Thursday 16 June 2016

बुलेट - कहानी




"आय हाय!!.... क्या बात है ! आज चाँद दिन में ही निकल आया " गली के नुक्कड़ पर खड़े आरिफ़ ने जब रूबी को आते देखा तो उसकी तरफ आह भरते हुए कहा
"पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले ... झूठा ही सही .." पास खड़े नियाज़ ने आरिफ़ की बात ख़त्म होने से पहले पुराना गाना थोड़े ऊँचे आवाज में गुनगुनाने लगा ताकि रूबी सुन ले ।
पर रूबी बिना उनकी तरफ देखे नजरे नीचे किये हुए चुप चाप उनके सामने से निकल गई ।पीछे आरिफ़ और नियाज़ दोनों ठहाके मार के हँसने लगे ।

रूबी बी ए सैकेंड एयर की छात्रा थी , कॉलेज रेगुलर था तो तक़रीबन हर दूसरे- तीसरे  दिन आरिफ़ और नियाज़ से उसका सामना हो जाता था ,दोनों आवारा किस्म के लड़के थे इसलिए रूबी उनकी फबत्तियो का जबाब नहीं देती थी ।
कई बार रूबी ने सोचा की घरवालो को बता दे पर चुकी उसके पिता और भाई पहले से उसको कॉलेज नहीं भेजना चाहते थे इसलिए वह डरती थी की कंही गुस्से में आके उसका कॉलेज न बंद करवा दे वह ही जिद्द कर के कॉलेज जा रही है ।

घर पहुँच के रूबी ने गुस्से से बैग एक तरफ रखा और बुर्का उतार पंखा चलाया और पास पड़ी  कुर्सी पर धम्म से बैठ गई , अम्मी  ने जब देखा रूबी आ गई है तो उसने कहा -
"रूबी तू आ गई ! चल इधर आ मेरे साथ रसोई में खाना बनवाने में मदद कर "
रूबी को तो वैसे ही गुस्सा सा आ रहा था ऊपर से अम्मी आते ही रसोई घर में बुलाने लगी ।तो उसने नाराज़गी भरे शब्दों में अम्मी से कहा -
"मुझे नहीं बनाना खाना वाना ...मैं थक गई हूँ "
"अरे खाना नहीं बनाएगी तो ससुराल में हमारी नाक कटवायेगी ? ये लड़की भी  न .... क्या क्या बोलती रहती है ...लड़कियो का काम है खाना पकाना ... दो अक्षर पढ़ के दिमाग खराब हो गया है लड़की का " अम्मी ने गुस्से में बड़बड़ाते हुए कहा
" हाँ रूबी ,अम्मी ठीक कह रहीं है खाना बनाना और घर के काम ठीक से सीख ले ससुराल में यही सब काम आएगा तेरे ... हमें कौन सा तेरे से नौकरी करवानी है .... बस किसी तरह तू बी ए कर ले बस उसके बाद तेरी पढाई बंद " ये आवाज थी शाहबाज़ की ।शाहबाज़ रूबी का बड़ा भाई , रूबी इससे बहुत डरती थी ।
" जी भाई जान ..." कह रूबी रसोई में भागी ।

"अम्मी ,अब्बु .... देखो मेरी नई बुलेट आ गई है "शाहबाज़ ने फिर जोर से आवाज लगा के कहा ।
" बुलट आ गई...दिखाओ भाई जान कँहा है ?" रुबीना ने ख़ुशी से उछलते हुए कहा और भाग कर बाहर पहुंव गई ।सामने सिल्वर कलर की बुलट खड़ी थी , रुबी भाग के उसके पास पहुँच गई और छू के देखने लगी ।
"भाई जान मुझे भी चलाना सीखा दो न " रूबी ने शाहबाज़ से कहा कहा ।
" बुलट चलाना लड़कियो का काम नहीं ....चल जा के तू रसोई में अम्मी का हाथ बंटा" शाहबाज़ ने रूबी को झिड़कते हुए कहा ।

इस तरह डांटे जाने पर रूबी को बहुत बुरा लगा पर वह कुछ बोली नहीं ,बस चुप चाप अंदर चली गई ।

रूबी के घरवाले उसे बहुत कम ही अपनी मर्जी का करने देते थे , वह सिर्फ अपनी जिद पर ही पढ़ रही थी उसका कारण था की उसके अच्छे नंबर आना वर्ना रूबी के परिवार वाले तो उसका निकाह कब का कर देते । अब भी रूबी के अब्बा और भाई रूबी के लिए लड़का खोज ही रहे थे ,पूरा परिवार मज़हबी ख़यालात का होने के कारण रूबी को बिना बुर्के के कंही नहीं भेजते थे ।

रूबी अगले दिन कॉलेज पहुंची तो उदास थी ,जब उसकी सहेली अर्पणा ने उसका कारण पूछा तो उसने सारा माजरा बताया की कैसे उसके भाई ने उसकी बेज्जती की और बुलेट को हाथ तक नहीं लगाने दिया ।
"हम्म.... तो तू बुलट सीखना चाहती है ?" अर्पणा ने पूछा
"हाँ.... पर भाई जान मुझे सिखाएंगे ही नहीं " रूबी ने उदास होते कहा ।
"उसकी चिंता मत कर ....मेरा भैय्या सीखा देंगे तुझे ...बस तू मेरे घर आ सकती है क्या ? " अर्पणा ने पूछा
" तेरे भैय्या!!!..... केशव भाई !" रूबी ने आस्चर्य से पूछा
" हाँ केशव भैय्या.... फ़िक्र मत कर तू भी मेरी तरह है उनके लिय ....बस तुझे कुछ दिन मेरे घर आना पड़ेगा सुबह "

रूबी ने कुछ सोचा और फिर बोली-
"ठीक है तू केशव भाई से बात कर .... मैं सुबह 7 बजे तेरे घर आ जाया करुँगी फिर आधा घण्टा सीख के वंहा से हम दोनों साथ आ जाया करेंगे कॉलेज"
"डन!!.... मैं आज ही बात करती हूँ केशव भैय्या से " अर्पणा ने मुस्कुराते हुए कहा ।

अगले दिन रूबी साथ बजे अर्पणा के घर थी।
केशव ने अपनी बुलट निकाली और रूबी और अर्पणा को बैठा पार्क की तरफ चल दिया ।
पार्क में पहुचने के बाद केशव ने रूबी को पहले किक् मारना, गेयर डालना , इंडिकेटर देना आदि सिखाने से शुरुआत की ।

दस दिन  की ट्रेंनिग और रूबी की सीखने की रूचि के कारण रूबी बुलट की अच्छी राइडर हो गई थी , उसमे गजब का कॉंफिडेंस पैदा हो गया था अपने में ।
परन्तु वह जब भी शाहबाज़ से उसकी बुलेट के बारे में बात करती शाहबाज़ चिढ जाता,अम्मी -अब्बु भी रूबी को ही डांटते ।

एक दिन रूबी के अब्बा की तबियत ख़राब थी डॉक्टर को दिखाया तो उसने बाहर की दवाइयाँ लिख दी ।
शाहबाज़ ने दवाइयो का पर्चा लिया और रूबी से बोला-
" रूबी बुर्का पहन ले ,मैं तुझे मार्किट से दवाइयाँ दिला दूंगा तू लेके घर आ जाना मैं वंही से काम पर चला जाऊंगा "
रूबी ने सहमति से सर हिलाया और शाहबाज़ के साथ बुलट पर बैठ के चल दी ।

अभी शाहबाज़ मार्किट पहुचने वाला ही था की अचानक एक मोड़ पर एक तेज रफ़्तार कार ने पीछे से जोरदार टक्कर मर दी बुलट को ।टक्कर जबरजस्त थी , रूबी उछल के एक तरफ जा गिरी , उसका सर सड़क से टकराया और खून बहने लगा । पर शाहबाज बुलट समेत दूर तक सड़क पर घिसटता रहा ,उसका एक पैर बुलट के नीचे दबा हुआ था ।बुलट सड़क के किनारे डिवाइडर से टकरा के रुकी ,शाहबाज़ का सर डिवाइडर से टकराया और घहरा घाव हो गया पैर भी बुरी तरह से छिल गया था और हड्डी टूट चुकी थी .... वह बेहोश हो गया ।

रूबी के सर पर ही थोड़ी चोट लगी थी बाकी वह ठीक थी ,वह भागती और चीखती हुई शाहबाज़ के पास पहुंची ।रूबी रोये जा रही थी शाहबाज़ को देख के, सुबह का समय था इस लिए सड़क पर लोग का थे पर जो भी थे वे केवल भीड़ बन के तमाशा देख रहे थे ।हाँ एक दो ने पुलिस को जरूर फोन कर दिया था,पर 5 मिनट से ज्यादा हो गए थे पुलिस नहीं पहुंची थी ।रूबी अपना जख्म भूल चुकी यही बस वह लाचार भरी निगाहो से रोये जा रही थी ।

अचानक रूबी खड़ी हुई और बुलट के पास आके उसको खड़ा किया ,सेल्फ मारने पर वह स्टार्ट हो गई ।उसने तुरंत बुर्का उतार के एक तरफ फेंका और एक व्यक्ति से मिन्नत की कि शाहबाज़ को पीछे पकड़ के  बैठ जाए .... वह तेजी से बुलट को भगाती हुई पास के एक हॉस्पिटल  में पहुँच गई ।

रूबी ने घरवालो को और रिस्तेदारो को फोन कर दिया , सभी लोग थोड़ी देर बाद ही हॉस्पिटल पहुँच गए ।डॉक्टर ने सभी को बताया की अगर आने में और थोड़ी देर हो जाती तो शाहबाज़ को बचाना मुश्किल हो जाता ।
जब सभी ने सुना की रूबी बुलट चला के लाई है जिस कारण शाहबाज़ की जान बची तो सभी लोग रूबी की तारीफ करने लगे।अम्मी अब्बु ने आगे बढ़ के रूबी को गले लगा लिया और रोने लगे ।

कुछ दिनों बाद।

आरिफ और नियाज़ आज भी गली खड़े आती जाती लड़कियो पर भद्दी फबत्तियाँ कस रहे थे की अचानक उनके सामने एक बुलट आ के रुकी ।जीन्स और टॉप पहने जब बुलट सवार ने अपना हेलमेट उतारा तो सामने रूबी थी ।वे आस्चर्य से देखते हुए कुछ बोलने ही वाले थे की एक जोरदार तमाचा आरिफ की कनपटी से टकराया , तमाचा इतना जोरदार था आरिफ को ऐसा लगा की चक्कर आ जायेगे ।अगला नंबर नियाज़ का था ...... थोड़ी देर में दोनों अपना सूजा हुआ मुंह लेके भाग खड़े हुए, आरिफ की तो भागते समय एक चप्पल भी वंही रह गई  ।

रूबी ने हेलमेट हाथ में लिया और मुस्कुराते मुस्कुराते हुए बुलट स्टार्ट कर दी ।


बस यंही तक थी कहानी ...

- केशव (संजय)

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