक चीज एक मनुष्य के लिए पाप है तो दूसरे के लिए पुण्य।

अधिकतर धर्मिक प्रवृति के लोगो को 'भूत' से प्रेम होता है ,जो अतीत में हुआ वही परम सत्य है .. जो ग्रन्थो में लिखा है वही अकाट्य सत्य है ।
सतयुग की परिकल्पना इसी का परिणाम है , सतयुग में जो होता था सब सही था । गीता में जो लिखा है वही सत्य है ।लोग बड़े गर्व से कहते हैं की ' गीता का ज्ञान संसार में सबसे श्रेष्ठ है ... जितना गीता में ज्ञान है उतना किसी भी संसार के ग्रन्थ में नहीं " ऐसी  फोटो बड़े गर्व से प्रचारित की जाती है जिसमे कोई अंग्रेज कंठी माला पहने गीता को हाथ में लिए खड़ा रहता है । प्रचारित यह किया जाता है की अंग्रेज भी गीता की कद्र करते हैं , उसमे श्रद्धा रखते हैं ।
गीता में संसार का ज्ञान है यह हमारी मौलिक धारणा नहीं है , बल्कि बनावटी है । कुछ पश्चमी लोगो ने गीता को पढ़ा क्या हम गर्व से फूल गए की हम गुलाम रह चुके , हीन, काले लोगो के पास भी कुछ वस्तु है जिसकी प्रशन्सा अंग्रेज तक करते है ।

यह हमारी मानसिक दासता ही रही है की जिसे पश्चिम के लोग श्रेष्ठ माने उसी को हम भी श्रेष्ठ मान लेते हैं । गीता के बारे में भी यही धारणा रही , कुछ अंग्रेजो ने इसकी प्रशंसा की तो यह हमारे लिए पूजनीय हो गई ।

यही कारण रहा की हजारो बार गीता का ' ज्ञान' पढ़ने के बाद भी हम उससे कुछ सीख नहीं ले पाये थे और न ही अब । लाखो बार गीता का ज्ञान पढ़ने के बाद भी हम विदेशियो से अपनी गुलामी का तोड़ नहीं खोज पाये थे ।

वास्तव में धर्म जो शास्वत है वह किसी भी आसमानी या ईश्वरीय पुस्तक की सीमाओं में नहीं बंधा होता है , धर्म काल और देश से परे की वस्तु है । आचरण की वस्तु है , धर्म जो शास्वत है वह नैतिकता है जिसे धर्म का लबादा ओढ़ा के पेश किया जाता है  ... नैतिकता किसी धर्म की मोहताज़ नहीं होती  ।

धर्म गुरु जानते थे की धर्म के झूठे जाल में लोगो को ज्यादा दिन नहीं फंसाया जा सकता अतः उन्होंने नैतिकता को धर्म में घाल मेल कर दिया ताकि नैतिकता को ही इंसान धर्म समझ ले और उलझा रहे ।


Monday, 22 August 2016

दलित आरक्षण और गरीबी



मै अधिकतर लोगो के मुंह से  यह सुनता रहा हूँ दलितों के आरक्षण  के कारण  सवर्णों को नौकरी नहीं मिलती, आरक्षण  गरीबी आधारित  होना चाहिए ,आरक्षण समाज को बाँट रहा है ...आदि आदि ..ऐसी कई  भ्रन्ति पूर्वक जानकारी  समाज में  फैलाई  जा रही है। आप स्वयं कई सोशल साइट्स पर यह बात देख सकते हैं की आरक्षण को लेके कैसे गलत बाते फैलाई जा रही हैं । लोग आरक्षण को गरीबी से तुलना करने लग गए हैं । यह एक तरह से हकीकत पर पर्दा डाल ने की कोशिश की जा रही है ताकि लोगो में भ्रम फैले और तनाव बढे।
पर किसी को यह सोचने का वक्त नहीं है की आरक्षण आखिर कहते किसे हैं, इसका मकसद क्या है, इसकी शुरुवात ही क्यों हुई या ये था किसके लिये? पर बहस हो रही है की आरक्षण किसे दें? लेकिन सब लोग यह मानकर बहस करने पर उतारू हैं की आरक्षण का मकसद गरीबी हटाना है, गरीबों को अमीर बनाना है.......... पर नहीं।

ऐसा बिल्कुल भी नहीं है।

गरीबी हटाने की योजनाओं को लोग आरक्षण समझ बैठे है और आरक्षण को गरीबी हटाने का यंत्र है, सारे विवाद की जड अज्ञानता , और कुछ नहीं।जिस आरक्षण की हम यहाँ बात करना चाहते हैं, वो प्रतिनिधित्व के लिये है, किसी पहचाने हुए वंचित समुदाय को तमाम सामाजिक बाधाओं से बचाकर उनको सिस्टम में पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिलाने के लिये है। नौकरी देकर गरीबी हटाना इसका मकसद नहीं है, इतनी नौकरी हैं ही नहीं।ओबीसी आरक्षण इस मामले मे थोड़ा सा विवादास्पद है, पर एस सी/ एस टी के मामले मे यह बिल्कुल सॉफ है.कभी सोचा है की हम क्यों पाकिस्तान के योग्यतम आदमी को अपने कोर्ट मे जज नहीं बना सकते? अगर मेरिट ही एकमात्र पैमाना है तो हमे अपनी सारी नौकरियाँ पूरे विश्व के लिये क्यों नहीं खौल देनी चाहिये? सरकारी भी और प्राइवेट भी।पर क्या फिर हमारे कथित दिमाग वाले नौकरी ले पायेंगे?

आप लोग एक उदहारण से समझिये-अब अगर संयुक्त राष्ट्र मे भारत के प्रतिनिधित्व के लिये एक पोस्ट निकलती है, तो इस बात फर्क नहीं पड़ता की भारत से चुना जाने वाला व्यक्ति अमीर है या गरीब।लेकिन उसका भारतीय होना सबसे जरूरी है।साथ ही ये भी समझने की कोशिश करें की संयुक्त राष्ट्र ने एक जॉब इसलिये नहीं निकाली थी की उसे किसी एक भारतीय की गरीबी इस जॉब से मिटानी है, बल्कि इसलिये निकाली ताकि कोई एक चुना हुआ व्यक्ति भारत की आवाज संयुक्त राष्ट्र मे रख सके......यही बात भारत मे आरक्षण के मामले मे है, अब महिला आरक्षण देना है, जरूरत इस बात की है वो महिला हो और महिलाओं का पक्ष रखने मे सक्षम हो.... एक आदमी को आप महिलाओं का प्रतिनिधि तो नहीं दे सकते।
थी यही फंडा आरक्षण का भी है।

1- आरक्षण का उद्देश्य ये कतई नहीं है की किसी समाज के हर व्यक्ति का कल्याण आरक्षण के ही मध्यम से होगा, बल्कि आरक्षण केवल उस वर्ग के लोगों को तरह तरह के क्षेत्रो मे प्रतिनिधित्व दिलाता है ताकि उस वर्ग के लोगों को जो भेदभाव उच्च वर्गीय कर्मियों द्वारा झेलने पड़ते हैं, उनमे कुछ कमी आ सके और वंचित वर्ग की भी आवाज़ सुनी जा सके. इसलिए आरक्षण आबादी के अनुपात मे मिलता है, ग़रीबी के नहीं।

2-)प्रतिनिधित्व कौन करेगा ये सवाल सामने होता है, नाकी नौकरी और रोज़गार किसे दिया जाए, ये नहीं... क्योंकि प्रतिनिधित्व से नौकरी और रोज़गार भी मिलता है और आर्थिक स्थिति मजबूत होती है, तो ज़्यादातर बंधु आरक्षण को सिर्फ़ नौकरी, रोज़गार और ग़रीबी हटाने का साधन मान बैठे हैं, जो की ग़लत है।

3-) सरकार की अनेकों पॉलिसी इस हर वर्ग के ग़रीब के उत्थान के लिए चलाई जाती हैं क्योंकि ग़रीब हर जाति और धर्म मे हैं. बी पी एल कार्ड तो मात्र एक जानी पहचानी स्कीम है, इसके अलावा हज़ारो स्कीम चल चुकी हैं और सैंकड़ों चल रही हैं, पर उनका फ़ायदा नीचे तक पहुँचता ही नहीं, वो सब उपर वालों मे बंदर बाँट कर दिया जाता है।

4)- सबसे कमजोर या ग़रीब कैसे उठे, उसके लिए उन्हे ज़मीन के पट्टे, छात्रवृत्ति, फीस मे छूट, कोचिंग की सुविधा आदि प्रदान की गयीं हैं, लघु उद्योग आदि के लिए ऋण का भी प्रावधान है और भी बहुत सी सुविधाएँ हैं, जो फिर से उपर बैठे शोषक  लोग खा जाते हैं या उन्हें गरीब दलितों तक पहुचंने ही नहीं देते |

सबसे कमजोर की स्थिति सुधरे, इसके लिए उन लोगों पर और ज़िम्मेदारी डाली जाए जो आरक्षण की नौकरी पाकर उसे अपने जीवन यापन का ज़रिया बना लिए हैं और बहुत हद तक अपनी नौकरी बचाने के लिए वैसे ही बर्ताव करते हैं जैसे की गैर आरक्षित। अधिकतर आरक्षित नौकरी पर काम करने वाले बहुत ही दबाव मे और अक्सर ही सबसे प्रभावहीन कुर्सी पर बैठाए जाते हैं जो फिर से शोषक लोगों की साजिस है...सोच बदलना बहुत मुश्किल है पर कोशिशे जारी रहनी चाहिए.


Friday, 19 August 2016

जानिए कैसे स्त्री के सुहाग चिन्ह दासता के प्रतीक हैं


जिस तरह किसी मुस्लिम महिला के लिए बुर्का प्रत्यक्ष रूप से पुरुष सत्ता की आधीनता की निशानी माना जा सकता है वैसे ही एक हिन्दू महिला के लिए ' सुहाग चिन्ह' भी पुरुष सत्ता की आधीनता ही है ।

यह भी गौर करने लायक है की बुर्का और सुहाग चिन्हों को स्त्री पर लादने का जरिया धर्म और मजहब बना।
धर्म और मज़हब के चाबुक के सहारे अपने अपने बाड़े की स्त्रियों को अधीनता के पट्टे पहनाये गए ।

सिंदूर, बिंदी , बिछुए जैसे विभिन्न सुहाग चिन्हो के नाम पर स्त्री की स्पष्ट पहचान सुनिश्चित की गई की यह स्त्री किसी पुरुष के आधीन(ब्याहता) है जबकि पुरुष स्वयं इन चिन्हों से मुक्त रहा जिससे यह पता चले की अमुक पुरुष किसी स्त्री का पति है ।इन सुहाग चिन्हों को स्त्री बिना विरोध के धारण करे इसके लिए इसे धर्मिक क्रिया -कलापो के साथ पति के जीवन सेजोड़ दिया गया।
स्त्री सिंदूर इसलिए लगाए की उसके पति की उम्र लंबी हो , बिछुए इसलिए पहने ताकि पति के जीवित रहने के आभास हो , चूड़ी भी पति को ही समर्पित ।

इसी प्रकार लगभग सभी व्रत -उपवास महिलाओं के लिए ही बने हैं ,कभी घर की सुख शांति के लिय तो कभी पति और कभी पति के नाम पर स्त्री साल भर न जाने कितने ही व्रत उपवास रख अपने शरीर को कष्ट देती है ।वह व्रत उपवास रख अपने शरीर को इसलिए सुखाती रहती है ताकि उसका स्वामी पुरुष खुश रहे ,जीवित रहे किन्तु पुरुष स्त्रियों के लिए ऐसा न कर सका ।

क्यों?  जंहा स्वामी और दासी का संबंध हो वंहा ऐसा संभव नहीं ।

व्रत-उपवास भी स्त्री बिना विरोध के करे और अपना 'कर्तव्य' समझे इसके  लिए इसे धर्म से जोड़ दिया गया , और इन व्रत उपवासों में ऐसी कोई न कोई कहानी गढ़ दी गई की  अंत में पुरुष का स्वार्थ सिद्ध हो।
किन्तु ,इसके पीछे पुरुषो की धूर्तता स्त्री कभी नहीं समझ पाई और न आज भी समझना चाहती है ।
दरसल व्रत या उपवास खासकर महिलाओ के लिए इसलिए बनाये गएँ हैं की महिलाएं उन्ही व्रत और उपवासों में उलझी रहें और अपने शासक पुरुषो से मुखर न हों ।

प्राचीन समय से ही  पुरुष प्रायः धन अर्जित करने, शासन करने ,नौकरी आदि विभिन्न कार्यो के कारण अधिकाँश समय घर से बाहर रहता था।वह बाहर रहता तो उसे भय रहता की कंही उसी स्त्रियां अपनी गुलामी में विचारशील न हो जाएँ , कंही पुरुष सत्ता के ख़िलाफ़ विद्रोह न पैदा हो जाए , कंही उनके बाड़े से आज़ाद न हो जाएँ?वह स्त्रियो की मानसिकता को सिर्फ अपने प्रति ईमानदारी और समर्पण तक सिमित रखना चाहता था ।वह चाहता था की जब वह बाहर रहे तो उसकी स्त्रियां उसकी जंजीरो से आज़ाद होने की न सोचें ।
अत: उसने धर्म का सहारा ले व्रत उपवास , सुहाग चिन्हो का निर्माण किया ।

महीने में 4-5 दिन स्त्रियां व्रत रखे, ईश्वर, पुत्र, पति के नाम पर भूंखी रहें इसका  विधान बना दिया ।
स्त्रियां दिन रात भजन कीर्तन करें, मंदिर में बैठ कथा कीर्तन सुने ।स्त्री जितनी धर्मिक होगी और भजन कीर्तन , व्रत उपवास में जितनी लिप्त होगी उसका विमुख होने और स्वत्रंत्र होने की भावना और विचार उतने ही नगण्य होंगे ।

इन सबके बीच पुरुष ने स्वयं अपने लिए दासी, नगर वधुओं , एक से अधिक /उप पत्नी का प्रबंध कर लिया था ताकि उसकी शारीरिक जरुरत निर्विघ्न पूरी होती रहें।परन्तु स्त्रियां कंही ऐसा न कर दें  , वे स्वतंत्रता न हों इसलिए उसने अधिक से अधिक कर्मकांड और आडम्बर का निर्माण किया  ताकि स्त्रियां उनके बीच अजीवन उलझी रहें ।इसीलिए समाज में आज भी यह मानसिकता प्रचलन में की जितनी ज्यादा स्त्री धर्मिक होगी पति के लिए उतनी ही प्रिय होगी।कई लोग तो अपनी कन्यायो को शादी से पहले 'अच्छा'पति मिलने के नाम पर  उपवास रखवाने लगते है ताकि विवाह उपरांत उसे उपवास रखने में रूचि पैदा हो जाए ।

कहते हैं की उपदेश देने से पहले खुद से शुरुआत होनी चाहिए , अतः मैने अपनी पत्नी को समझा बुझा  बहुत से सुहाग चिन्हों और व्रतो से मुक्ति दिला दी है ...आगे प्रयास जारी है ।
क्या आप प्रयासरत हैं ?
हाँ! आपकी बात सही है यह थोडा कठिन है पर मुझे पता है की एक दम से सामाजिक परिवर्तन अपेक्षित नहीं हो सकता ।

Sunday, 14 August 2016

अल्लाह की मार- कहानी

"अल्लाह!! ... अब यंहा से भी टपकने लगा क्या करूँ ?
"या अल्लाह रहम कर!! " असहाय और अश्रुपूर्ण नेत्रो से पुराने और लगभग जर्जर हो चुके मकान की टपकती छत को देखते हुए रशिदा ने कहा ।और चारपाई जिसके बाँध लगभग टूट ही चुके थे उस पर लेटे  बुंदुखां को  तिरपाल के एक छोटे टुकड़े से ढंकने का प्रयास किया ।

बुंदुखां ,करीब दो साल हो गया थे  आधे अंग में लकवा मारे तब से खाट पर ही पड़ा रहता ।बुंदुखां मालवाहक रिक्सा चलता था पर लकवा मारने से एक हाथ और एक पैर बेकार हो गया तब से किसी काम का न रहा ,इलाज के लिए सरकारी हस्पताल के बहुत चक्कर लगाये थे बुंदुखां को लेके रशिदा ने  ।जितनी थोड़ी बहुत जमा पूंजी थी सब खर्च हो गई इलाज में पर कोई फायदा न हुआ ,थक के आस छोड़ दी और घर पर एक चारपाई पर लिटा दिया तब से अस्थिपिंजर सा पड़ा रहता था बुंदुखां ।


कुछ दिन तक तो रिस्तेदारो ने मदद की फिर सबने मुंह फेर लिया ,पुस्तैनी मकान था जो जर्जर अवस्था में था बस वही एक सर छुपाने की जगह थी ।बारिशो में वह भी साथ छोड़ देता और झर झर आंसू बहाने लगता अपनी खस्ता हालत पर ।

दो बच्चे आरिफ और रज़िया भी थे , आरिफ 7 साल का और रज़िया 5 साल की , उन्हें तालीम के लिए पास के ही मदरसे में दाख़िल करवा दिया था  ।

पर जीविका तो चलानी ही थी न, निर्मम भूँख तो रोज ही लगती थी ।रशिदा को भीख माँगना क़बूल न था अतः उसने अपना और परिवार का पेट पालने के लिए खिलौने बेचने का निर्णय लिया ।बाजार से खिलौने लाती और टोकरी में रख  गली मोहल्ले में बेचती , जो थोडा बहुत मिलता उससे ही गुजरा कर लेती।

पिछले तीन दिन से निरन्तर बारिश हो रही थी ,बीच में एक आध घण्टे के लिए बेशक रुक जाती पर मौसम बारिश का बना ही रहता ।ऐसे में रशिदा खिलौने बेचने नहीं जा पाई ।
"अम्मी ... कुछ खाने को दो न, बहुत तेज भूँख लगी है "रज़िया ने रशिदा का आँचल पकड़ के हिलाते हुए कहा ।

खाने का नाम सुनते ही रशिदा के चेहरे की रंगत उड़ गई , खाना ही तो न था घर में ।दो दिन से घर में खाने के नाम पर कुछ बची प्याजे ही नमक मिर्च के साथ उबाल के दे रही थी वह बच्चों को ,पर आज वह भी खत्म थी ।
रशिदा ने चूल्हे के पास रखे पुराने पड चुके प्लास्टिक के डब्बो को इस आस में उलटना पलटना शुरू कर दिया की जैसे शायद कुछ निकल आये उनमे से और वह बच्चों को खिला दे।
पर जब कुछ हो तब न निकले , रशिदा हताश हो गई ।वह वंही खड़ी बहुत देर तक जड़ बनी रही , उसे कुछ सूझ नहीं रहा था की आखिर करे क्या ?

फिर उसने सोचा की पड़ोस के असग़र भाई  से कुछ मांग लाती है यही सोच वह बाहर की तरफ चल दी किन्तु दरवाजे पर पहुँचते ही एकाएक ठिठक गई ।उसे याद आया की सुबह ही असग़र के घर गई थी खाने के लिए कुछ मांगने पर उसकी बीबी ने कितना ज़लील किया था उसे ।भिखारन तक कह दिया था उसको और तब जाके एक कटोरी चावल दिए थे , सख्त हिदायत भी दे दी थी की दुबारा मांगने न आये ।

वह रुआंसी सी होके वापस अंदर आ गई ।उसकी हिम्मत न हुई की दूसरे के घर जा के कुछ मांग लाये ।

उस रात किसी ने कुछ नहीं खाया, रशिदा ने नमक मिर्च डाल के थोडा सा पानी उबाला और उसी को पीके सब सो गए ।

सुबह बारिश बंद थी और धूप खिल के निकली हुई थी ।रशिदा ने यह देखा तो उसकी निराशा थोड़ी कम हुई ,उसने सोचा की आज बच्चे मदरसे जा सकते हैं और वह खिलौनों बेचने भी ।

उसने बच्चों को तैयार कर मदरसे भेज दिया और खुद खिलौनों की टोकरी उठा उन्हें बेचने चल दी ।वह अश्वशत थी की आज बच्चों को खाना मिल ही जायेगा।


रशिदा सारे दिन थकी हारी गलियों में घूमती रही , घर घर जाके भी देख लिया उसने पर जैसे आज कोई खिलौने खरीदने ही नहीं चाह रहा था ।शायद इतने दिनों की बारिश में लोगो की जेबे खाली हो गईं थी या लोग पहले अपना इतने दिनों से रुका हुआ काम पूरा कर लेना चाह रहे थे इसलिए उसके खिलौनो पर कोई तवज्जो नहीं दे रहा था ।

थक हार के बड़े उदास मन से शाम को वह अपने घर लौटी ,पर पता नहीं क्यों  चेहरे पर हल्का स सकून था की बच्चो ने जरूर भर पेट खाना आज खा लिया होगा।

जैसे ही वह दरवाजे पर पहुंची की तभी रज़िया भागती आई और उसकी टांगो से चिपक गई ।
"अम्मी...अम्मी... कुछ खाने को लाइ हो बहुत भूंख लगी है ... कुछ खाया नहीं " रुआंसी और बड़ी मासूमियत से बोली रज़िया
" क....क्यों...नहीं खाया ?मदरसे में सरकारी खाना नहीं मिला क्या " रज़िया की बात सुन रशिदा के पैरो की जमीन खिसकती महसूस हुई उसने आश्चर्य से पूछा ।
"अम्मी..... मौलवी साहब कह रहे थे की अब मदरसे में सरकारी खाना नहीं मिलेगा ...मौलवी साहब ने सरकारी खाना लेने से इंकार कर दिया है " आरिफ ने थकी जुबान से  जबाब दिया ।
"क्यों मना कर दिया मौलवी साहब ने सरकारी खाना लेने से ?"रशिदा को अब भी यकीं न हो रहा था इसलिए वह हर बात जान लेना चाहती थी।
आरिफ ने आगे जबाब दिया" मौलवी साहब बता रहे थे कि वह खाना हिन्दू लोग पूजा कर के देते हैं .....इसलिए अब मदरसे में खाना नहीं मिलेगा"

रशिदा पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा हो ,एक मदरसे के खाने का ही तो सहारा था जिसमे दोनों बच्चे भरपेट खा लेते थे और थोडा बचा के अपने अब्बा के लिए भी ले आते थे , वर्ना उसके खिलौने कभी बिकते थे कभी नहीं ।

वह यह सोच के खुद की भूंख बर्दाश्त कर लेती थी की चलो कम से कम सरकारी खाने से बच्चे तो भर पेट खाये ,पर अब वह भी आस चली गई।

वह बैठी बैठी रोने लगी ,उसे रोता देख रज़िया भी उस से लिपट के रोने लगी ।
आकाश की तरफ देखती हुई बोली -
"अल्लाह की मार पड़ेगी ऐसे लोगो पर जो गरीबो के मुंह से निवाला छीन लेते हैं ..... भूखा क्या जाने हिन्दू मुस्लिम ... भूंखे के लिए तो सब बराबर है... ये भरे पेट वाले ...लानत है इन पर! "

इतना कह उसने अपने आंसू पोछे और उठ के  चल दी किसी के घर रोटी मांगने ताकि आज भी बच्चों को भूँखा न सोना पड़े।

 बस यंही तक थी कहानी .....


फोटो साभार गूगल 

Friday, 12 August 2016

एक प्रथा यह भी थी

पूर्वी उत्तर प्रदेश में नाग पंचमी वाले दिन नाग पूजा के आलावा एक प्रथा थी जिसे स्थानीय भाषा में 'गुड़िया सेरावन' कहा जाता था ।

गोरखपुर, बस्ती, गोण्डा, बाराबंकी आदि जिलो में मुखयतः यह प्रथा दलितों में प्रचलित थी ।जब मैं लगभग दस -12 साल का था तब यह प्रथा खूब प्रचलित थी ।

सुबह लोग नाग पूजा करते थे और संध्या समय गुड़िया सेरावन, मुखयतः यह लड़कियो  द्वारा मनाया जाता था ।
लडकिया सुंदर सी कपडे की गुड़िया बनाती थी , तरह तरह के रंग बिरंगे और आकर्षक कपड़ो से गुड़िया तैयार की जाती थी ।

गुड़िया को किसी दुल्हन की तरह सजाया जाता था फिर नाग पंचमी वाली संध्या को  हर घर में तरह तरह के पकवान बनाये जाते थे जिसमे की मीठे  गुलगुले मुख्य होते थे ।उसके बाद  लडकिया बांस की हरी टहनी लेके और अपनी आपनी सजी हुई गुडियो के साथ गाते बजाते किसी तालाब की तरफ निकल लेती थीं।

वस्तुतः वैसा ही नजारा होता था जैसे किसी दुल्हन के विदा होने का ।

गाते बजाते लड़कियो का टोली चल देती थी तालाब या पोखर की तरफ ,गाने के बोल कुछ इस प्रकार होते थे -

"हरियर दुल्हनिया .... झुलेली हिंडोलवा"

तालाब के किनारे पहुँच के लड़कियां गुड़िया को तट के पानी में रख देती और साथ में लाया हुआ पकवान भी ।
उसके बाद हरे बांस की टहनी से गुड़िया को पीटने लगती।
कुछ देर पीटने के बाद उसे तालाब की गीली मिटटी में दबा देतीं और वापस आ जाती।
यह प्रथा कई सालो से चली आ रही थी ।


फिर कुछ सालो बाद इस प्रथा को न मानाने का फैसला लिया गया ।पता चला की जिस गुड़िया को बांस की डंडी से पीट पीट के तालाब में दफ़ना दिया जाता था वह दरसल कोई अछूत कन्या थी जो किसी द्विज से प्रेम विवाह कर लेती है ।द्विजो को यह बात पसंद नहीं आती और वे लड़की को उस समय घेर के बांस के डंडो से पीट पीट के मार देते हैं जब वह नदी पार कर रही होती है , उसे मार के नदी के तट पर वैसे ही दफना दिया जाता है जैसे लडकिया गुड़िया को ।


इसे धार्मिक प्रथा का रूप दे इस लिए चला दिया था ताकि  की दुबारा कोई अछूत कन्या इस तरह की जुर्रत न कर सके ।वैसे ऐसी घटनाये आज भी आपको सुनने को मिल जाती है की किसी दलित का किसी ऊँची जाति से विवाह करने पर उसे मार दिया गया या प्रताणित किया गया।

आम जनमानस में अंतर्जातीय विवाह आज भी दुष्कर है , ख़ास कर द्विज और अछूत कही जाने वाली जातियों में ।

15-20 साल पहले ही  यह 'गुड़िया सेरावन ' प्रथा पूरी तरह से बंद कर दी गई , कम से कम जिन जिलो को मैं जानता हूँ वंहा तो बंद है ।

यह भी आश्चर्य है की आप जितने भी प्रथाओं और पर्वो की खुदाई  करेंगे उनकी जड़ो में कोई न कोई अछूत या शुद्र  जरूर दबा मिलेगा ।


Thursday, 11 August 2016

ईश्वर - कविता

एक शाम लिए हाथ में जाम
ख़्यालो में यूँ ही दूर तक गुम था 
शायद ये अकेलेपन का गम था
तभी एक साया सामने आ गया 
देख मुझे वह थोडा संकुचा गया

मैंने पूछा तुम कौन सी बाधा हो 
बतलाओ जरा! नर की मादा हो 
इतना सुन व्यथित सा मुस्काया
फिर वह  धीरे से फुसफुसाया
मैं ईश्वर हूँ!!हाँ! मैं ईश्वर ही  हूँ 

सुन उसकी बात मैं उचक  गया 
भर एक और प्याला सटक गया 
मैंने कहा यह तो गजब हो गया
सच बता!तू ईश्वर कैसे हो गया 
क्षणिक मौन! फिर वह शाब्दिक हुआ 

कहो तो अल्लाह और गॉड भी हूँ
यदि जानो तो धूर्तो का फ्रॉड भी हूँ 
न जाने मुझे कँहा कँहा बैठाते है 
कभी सातवें आसमान तो कभी 
सर्द हिमालय पर हाड कँपवाते है 

सुन साये की व्यथा दिल द्रवित हुआ 
भर एक प्याला उसके सम्मुख किया
वह किंचित घबराया  फिर मुस्कुराया
मैंने कहा लेलो!वैसे भी तुम बांटते हो 
स्वर्ग-जन्नत में मय से नदिया पाटते हो

कंठ और प्याले का फिर मिलन हुआ 
तीन के बाद चौथे का भी  मन हुआ 
गुरु!कहाँ रहते हो या यूँ भटकते हो
सच बताओ ! राज क्या है तुम्हारा?
क्या सच में सृष्टि निर्माण है तुम्हारा 

प्रश्न सुन वह पुनःरहस्मय मुस्कुराया 
अपने होठो को मेरे कान तक लाया
नहीं रे! मैं तो सिर्फ एक कल्पना हूँ 
मैं कैसे बनाता धरा,नभ,मानव...
मैं खुद मनुष्य के मन की रचना हूँ 

अब मैं चकराया,संयित हो पूछा 
पोथियाँ झूठ हैं?गुरु गड्डम झूठ है?
हाँ यह  सत्य है !सब ये असत्य है!
न मैं कण कण में न अंतर मन में 
इन धूर्तता के प्रचार से मैं विकल हुआ 
आज से मैं भी तेरे साथ नास्तिक हुआ 



Monday, 8 August 2016

मॉडर्न सास - कहानी

"हैलो!..कैसी है ?मैं भी ठीक हूँ ... अरे! मत पूछ "
"हुंअ .... बिलकुल ही ओल्ड फैशन ...वो क्या बोलते हैं उसे हिंदी में ! हाँ पुरातन मानसिकता ...ओहो ! मेरी सास तो ऐसी है ... पुराने ख्यालो की , हर बात में रोक टोक
.... हूँ ... बिलकुल गाँव की....सुनती ही नहीं ...... बस या तो मंदिर चली जाएँगी या घर पर बोर करती रहेंगी ... हे ..हे..हे तू समार्ट फोन चलाने की बात कर रही है .. टीवी का रिमोर्ट सही से चला लें वही बहुत है उनके लिए "

ये बाते हो रही थी सुधा की अपनी सहेली से , फोन की दूसरी तरफ सुधा की सहेली निधि थी जिससे सुधा अपने सास की कमियां गिनाते नहीं थक रही थी ।

सुधा का विवाह 2 साल पहले चंदन से हुआ था ,वह शहर में पढ़ी लिखी एक मार्डन लड़की थी ।
सुधा की सास विमला देवी उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बे से जंहा ग्रामीण परिवेश अधिक था पली बढ़ी और शिक्षित हुईं थी ।
पति नरेश कुमार की दिल्ली में नौकरी थी अतः यंही बस गए विमला देवी के साथ ।चंदन इकलौता लड़का जिसकी शादी सुधा से हुई थी ।

ग्रामीण परिवेश की होने के नाते विमला देवी का स्वभाव भी सरल और सीधा सा ही था , जो मिल गया पहन लिया और जैसा मिल गया खा लिया ।पर या सुधा को यही बात अच्छी नहीं लगती थी , उसको लगता था की उसकी सास गंवार है ।

" अरे ! मत पूछ निधि उस दिन हम सब होटल गए थे खाना खाने .... मैंने कितनी बार कहा की मम्मी जी नए फैशन की साडी पहन लो ... पर मानी ही नहीं .... वही पीली सी साडी पहन के चल दिन .... तेरी क़सम निधि मुझे तो बहुत बुरा फील हुआ ... वेटर हमारी तरफ ही घूरे जा रहा था ..... उंह" सुधा अब भी निधि से फोन पर लगी हुई थी ।
" अच्छा चल ठीक है .... रखती हूँ ... सासु माँ आने वाली होंगी मंदिर से ..... बाद में बात करती हूँ " सुधा ने फोन काटते हुए कहा ।

पर विमला देवी तो पहले ही आ चुकी थीं , वे चुपचाप दरवाजे की ओट लिए सुधा की सारी बाते सुन रही थी ।

एक आघात सा लगा विमला देवी को सुधा की बाते सुन के , एक मन किया की सुधा से खूब लड़ाई करें की उसकी हिम्मत कैसे हुई ऐसा कहने की ।
पर यह सोच के चुप हो गईं की सच तो है ही की वे बहु के सामने 'गंवार ' ही हैं ।अतः चुप चाप अपमान का घूंट पी गईं।

कुछ दिन बाद विमलादेवी खाना खा के सोने की तैयारी कर रहीं थी की अचानक उनके पति नरेश ने एक पैकेट विमलादेवी की ओर बढ़ाते हुए बोले-
" हैप्पी बर्थ डे डियर विमला .... हैप्पी बर्थ डे टू यू...हा हा हा .. " हँसते हुए पैकेट विमलादेवी के हाथ में रख दिया ।
" यह तो आपको मेरा जन्मदिन याद था ?" विमलादेवी ने चेहरे पर मुस्कान लिए  गोल आँखे करते हुए पूछा ।
" अरे कैसे भूल जाता ? तुम क्या मुझे भुल्लकड़ समझने लगी जरा सा बुढ़ापे में " नरेश जी ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा ।
" अरे बाबा ! आप तो अभी जवान हैं ... बस! " विमलादेवी ने हँसते हुए कहा ।
" पैकेट खोले के तो देखो मेरी जान! " नरेश जी ने विमलादेवी के गालो पर चिकोटी काटते हुए कहा ।
" फोन!!!" पैकट खोलते ही उसमे रखे बड़े और चमचमाते हुए फोन को देखा विमलादेवी ने लगभग आश्चर्य से चीखते हुए कहा ।
" ओहो! स्मार्ट  फोन कहो ..... स्मार्ट " नरेश जी ने थोडा गर्व से कहा ।
" पर मैं क्या करुँगी ? मुझे तो चलाना भी नहीं आता इसे ?" विमला देवी ने निराशा भरे लहजे में कहा ।
" सुधा से सीख लेना" नरेश जी ने हल बताते हुए कहा ।
" सुधा से नहीं सीखना मुझे " विमलादेवी ने सुधा के नाम से थोडा चिढ़ते हुए कहा ।

नरेश जी ने कुछ सोचते हुए कहा " ठीक है फिर मैं ही सीखा दूंगा .... रात में ऑफिस से आने के बाद "
" अब सुधा और चंदन को दिखा दो अपना फोन " नरेश ने मुस्कुराते हुए कहा ।
पर विमलादेवी को लगा की सुधा फिर उनका मजाक बनाएगी इसलिए किसी को भी फोन दिखाने से मना कर दिया ।उसने तर्क दिया की जब वह सीख जायेगी फोन चलाना तब सरप्राइज देगी सबको ।नरेश जी भी मान गए विमलादेवी की बात ।


तो,  अगले रात  से शुरू हुई विमलादेवी की स्मार्ट फोन की ट्रेनिंग क्लास ।

शुरू में विमला को कुछ समझ न आया , पर धीरे धीरे रूचिकर लगने लगा था उसको ।कंहा वह छोटा सा नोकिया का फोन जिसमे सिर्फ सांप वाला गेम और सिर्फ कुछ रिंगटोन और कंहा यह बड़ी और डिजिटल स्क्रीन वाला फोन ।जब भी वह फोन खोलती फोन के स्वप्नलोक में खो जाती ।

अब वह कई लेबल तक और कई गेम खेल सकती थी ,वीडियो देख सकती थी ,फोटो भी खींच सकती थी ।

रोज रात को नरेश जी से घण्टो फोन के फंक्शन के बारे में अधिक से अधिक जानकारी लेने की कोशिश करती ।कभी कभी तो नरेश जी भी खीज जाते थे ।

पर अभी तक सुधा को भनक तक न लगने दी थी विमला जी ने अपने स्मार्ट फोन की ।

अब तो नेट के बारे में भी पता चल गया था विमला जी को सो 2 gb का नेटपैक रिचार्ज करवा लिया ।

नरेश जी से किसी तरह मान मुन्वल कर विभिन्न साइट्स पर जा वीडियो और गाने भी डाउनलोड करना सीख लिया था । मंदिर में जा अपने नए डाउनलोड भजन का वीडियो चला देती आरती के समय। रोज नए नए भजन अपने फोन से मंदिर के स्पीकर में लगा देती , सारी महिलाएं आश्चर्य करतीं ।

जंहा कीर्तन में विमलादेवी को सबसे पीछे जगह मिलती अब वंही सबसे आगे की सीट उनके लिए रिजर्व रहती ।अब भैया ! विमला जी लीडर बन गईं थी भजन मण्डली की , मजाल है की उनके बिना मंदिर में कोई कुछ कार्यकर्म कर लें ।अपनी विमलादेवी जी भी फूल के कुप्पा हो रही थीं अपनी इस सम्मान पर ,उनकी तो चाल और लहजा ही बदल गया था ... एक दम लीडर टाइप फील।

पर विमलादेवी का असली झटका अभी बाकी था ।

एक दिन दरवाजे की घण्टी बजी तो सुधा ने दरवाजा खोला, सामने एक ऑनलाइन शॉपिंग कंपनी का डिलिवरी बॉय था जो हाथ में एक पैकेट लिए खड़ा था ।
" विमलादेवी " डिलिवरी बॉय ने पूछा ।
"अ..हाँ .... बुलाती हूँ " सुधा को हैरानी हो रही थी की यह ऑनलाइन शॉपिंग किसने की ।

विमला देवी आई और मुस्कुराते हुए साइन किया और पैसे देके पैकेट ले लिया ।
" क्या है यह ? आपने मंगवाया है ऑनलाइन?" सुधा ने आश्चर्य से पूछा ।
"कुछ नहीं! बस एक साड़ी है ..... " विमलादेवी ने लापरवाही से मुस्कुराते हुए बस इतना कहा और अपने कमरे में चली गई ।

सुधा विचलित थी , उसे समझ नहीं आ रहा था की उसकी सास ने कैसे ऑनलाइन आर्डर दे दिया था ? कैसे शॉपिंग करी ?
विमलादेवी अपने कमरे के दरवाजे की की होल से सुधा को देख रही थीं। सुधा को परेशान और आश्चर्यचकित देख उन्हें घनघोर आनंद की अनुभूति हो रही थी ।

फिर तो आये दिन कुछ न कुछ ऑनलाइन शॉपिंग डिलिवरी होने लगी थी । सुधा हैरान परेशान रहती ,उसने कई बार चंदन से इस बारे में जिक्र भी किया पर चंदन ने इसे अनसुना सा कर यह कह के टाल दिया की माँ को कँहा आता है ऑनलाइन शॉपिंग ,माँ किसी और से बुक कराती होगी ।

अब तो सुधा को विमलादेवी दिन बी दिन और बदलती नजर आ रही थीं ।

नए नए कलर की लिपस्टिक , नेलपॉलिश जो खुद सुधा की कलेक्शन में नहीं थे वैसे कलर लगाती थी विमलादेवी ।
बाल भी एक दम नए स्टाइल का कटवा लिया था जिनपर बरगेंड़ी कलर ।

सुबह सुबह जोगिंग शू पहन जोगिंग के लिए भी नरेश जी को जबरजस्ती अपने साथ ले जाती ।नरेश जी और चन्दन  विमला के इस नए अवतार को लेके बहुत खुश थे ।
पर सुधा मन ही मन जल भुन जाती ।उसे तो अब भी समझ नहीं आ रहा था की यह चमत्कार हो कैसे रहा है ।
फोन का राज अब भी विमलादेवी जी ने राज ही रखा था ।

एक दिन परिवार ने फिर होटल में खाना खाने का प्रोग्राम रखा ।सुधा तैयार होके ड्राइंग हाल में विमलादेवी का इन्तेजार करने लगी , सुधा ने अपने हिसाब से सबसे अच्छी साड़ी पहनी थी और मेकअप किया था ।बहुत ही सुंदर लग रही थी ।

विमला देवी ने अपने कमरे के दरवाजे के की-होल से सुधा को देखा और मुस्कुरा दीं । उन्होंने फटा-फट फोन पर एक साडी बाँधने वाली वेवसाइट खोली जो सैकड़ो तरह की साड़ी पहनना सिखाती थी ।
विमलादेवी वीडियो देखती रहीं और वही साड़ी जो उन्होंने ऑनलाइन ऑर्डर देके मंगाई थी पहननी शुरू कर दी , यह एक बेहद खूबसूरत रेशमी कांजीवरम साड़ी थी ।

साड़ी पहनने के बाद विमलादेवी ने मैचिंग की नेलपॉलिश लगाई , मैचिंग की ही हाई हील सैंडल पहनी जिसमे लगे स्टोन अलग ही छठा बिखेर रहे थे ।यह सब उन्होंने अपने स्मार्ट फोन से ऑनलाइन मंगाए थे ।

ऑनलाइन वीडियो चला उन्होंने अपने बालो को करीने से नया लुक दिया , ऐसा लग रहा था की उन्होंने पहले ही वीडियो देख देख के अभ्यास कर लिया था और आज फाइनल प्रयोग कर रहीं थी अपने ऊपर ।बालो को सजाने के बाद मेकअप किया जो की बिलकुल उनकी पर्सनाल्टी पर सूट कर रहा था ।

इधर सुधा और सभी तैयार होके विमलादेवी का ही इन्तेजार कर रहे थे , सुधा को लग रहा था की कंही मम्मी ओवर मेकअप न कर लें इस बार और पहले की तरह होटल में बेज्जती करवा दें।

थोड़ी देर में विमलादेवी अपने कमरे से पर्स लेके निकली ।
गजब!
अद्भुत!!
उत्कृष्ट !!!

विमलादेवी जैसे विमलादेवी न होके कोई दूसरी ही हो ।चेहरा  बुढ़ापे के सारे चिन्ह गायब कर नई आभा बिखेर रहा था, बहुत ही करीने से गुथा हुआ जुड़ा ।साडी ऐसे पहनी हुई थी की जैसे किसी प्रोफेसनल ने पहनाई हो , परफ्यूम की भीनी भीनी खुशबु विमलादेवी जी के सौंदर्य और व्यक्तित्व में चार चाँद लगा रहा था ।

सभी लोग मन्त्रमुग्ध विमलादेवी के इस नए रूप को देख रहे थे , तभी जैसे नरेश जी को होश आया हो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा -
" वाह वाह विमला ... सच में तुमने कमाल कर दिया !!...यार मैं सच में तुम्हारे सामने बूढ़ा लग रहा हूँ " इतना कहा नरेश जी ठहाका मार हँस दिए ।
" माँ सच में आपने जादू कर दिया .... अरे आप तो सुधा की बड़ी बहन लग रही हैं " अब चन्दन की बारी थी तारीफ करने की ।

विमलादेवी केवल मुस्कुरा दी ,उनकी तिरछी नजर सुधा पर ही थी ।
किन्तु सुधा तो जैसे निशब्द थी , उसे समझ नहीं आ रहा था की यह कैसे हुआ ।सुधा खुद को विमलादेवी के आगे कमतर पा रही थी ।

सभी लोग कार में बैठ होटल की तरफ चल दिए ।

तभी सुधा के फोन पर निधि का फोन आया ।निधि आश्चर्य  से पूछ रही थी -
" सुधा! तेरी सासु माँ की whatsapp  पर रिक्वेस्ट आई है ... तू तो कर रही थी की उन्हें स्मार्ट फोन नहीं चलाना आता है "

सुधा ने सुना तो बिना कुछ जबाब दिए फोन काट दिया , उसने अपने फोन पर नजर डाली तो whatsapp  नोटिफिकेशन में विमलादेवी का मैसेज दिखा रहा था ।उसने क्लिक किया तो विमलादेवी की फोटो सहित एक 'hi' का मैसेज था ।

सुधा ने घोर आश्चर्य से विमलादेवी की तरफ देखा तो विमला देवी ने व्यंगात्मक मुस्कुराहट लिए पूछा -
" कैसी लग रही है तुम्हारी मोर्डन सास?"

सुधा ने अपराधबोध से सर नीचे कर लिया और कहा -
" मुझे माफ़ कर दीजिये "
विमलादेवी ने आगे बढ़ के सुधा को गले लगा लिया ।

बस यंही तक थी कहानी ....



फोटो साभार गूगल 

Sunday, 7 August 2016

जानिये नाग और बुद्ध में सम्बन्ध तथा क्या है टोटमवाद

अब तक अपने पढ़ा की किस तरह गणपति को हाथी के सर वाला कह उनकी मूर्ति हस्तिसर लिए बनाया जाता है जबकि वास्तव में हाथी चिन्ह प्राचीन टोटम रहा होगा ।
जिसे दर्शाने के लिए मानव( गणपति) के सर पर हाथी का सर लगा दिया गया , इसी प्रकार मूषक भी कोई दक्षिण की  प्राचीन जाति थी जिसको हाथी वाले ( बौद्ध ) टोटम प्रयोग करने वाले किसी राजा ने हराया था ।

अब आगे -

यदि आप वैदिक धर्म ग्रंथो का अध्यन करेंगे तो आप पाएंगे की वैदिक ग्रन्थो के नाम पशु पक्षीयो के नामो से रखे गए हैं , ऋषि मुनियो के नाम पशुओ पक्षियों पर रखे गएँ हैं ।

आदि शंकराचार्य से सम्बंधित एक घटना बहुत प्रसिद्ध है जिसमें वे एक श्वान अर्थात कुत्ते से ज्ञान  लेते हैं ।
पर क्या वास्तव में कोई कुत्ता इंसानी भाषा में ज्ञान दे सकता है ?
इसका सत्य जानने के लिए हम शंकर भाष्य  छान्दोग्य उपनिषद के प्रथम प्रपाठक का 12 वां खंड का 4 मन्त्र देखेंगे  जिसमे ग्लव वेदों का अध्यन करने निर्जन स्थान पर गया जंहा उसके पास कुत्ते आते हैं और उससे कहते हैं " हे महानुभाव् हम भूखे हैं कृपा हमारे लिए मंत्रोउच्चारण से अन्न लाएं । उसके बाद जैसे दलभ्य ऋषि मंत्रो का उच्चारण करने लगे वैसे ही कुत्ते भी करने लगे " ओम हमें भोजन दो ! ओम् हमें पेय दो ! ओम हमें अन्न दो "

यंहा शंकराचार्य कुत्तो द्वारा वैदिक मंत्रोउच्चारण करवा देते है , तो क्या वास्तव में ये कुत्ते रहे होंगे ?

हरगिज नहीं ।पर बाद के वैदिकों ने उन्हें सच का श्वान मान लिया और वैसा ही चित्रित करने लगे ।

अब हम फिर से देवी प्रसाद चट्टोपाध्याय जी का सन्दर्भ देखते हैं ,वे कहते हैं की प्राचीन काल की प्रस्थितियां ऐसी रही है जिनमे मनुष्य पशु पक्षीयो के नाम आसानी से रख लेता था ।
स्वयं वैदिक संहिताओं की कई शाखाएं जो आज विलुप्त हो गई है उनके नाम भी पशुओ पक्षीयो पर रखे गए थे ।
अधिकतर ये शाखाएं आज विलुप्त हो गई है पर शकल शाखा आज भी विद्यमान है ।शकल शब्द की व्युतपत्ति एक प्रकार के सांप के नाम से हुई है ।
यानि शकल का अर्थ है सांप ।

जो प्राचीन शाखाएं विलुप्त हुई हैं वे माण्डूकायन, आश्वलायन आदि थी । माण्डूक्य का अर्थ हुआ मेंढक और आश्व यानि घोडा ।

कृष्ण यजुर्वेद संहिता में प्रसिद्ध शाखा है तैत्तिरीय जिसका नाम तितर पक्षी से बना है ।उसकी उपशाखाएं है वराह ,छागलेय आदि जिनका अर्थ है सूअर ,बकरा ।

कुछ उपनिषदों के नाम देखिये ,श्वेताश्वर अर्थात सफ़ेद खच्चर , मांडूक्य अर्थात मेंढक , कोशितिक अर्थात उल्लू , आदि ।
इसी प्रकार हम ऐसे ऋषियो के नाम भी देखते हैं जिनके नामो से हिन्दू धर्म में गोत्र निर्माण हुआ - कौशिक ( उल्लू), कश्यप ( कछुआ) , गौतम ( बैल) ।
वैदिक साहित्य में शुनःशेष की कहानी प्रसिद्ध है जिसका अर्थ है कुत्ते की पूँछ।

कौटिल्य के अर्थशास्त्र में (11/1) में श्वान(कुत्ते) कहलाने वाले लोगो का उल्लेख है।

अब प्रश्न है की ये ऐसे पशु पक्षीयो वाले नाम के लोग कौन थे ?
इसका उत्तर देते हुए रसल कहते हैं की जनगणना रिपोर्ट में आज भी ऐसी जनजातियां मिल जाएँगी जिनके नाम पशुओ / पक्षीयो/ पौधों  के नामो पर होंगे ।प्रसिद्ध इतिहासकार अय्यर ने विवरण दिया है की मैसूर की आदिवासी जातियो में 'श्वान' नाम की जनजाति अब भी है ।
कहने का अर्थ यह हुआ की जो वैदिक साहित्य में श्वान , हाथी, खच्चर , मांडूक्य , मत्स्य ,मूषक जैसे नामो वाले या चिन्ह वाले  पात्र है वह दरसल व्यक्ति ही थे ।

इसी प्रकार भारत में नागो के बारे में भी मिथक है , नाग मतलब सर्प या सांप ।

परन्तु नाग भी वास्तव में भारतीय जनजाति के मनुष्य ही थे जिनका टोटम नाग रहा होगा ।नागालैंड,नागपुर आदि नाग सूचक स्थान आज भी भारत में है जिसका अर्थ है की निश्चित ही इन स्थानों पर नाग सत्ता रही होगी ।
बुद्ध जब तपस्या कर रहे थे तो उन्हें खीर खिलाने वाली नाग कन्या का विवरण मिलता है ।
वैदिक ग्रंथो में पांच नागो का वर्णन है , अंनत, वासुकि, तक्षक , ककोर्टक तथा पिंगल ।

आंनदरामायण में पिंगला(सर्प कन्या) नाम की स्त्री का वर्णन है जो राम की शैय्या पर उस समय आती है जब सीता अपने शिविर ने निंद्रा में होती हैं । वह बात अलग है की उसे वैश्या कह के संबोधित किया है जिसे राम अलग जन्म में कुब्जा होने का वरदान दे कृष्ण के रूप में रमण करने का वादा करते हैं ।

बुद्ध की एक ऐसी मूर्ति प्राप्त हुई है जिसमे सात नागो का क्षत्र बना हुआ है संभवत: ये नाग उन नाग टोटम लोगो का प्रतीक है जिन्होंने बुद्ध को समाधी / ध्यान के समय सहायता या रक्षा की होगी ।

जायसवाल जी वसभ खत्तीय नाम की शाक्य कन्या का वर्णन करते हैं जिसका पिता महामान शाक्य होता है और माता नाग वंशीय ।
अर्थात शाक्य जनजाति ( बुद्ध) और नागो में विवाह सम्बन्ध थे ।

बहुत से पाठक यह सोच रहे होंगे की टोटम का अर्थ क्या हुआ ? हलाकि यह बता दिया गया है की टोटम अर्थात प्रतीक चिन्ह , यह प्राचीन जनजातीय समूहों के प्रतीक चिन्ह होते थे जो किसी भी पशु , पक्षी  अथवा पेड़ पौधों पर हो सकता था ।
जैसे रीछ, मत्स्य , हाथी , नाग , मूषक , गरुण , हंस, असोक आदि ।
प्रसिद्ध इतिहासकार मोर्गन के अनुसार टोटम शब्द अमेरिका की आजिबवा जान जाति की बोली के एक शब्द के आधार पर बना जिसका अर्थ है काबिले का प्रतीक चिन्ह ।
संक्षेप में टोटमवाद को इस प्रकार को समझ सकते हैं - जनजाति में सम्मिलित प्रत्येक काबिले का सम्बन्ध किसी पशु या पौधे से होता है जो उसका प्रतीक चिन्ह 'टोटम' कहलाता है ।कबीले के सदस्य स्वयं को अपने टोटम जैसा और उसका वंसज मानते हैं । उदहारण के लिए नाग टोटम के लोग स्वयं को नाग वंशीय , हाथी टोटम के काबिले के लोग स्वयं को हस्तिवंशिय ।

मोरे ने टोटमवाद का सामजिक संगठनात्मक से जुडी बेहद रोचक जानकरी दी है जिसे देवी प्रसाद जी उद्धत करते हैं " एक टोटमवादी समाज में कोई भी राजा या प्रजा नहीं होता ।यह जनतंत्रीय या साम्यवादी होता है , काबिले के सभी लोग एक दूसरे के साथ समता के आधार पर रहते हैं और कबीले के प्रतीक चिन्ह का आदर करते हैं .... प्रतीक चिन्ह के आधीन सब लोग सम्मिलित होते हैं और यही प्रत्येक सदस्य का एक दूसरे के साथ घनिष्टता का मूलतत्व होता है ।"

इस आधार पर यह कहा जा सकता है की अति प्राचीन भारतीय समाज टोटमवाद था जिसका प्रतीक चिन्ह हाथी, नाग , शाक्य( बेल/गोतम) , मूषक आदि रहे होंगे ।

परन्तु आश्चर्य है की हॉपकिन्स वैदिक सभ्यता को टोटमवादि नहीं मानते , उनके अनुसार जब वैदिक लोग भारत आये तो वे टोटम विहीन थे ।

क्रमशः

Wednesday, 3 August 2016

झोला छाप -कहानी

गरीब परिवार के होने के कारण नंदू किसी तरह गाँव की पाठशाला में दसवीं पास करने के बाद शहर आ गया था  रोजगार तालाश में ।परन्तु कोई ढंग का काम समझ न आने के कारण उसने एक डॉक्टर के क्लीनिक पर नौकरी करना ही उचित समझा ।

डॉक्टर के पास 5-6 साल असिस्टेंट का काम करते करते उसे काफी प्रेक्टिस हो गई थी ।कभी कभी ऐसा भी होता था की डॉक्टर की अनुपस्थिति में वह जनरल मरीजो को दवाई दे देता था ।कभी कोई शिकायत न आई उसके द्वारा दी हुई दवाई से , कई मरीज तो उसे डॉक्टर ही समझने लगे थे ।

अब उसे इतना ज्ञान और अनुभव हो गया था की वह खुद का छोटा क्लीनिक चला सकता था , पर ऐसा करना शहर में ठीक न था ।उसके पास डिग्री न थी ।

उसने निश्चय किया की वह अपने गाँव चला जायेगा और वंही लोगो का इलाज करेगा,आखिर गाँव में भी तो कोई दूर दूर तक डॉक्टर नहीं है ।गाँव में गरीब आदमी इलाज के लिए  भटकता रहता है उसे समय पर इलाज नहीं मिलता ,कई बार तो मामूली बुखार की दवाई लेने भी कोसो दूर जाना पड़ता है गाँव के लोगो को ।

यही निश्चय कर उसने शहर छोड़ दिया और आ गया अपने गाँव ।

गांव आने के बाद उसने अपने कमरे में ही छोटा सा क्लीनिक का रूप दिया और एक साईकिल खरीद ली ।
कुछ दिनों में एक्का दुक्का मरीज आने लगे थे उसके पास पर इससे कँहा काम चलता उसका इसलिए वह अपनी साईकिल पर अपना झोला बांधता जिसमे चकित्सा  का सामान रखता और  निकल पड़ता गाँव गाँव ।

उसकी दवाईयाँ बड़ी सस्ती और असरकारक होती थीं , जो मरीज दूसरे डॉक्टर की 3-4 खुराक दवाई खा के भी ठीक न होता नन्दू उसे दो खुराक में ठीक कर देता ।

मुख्य रूप से नन्दू के पेसेंट बहुत ही गरीब लोग होते थे जो बड़े डॉक्टर के पास जाना तो दूर की बात थी दवाई तक के पैसे न दे पाते थे ।पर नन्दू बिना पैसे की परवाह किये सबका इलाज करता , जिसके पास पैसे न होते वह नन्दू को अनाज दे देता था ।नन्दू को जो मिल जाए या न भी मिले उसमे खुश रहता ।

यूँ समझिये की नन्दू को लोगो को इलाज करने का जनून था , घर पर तो गरीब लोगो की भीड़ रहती ही थी उसके आलावा कोई चाहे दिन में बुला ले उसे या रात में हमेशा उसका झोला उठा ही रहता ।

अब नन्दू गांव गांव में ' झोला बाबू' के नाम से प्रसिद्ध हो गया था ।गरीब लोगो का एक मात्र सहारा था नन्दू ।


केशव  जो की कभी नंदू के साथ ही दसवीं तक पढ़ा हुआ था  और दूसरे गाँव में रहता था ।दोनों कभी अच्छे मित्र थे ।

केशव की आर्थिक स्थिति नन्दू से बेहतर होने के वह आगे पढता रहा और अब स्नातक है ।सरकारी नौकरी भी लग गई थी अतः थोडा  घमण्डी भी हो गया था ।शादी हो गई थी तो दो बच्चे भी थे , बड़ी बेटी और उससे छोटा बेटा 3 साल का ।

केशव जब नन्दू को झोला टाँगे साईकिल पर घूमते हुए देखता तो उसका मजाक बनाता ।
" दसवीं पास भी आज कल डॉक्टर बन गए हैं .....क्या होगा इस देश का ?"
ऐसे व्यंगवाण केशव के मुंह से अक्सर नन्दू के लिए निकल जाते थे ।केशव एक भी मौका नहीं गंवाता था नन्दू का अपमान करने का , ख़ास कर उसे झोला छाप डॉक्टर होने का ।

एक तरह से चिढ सी थी केशव को नन्दू से ।

पर केशव जितना नन्दू से चिढ़ता नन्दू उतना ही केशव की बातो पर ध्यान नहीं देता था ।वह हँस के केशव की हार बात को टाल देता था , जैसे किसी चीज का बुरा मानना उसने सीखा ही न था ।

केशव की आर्थिक  स्थिति नंदू से बेहतर होने क वह नंदू को जरा सी भी कद्र नहीं करता था, सुरेश सोचता की नंदू आठवीं पास और वह कँहा स्नातक। हमेशा नन्दू को और उसके झोला छाप डॉक्टर होने का मजाक बनाता , कभी कभी तो मुंह पर ही बेइज्जती कर देता था पर नंदू सुरेश की बाते हंस के टाल देता ।


सर्दियो के दिन थे , केशव  का बेटा दिन भर अच्छा भला खेल रहा था पर जैसे ही रात हुई अचानक  उसे तेज बुखार चढ़ना शुरू हो गया। केशव ने घर में पड़ी हुई दवाई पिलाई पर उससे भी फर्क नहीं पड़ा।

 जैसे जैसे रात गहरा रही थी बच्चे का बुखार तेज होता जा रहा था। रात को 11 बजे के करीब बच्चे को इतना तेज बुखार चढ़ा की उसकी आवाज बंद हो गई और आँखे पलट गईं ,पसलियां तेज चलने लगीं। सुरेश ने हर उपाय कर के देख लिया पर कोई फर्क नहीं पड़ा, पूरा परिवार घबरा गया और फ़ौरन कस्बे के नामी डॉक्टर के पास जाने की तैयारी की गई।

उन दिनों गाँव में वाहन की सुविधा नहीं होती थी और न ही किसी के पास मोटरगाड़ी ही होती थी ।जो थोड़े सम्पन्न होते थे उनके घर पर साईकिल एक मात्र सहारा होती थी वाहन के तौर पर ।

केशव ने साईकिल निकाली , पर यह देख के कलेजा मुंह को आ गया की साईकिल पंचर खड़ी है ।विकट समस्या थी , इधर बच्चे की हालात पल पल गम्भीर होती जा रही थी ।
गांव में किसी और के पास साईकिल भी न थी की उसकी मांग लिया जाये ।

थक के यह निश्चित हुआ की पैदल ही कस्बे के डॉक्टर के पास जाया जायेगा ।बच्चे को कम्बल में लपेटा गया और 5 किलो मीटर दूर क़स्बे की तरफ पैदल ही चल दिए ।

साथ में उसके पिता और उसकी पत्नी भी थे, रास्ते में कड़ाके की ठण्ड, घने कोहरे और झाड़ियो तथा खड़ी फसलों से टपकती ओस की परवाह न करते हुए तीनो तेजी से बढ़े जा रहे थे।

 तक़रीबन एक घंटे बाद वे कस्बे में स्थित डॉक्टर के पास पहुँचे।

वंहा देखा तो क्लीनिक में ताला लगा हुआ था बोर्ड पर लिखा हुआ था ‘ डॉक्टर महेश MBBS ‘। डॉक्टर के घर में काफी देर आवाज लगाने के बाद डॉक्टर की पत्नी उठ के आई और दरवाजा आधा खोला-
" नमस्ते मैडम जी , डॉक्टर साहब को बुला दीजिये ... मेरा बच्चा बहुत बीमार है " केशव ने गिड़गिड़ाते हुए कहा ।

“डॉक्टर साहब घर पर नहीं हैं, बाहर गए हैं ... सुबह दवाखाने में आना " इतना कह झट से दरवाजा बंद कर लिया ।
"मेरी बात सुनिए मैडम जी ... मेरी बात " केशव बंद दरवाजे के सामने ही गिड़गिड़ाने लगा ।पर दरवाजा न खुला केशव को बहुत निराशा हुई, वह जानता था कि डॉक्टर घर में ही सो रहा है पर आना नहीं चाहता है।



तीनो मन मार के वहाँ  से चल दिए, कस्बे में तक़रीबन 4-5 डॉक्टर थे सुरेश सब के पास गया पर कहीं ताला लगा हुआ मिलता तो कोई सुबह आने की बात कह के उसे भगा देता।

यह सब देख केशव की  पत्नी का बुरा हाल हो रहा  था। वह बार बच्चे का चेहरा देखती और  रो देती , बुरे ख्याल उसको व्याकुल और विचलित कर देते ।
अब केशव के पिता का भी धैर्य जबाब देने लगा था उन्होंने केशव से कहा -

" अरे दूसरे गांव में  नन्दू है न .... सुना है बहुत अच्छा इलाज करता है .... चल उसी के पास चलते हैं .... तेरा तो वह दोस्त भी है "
" पर पिता जी वह तो झोला छाप डाक्टर है ?वो क्या इलाज करेगा? " केशव ने सकुचाते हुए पूछा ।
" जा के देख लेने में क्या हर्ज है , इस समय तो वैसे भी कोई और डॉक्टर नहीं है " केशव के पिता ने कहा

केशव  का मन तो नहीं माना पर और कोई चारा न देख उसने मौन स्वीकृति दे दी ।


सर्द रात और गहरी होती जा रही थी और उसके साथ आशा और निराशा के हिंडोले में तीनो का मन भी झूल रहा था ।तीनो तेजी से चलते हुए नन्दू के घर की तरफ रवाना हुए ।इस बीच केशव को बार बार अपना नन्दू को अपमान करना याद आ रहा था , वह सोच रहा था की यदि नन्दू ने भी उसके किये का बदला लेने के लिए इलाज करने से मना कर दिया तो क्या होगा ।मन ही मन नन्दू के व्यवाहर की आशंका से भयभीत हुआ जा रहा था ।

नन्दू के घर पहुँच के केशव पीछे ही खड़ा रहा , उसके पिता ने द्वार खटखटाया ।रात के ढाई बज चुके थे अब ।केशव चिंतित था की पता नह यह भी दरवाजा खोलेगा की नहीं ।

दो बार सांकल बजाने पर भीतर से दरवाजा खुल गया ।
सामने नन्दू खड़ा था ।

नन्दू ने जब इतनी रात को केशव और उसके परिवार को देखा तो वह चौंक गया उसने आश्चर्य से पूछा -
" क्या है केशव ? सब ठीक तो है न?"
" भैया .... बच्चे की तबियत बहुत ख़राब है .." जबाब दिया केशव की पत्नी ने और रोने लगी ।
" आप चुप हो जाइए ... मैं देखता हूँ .... भीतर लाइए बच्चे को " नन्दू ने कहा और तेजी से अपने क्लीनिक नुमा कमरे में आ गया ।

बच्चे को चारपाई पर लिटाया गया , नन्दू ने स्टेथोस्कोप से बच्चा का अच्छी तरह मुआयना किया और बोला-
"वाकई बच्चे की हालत बहुत ख़राब है ... अच्छा हुआ आप समय पर ले आये अगर जरा सी देर हो जाती तो बड़ा मुश्किल हो जाता "

नंदू से तीव्रता से झोले में से इंजेक्शन निकाला और बच्चे को लगा दिया ,पानी से पूरा बदन पोछा ।

उसके बाद नन्दू ने अपनी पत्नी को अलाव जलाने के लिए कह दिया साथ ही काली चाय भी केशव और उसके परिवार के लिए ।

अलाव की गर्मी और चाय से सर्दी से ठिठुरते केशव और उसके परिवार को राहत मिली ।केशव चुप था , उसके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकल रहा था ।

नन्दू सारी रात बच्चे की देखभाल करता रहा , कभी बुखार जांचता तो कभी अलग दवाई देता तो कभी पानी की पट्टी सर पर रखता ।उसे जैसे अपना होश ही न था , बस बच्चे की परवाह थी ।अक्सर ऐसा ही नन्दू हर मरीज के साथ करता था , नन्दू पूरी तरह से मरीज की तीमारदारी में लीन हो जाता ।

केशव अपनी आँखों से सब देख रहा था ,नन्दू के प्रति उसके मन में जो घृणा थी वह कब की निकल गई थी उसकी जगह श्रद्धा ने ले लिया था ।
केशव की आँखों से आंसू आ रहे थे पर वह उन्हें चुपचाप मिटा देता।


सुबह होने वाली थी ।

तभी बच्चे की कराह सुन सभी के कान चौकन्ने हो गए , वे भाग के कमरे में गए तो देखा की बच्चे ने आँखे खोल दी थीं। नंदू बच्चे के सिराहने खड़ा था , बहुत थका हुआ लग रहा था पर उसके मुंह पर विजयी मुस्कान थी ।

" केशव भाई .... अब बच्चा खतरे से बाहर है .... थोड़ी देर लगेगी और ठीक होने में " नन्दू ने मुस्कुराते हुए कहा ।

केशव के चेहरे पर ख़ुशी के आंसू आ गए , वह अचानक नन्दू के पैरो पर झुक गया ।
" मुझे माफ़ करो नन्दू भाई ... आज तुम न होते तो मेरा बच्चा न बचता " केशव की आँखों में आंसू थे जिसे उसने अब छुपाया न था ।

" अरे केशव भाई क्या कर रहे हो ??.... तुम मेरे दोस्त हो ..... ऐसा मत करो ... मैं तो हमेशा तुम्हे दोस्त समझाता रहा हूँ " इतना कह नन्दू ने केशव को गले लगा लिया ।
" और हाँ! अब बच्चे को किसी हस्पताल ले जाइये ताकि और बेहतर इलाज हो सके .... मेरे पास सिमित साधन है " नन्दू ने सलाह दी ।

केशव के आंसू अब भी नहीं रुक रहे थे , उसने क्या सोचा था और नन्दू क्या निकला ...आज कम पढ़ा लिखा  नन्दू केशव को मानवता का पाठ पढ़ा गया था जो किसी भी उच्च डिग्री से अमूल्य थी ।

बस यंही तक थी कहानी ।
फोटो साभार गूगल


Tuesday, 2 August 2016

जानिए कौन थे गणपति(गणेश)

गणपति अर्थात गणेश ।गणपति जिसे कई नामो से जाना जाता है जैसे विघ्नेश्वर, एकदंत, विघ्नेश ,लम्बोदर  विघ्नकृत,विनायक  आदि ।

गणेश की जो प्रतिमा वर्तमान में मिलती है वह हाथी के सर वाली दिखाई जाती है जिसका वाहन मूषक होता है ।

गणपति की  उत्पत्ति की जो प्रमुख पौराणिक कथा है वह यह है की उनकी माता पार्वती ने उन्हें अपने मैल से उतपन्न किया ।
दूसरी कथा ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार गणेश के जन्म के बाद उन पर शनि की दृष्टि पड़ी तो उनका सर कट गया इसलिए शोक में डूबी पार्वती पर दया कर एक हाथी का सर लगा दिया ।
परन्तु स्कन्द पुराण में इसके उलट यह कहा गया है , की सिंदूर नामक एक दैत्य पार्वती के गर्भ में प्रविष्ट हो गया और भूर्ण का सर खा गया अत: बालक बिना सर के उतपन्न हुआ ।उसके बाद बालक ने गजासुर नाम के दैत्य का वध कर उसका सर लगा लिया ।

खैर, कहानी कुछ भी हो पर यह तो तय है की गणपति का सर हाथी का आरम्भ से नहीं था यह तय है । हाथी के सर की कल्पना बाद की है ।
गण का साधारण शाब्दिक अर्थ होता है ' साधारण जन' और पति का अर्थ हुआ ' मुखिया ' अर्थात साधारण जानो का मुखिया  ।विल्सन ने 'गण' का अर्थ किसी दर्शन या सम्प्रदाय बताया है ।

पाणिनि ने गण का अर्थ संघ बताया है ।

हम जानते हैं की गोतम बुद्ध के समय सर्वप्रथम  संघ प्रकाश में आये जो विभिन्न श्रेणियो ( शिल्पिओ ) का समूह होता था ।


आइये हम अब गणपति के विषय में और रोचक जानकरी एकत्रित करते है , देवी प्रसाद चट्टोपाध्याय अपनी प्रसिद्ध कृति ' लोकायत' में लिखते हैं ।

आरम्भ में गणपति ब्रह्मणिक देवता नहीं थे, उन्हें देवत्व बाद में प्राप्त हुआ है ।
प्राचीन ग्रन्थो में ब्रहस्पति का एक नाम भी  गणपति माना गया है ,गणपति और बृहस्पति नाम की समानता ऋग्वेद के दूसरे मंडल 23वें सूक्त में मिल जायेगी । बृहस्पति अवैदिक और भौतिकतावाद ( लोकायत) के गुरु माने गए हैं।
गणपति के दो नाम और प्रचलित थे लोकबद्ध और लोकनाथ ।

लोकबद्ध का अर्थ हुआ लोगो के मित्र और लोकनाथ का अर्थ हुआ लोगो के रक्षक ।
लोक का सांकेतिक अर्थ होता है साधरण जन ।लोकायत भी इसी नाम से बना है 'लोकायत' अर्थात साधारण जानो में प्रचलित ।
गणपति का सबंध तंत्रवाद से भी था जैसा की लोकायत से, तांत्रिक साहित्य में  गणपति  50 अधिक वैकल्पिक नाम संबोधित हुए हैं ।इसके अतरिक्त आन्दगिरि के 'शंकर विजय' में कई गणपत सम्प्रदाय या गणपति के अनुयायियो का जिक्र है ।आन्दगिरि ने स्पष्ट शब्दों में कहा है की गणपति के अनुयायी और कोई नहीं केवल वामाचारी यानि  तांत्रिक थे ।

आरम्भिक काल में गणपति को श्रेष्ठ देवता नहीं माना गया है उन्हें कष्ट और विपत्ति लाने वाला देवता माना गया था पर बाद में उनके बारे में विचार बदल गए ।गणपति  को कष्ट और विपत्ति लाने के देवता से सफलता और सौभाग्य का देवता मानने का काल पांचवी इसा पश्चात हुआ ।

पांचवी शताब्दी में लिखा गया ' मानव गृह्य सूत्र ' नामक धर्म ग्रन्थ में गणपति या विनायक केवल भय या तिरस्कार की भावना उतपन्न करते हैं ।

इसी प्रकार याज्ञवल्क्य ने भी गणपति के प्रति घृणा दर्शाई है ।वह कहता है की गणपति से आक्रांत वयक्ति लाल कपडे हुए और सर मुंडे हुए व्यक्ति स्वप्न में देखता है ।

सर मुंडे और लाल वस्त्र  पहने बौद्ध भिक्षु होते थे ।

मनु ( 3/219) में तो ब्राह्मणो को गणो का अन्न तक खाने को निषेध कर देते है ।मनु सीधा शुद्रो और दलितों का अन्न खाने से मना करते है , यानि मनु के अनुसार गण शुद्र अछूत रहे होंगे ।

गणपति के प्रति घृणा केवल ग्रंथो तक न रही बल्कि प्रसिद्ध इतिहासकार गुप्त अपनी पुस्तक शिक्षा और सभ्यता में कहते हैं की गणपति की प्राचीन प्रतिमाओ में उन्हें  भयानक दानव दिखाया गया है ।

यदि हम गणपति के प्रचीन नामो जैसे विघ्नकृत, विघ्नेश , विघ्नराज जैसे शब्दों को देखेतो इनका सीधा और सरल अर्थ होता है विघ्न डालने वाला परन्तु बाद में इन शब्दों को उपेक्षित कर आधुनिक विद्वान् इनका अर्थ करते हैं ' विघ्न को हरने वाला' ।
परन्तु धर्म सूत्र में गणपति के लिए एक शब्द का इस्तेमाल किया है ' विघ्न' अर्थात जो बाधा उत्तपन्न करे।

गणपति के बारे में रोचक जानकरी और देते है देवी प्रसाद जी , गणपति को एक दन्त कहा गया है यानि एक दांतो वाला ।इस के बारे में ब्रम्ह वैवर्त पुराण के कथा है की परशुराम और गणपति के बीच युद्ध हुआ और जब परशुराम ने कुल्हाड़ा मारा तो गणपति का एक दांत टूट गया ।

सब जानते हैं की परशुराम पुरोहित  सत्ता के प्रबल पक्षधर थे तब गणपति ने परशुराम से युद्ध किया तो इसका तात्पर्य यह हुआ की गणपति के सम्मुख उनका शत्रु पुरोहित वर्ग था ।

बंगाल में गणपति की एक ऐसी मूर्ति मिली है जो कमल सिंहासन के नीचे उन्हें पड़ा हुआ दिखाती है जिसके हाथ में तलवार और ढाल है ।अर्थात उन्होंने बिना युद्ध किये समर्पण नहीं किया होगा ।कमल प्रतीक है विष्णु का , विष्णु प्रतीक है पुरोहित वर्ग के ।

गणपति का विघ्न देवता से सिद्धिदाता का उदय कब हुआ यह समझना कठिन नहीं , कोंडिगटन की ' एशेन्ट इंडिया ' में गणपति की ऐसी प्रतिमा का उल्लेख है जो पूर्ण वैभव और साज सज्जा से दिखाया गया है ।यह प्रतिमा 5वीं शताब्दी के आस पास की है और इसे गणपति के नए अवतार की प्रारम्भिक मूर्तियो में से समझा जाता है ।

यही समय गुप्त राजाओ का भी था , कुमारस्वामी कहते हैं की गुप्त राजाओ के शासन से पहले गणेश की कोई मूर्ति नहीं थी ।यानि की गणपति को सिद्धि दाता और उनकी उपासना इस काल में आरम्भ हुई ।

आगे देवी प्रसाद जी फिर कहते है की मध्य काल के ग्रन्थो में गणेश ( गणपति) के हस्ती मुख , मूषक वाहन आदि कई तरह जिक्र है जबकि प्राचीन ग्रंथो में ऐसा नहीं है ।

इसका उत्तर देते हुए वे कहते हैं की हस्ती सर टोटम (प्रतीक चिन्ह ) दर्शाता है । जैसा की हैम जानते है दुनिया भर में प्रत्येक काबिले का एक टोटम होता है जो पशु , पक्षी अथवा पेड़ पौधों पर हो सकता था ।
जैसे जब यूनानी भारत आये तो उनका टोटम पंख फैलाये बाज था ।

भारत में भी टोटमवाद रहा है , मतंग( हाथी)  राजवंश की स्थापना कोसल के बाद के काल की है ।मतंग राजवंश  ने सिक्के चलवाए और एक विस्तृत राजसत्ता कायम की ।
मतंग राजसत्ता ललित विस्तार के अनुसार मौर्य राजाओ से पहले की है पंरतु हम यह नहीं कह सकते की मतंग राजसत्ता स्थापित होने से  गणपति के देवत्य का स्थान प्राप्त हुआ होगा ।
परन्तु इससे यह सिद्ध होता है की हाथियो (टोटम) की राजसत्ता कभी रही होगी ।

अब केवल मतंग सत्ता  ही नहीं हस्ती सत्ता नहीं रही होगी बल्कि शिलालेखो से पता चलता है की बहुत से हस्तिसत्ता भारत में रही जैसे खारवेल की रानी ने स्वयं को हस्ती की पुत्री बताया ।

एक और गौर करने लायक उदहारण देना चाहूँगा मैं आपको , की बौद्धों का और हाथियों का सम्बन्ध जग उजागर है । किद्वंतीयो के अनुसार गोतम के जन्म से पूर्व उनकी माता के सपने में हाथी आता है ।

अतः बाद के कई बौद्ध राजो जैसे मतंग आदि ने हाथी को अपना टोटम बनाया ।
तो यह सिद्ध है की गणपति का जो हस्ती सर है वह दरसल बौद्ध राजाओ का टोटम था ।

अब आते हैं गणेश की सवारी मूषक पर ।

जिस तरह से हाथी प्राचीन काल में बौद्ध राजाओ का टोटम रहा है उसी प्रकार मूषक भी प्राचीन कबीलो या समूहों का टोटम रहा है ।

मूषक लोग दक्षिण भारत के निवासी थे , नाट्यशास्त्र ( जो की इसा पूर्व 100 और इसा पश्चात 100 तक लिखी होने की सम्भावना है )में तोसल, कोसल और मौसल (मूषिका) जनो का उल्लेख है ।

पुराणों में  विंध्य देशो के  मूषक जानो का उल्लेख मिल जाता ।पर यह स्पष्ट नहीं है की मूषको की राजसत्ता भी कभी रही होगी ।

जाने मने इतिहासकार जायसवाल जी जिन्होंने महत्वपूर्ण शिलालेखो को पढ़ने और उन्हें समझने का उद्देशय ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया था ।वे कहते हैं
मूषको को पराजित होने की कथा प्रसिद्ध हस्तिगुफा ( हाथी गुफा)में कलिंग के राजा खारवेल के शिलालेखो में मिलती है ।ये शिलालेख 160 इसा पूर्व बताये जाते हैं ।जायसवाल जी बताते हैं की प्रथम शिलालेख की चौथी पंक्ति में उल्लेख है की राजा खारवेल ने मूषको को पराजित किया ।जायसवाल के अनुवाद के अनुसार " वह मूषिको की राजधानी विनिष्ट कर देता है

यह विडम्बना है की ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण शोधकार्यो के वावजूद हस्तिगुफा के शिलालेख आज भी पढ़ना दुष्कर है ।पर इस बात पर देसी विदेशी सभी इतिहासकार एक मत है की हाथी और मूषक प्राचीन समुदाय के टोटम रहे हैं ।

तो हम यह कह सकते हैं की गणपति का हस्तिसर वास्तव में यह दर्शाता है की यह गणो का टोटम रहा होगा जिसका सम्बन्ध कंही न कंही बौद्ध समुदाय से रहा होगा ।
और मूषक किसी अन्य जनजातीय काबिले या समूह का टोटम जिसे किसी बौद्ध राजा ने पराजित किया होगा ।

बाद में वैदिक धर्म में तंत्रवाद के विलय के कारण वर्तमान गणपति की कल्पना का उदय हुआ होगा ।

क्रमश: