Monday 12 December 2016

दस्ताने



  सुबह के तकरीबन दस बज रहे होंगे , मार्किट जाते समय एक रेड लाइट पर जैसे ही मैंने बाइक रोकी की एक दस बारह साल का लड़का लगभग दौड़ता हुआ मेरे पास आया और कहने लगा -
"भैया दस्ताने खरीद लो "
हलकी सर्दी तो थी ही बाइक चला के हाथ भी थोड़े सुन्न से हो गए थे ।मैंने एक नजर उस पर डाली तो पाया कि उस दुबले पतले से लड़के  हाथों में कंपड़े और रैक्सिन के 10-15 जोड़े दस्ताने थे ।
उसने फिर कहा " भैया .... दस्ताने खरीद लो'
खरीदने का मन तो था पर मैंने लापरवाही से पूछा-कितने के दे रहा है ?
" कपडे वाले 100 रूपये के और रैक्सिन के 170 रूपये के "उसने दोनों दस्ताने मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा

मैंने रैक्सिन का दस्तान लिया और उसे पहन के देखा तो ठीक लगा , फिर मैंने उससे पूछा -
"कितने का लगायेगा?
" भैया 20 रूपये काम दे देना ....आप 150 दे देना " उसने अपने हाथ में पकडे हुए दस्तानों को सही करते हुए कहा ।

मैंने दस्ताना उतार उसे पकड़ाते हुए कहा- " 100 रूपये में देना हो तो बता ?
उसने दस्ताना वापस करते हुए कहा - भैया बोहनी करनी है आप 120 रूपये दे दीजिए"
मुझे 120 रूपये में सौदा बुरा नही लगा ,मैंने पर्स से 150रूपये निकाल के लड़के  को पकड़ा दिया ।तभी ग्रीन लाइट हो गई और पीछे का ट्रैफिक तेज तेज हॉर्न मारने लगा ,मैंने मोटर साईकिल आगे बढ़ा दी ।
वह लड़का मोटरसाइकिल के साथ साथ भागता रहा और दस दस के तीन नोट निकल के पकड़ता रहा ।

कुछ दूर चलने के बाद मैं सोचने लगा की सिर्फ दिल्ली में ही हजारो लोग इस तरह रेड लाइट पर छोटा मोटा सामान बेच में अपना गुजर बसर करते हैं तो पूरे देश में करोडो लोग होंगे जो रेडलाइट पर सामान बेच के अपना जीवन यापन करते होंगे । ये लोग गरीब तो होते हैं किन्तु स्वाभिमानी होते हैं जो छोटा मोटा सामान तो रेडलाइट पर बेच लेते हैं किंतु भीख नहीं मांगते।आप सब ने भी रेडलाइट पर यह नजारा देखा होगा की ट्रैफिक रुकते ही आपकी गाडी/बस के आस पास दासियों  वेंडर छोटी मोटी चीजे लेके बेचने आ जाते हैं  जो अधिकतर आस पास की झुग्गी झोडियो के गरीब फाटे हाल लोग होते हैं ।


प्रधान मंत्री जी देश को कैशलैस बना रहे हैं और यदि सच में कैशलैस हो गया देश तो इन गरीबो का क्या होगा? रेडलाइट कुछ सैकिंड या कुछ मिनट की होती है ऐसे में कौन अपना मोबाइल निकाल के paytm करेगा या अपना कार्ड स्वाइप करेगा? कुछ सैकेंडों की रेडलाइट कँहा इतना समय किसी के पास?
अभी तो जेब में हाथ डाला और पैसे निकाल के दे दिए ।

जब इनसे कोई सामान नहीं खरीदेगा तो इनका क्या होगा?ये मेहनतकश लोग तब भीख मांगने पर मजबूर होंगे अथवा अपराध करने में ।

तब कौन होगा इनकी उस स्थिति का जिम्मेदार ?
दिमाग में कई प्रश्न घुमड़ आये ....

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