Wednesday 28 December 2016

भारतीय प्राचीन इतिहास



सन् 1920 तक भारत में प्राचीन इतिहास के नाम पर वेद पुराण ही प्रचलित थे जो मिथको, दंतकथाओं , किद्वंतीयो , कल्पनाओ से इतने भरपूर थे की उनमे से यथार्थ इतिहास का पता करना लगभग असम्भव था । ब्राह्मणिक ग्रंथो में जितने भी राजाओ आदि के नाम मिलते हैं उनके जन्म मरण और राज्यकाल की तिथियों का आभाव होने के कारण उन राजाओ का राजनैतिक इतिहास ही नहीं प्रमाणिक हो सकता था ।

उपरोक्त परस्थतियो में जब इतिहास के विद्यार्थी सुमेरियन, बेबीलोन , मिस्री सभ्यतो के बारे में पढ़ते थे की ये सभ्यताए ईसा से तीन चार हजार वर्ष पूर्व की थी तो उनकी प्राचीनता पर आस्चर्य करते थे क्यों की   ब्राह्मणिक साहित्य में सिंधु घाटी जैसी प्राचीन सभ्यता का जिक्र नहीं था , जो सम्पूर्ण पश्चिमोत्तर में फैली थी उसका जिक्र ही नहीं था। पर हाँ, उन ग्रंथो में भारत के लोगो को राक्षस, दानव, असुर आदि नाम देकर विकराल रूप में अवश्य चित्रित किया हुआ था ।

ब्रिटिश सरकार ने सर्वप्रथम भारत में ' अर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इण्डिया' की स्थापना की जिसके प्रथम निदेशक सर अलैक्जेंडर जी थे । उनकी देख रेख में भारत में प्राचीन खंडरो और टीलो का उत्खनन आरम्भ किया गया ,सन् 1921 में निदेशक महोदय की देख रेख में श्री दयाराम साहनी ने हड़प्पा टीले की खुदाई कराई। यह टीला वर्तमान पश्चमी पाकिस्तान में लाहौर से 100 मील दूर है , इसकी खुदाई से धरती में छिपे प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता का पता चला । उसके बाद मोहन जोदड़ो का । यह सभ्यताए मिश्र, बेबिलोनिया आदि सभ्यताओ के समयकालीन ही थीं।
भारत का इतिहास अभिलेखों से भी जाना गया , सम्राट अशोक से पहले का कोई अभिलेख अभी प्राप्त नहीं हुआ है ,वास्तव में अशोक काल से ही अभिलेखों का बनना आरम्भ हुआ था ।

उसके आलावा पुरातत्व विभाग ने प्राचीन स्मारकों से भी भारत का इतिहास जाना ,इस दिशा में लार्ड केनिंग का महत्वपूर्ण योगदान रहा है । मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, तक्षशिला , मथुरा, सारनाथ, पाटलिपुत्र, नालंदा साँची, आदि सैकड़ो स्मारको से भारत का प्रचीन इतिहास जाना गया
इसके आलावा विदेशी यात्रियों के भारत की यात्राओ का वर्णनो से भी भारत के इतिहास की जानकारी मिली ।

1-यूनानी आक्रमणकारी सिकंदर के साथ आये आरिस्टबुलस , चारस और उमेनिस जैसे उत्सकी भ्रमक भी थे जिन्होंने अपने भारत भ्रमण के व्रतांत लिपि बद्ध किया और भारत का सजीव चित्रण किया । यद्यपि इनके ग्रन्थ अब मूल रूप से उपलब्ध नहीं हैं पर फिर भी उनके परवर्ती लेखको ने जो उन ग्रंथो के उदहारण अपने ग्रंथो में दिए है उनसे पर्याप्त ऐतिहासिक सामग्री प्राप्त होती है ।

2- सिकंदर के बाद यूनानी शासक सेल्युकस के राजदूत के रूप में मेगस्थनीज चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में 6 वर्ष तक रहा , उसने अपनी पुस्तक 'इंडिका' में तत्कालीन भारतीय राजनैतिक विवरण दिया ।

यूनानियो के बाद चीनी इतिहासकारो द्वारा लिपिबद्ध की गई जानकारियो से हमें भारतीय इतिहास का ज्ञान मिलता है ।

1- शुमासिन- चिंबके प्रथम इतिहासकार शुमाशीन ने प्रथम शताब्दी में भारत की यात्रा की और अपने अनुभवो को लिपिबद्ध किया।

2- फाह्यान - यह चीनी यात्री सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के शासन काल में भारत आया ,यह सन् 399 ई. में भारत आया और लगभग 14 वर्ष रह के बौद्ध धर्म का अध्यन किया और अपने अनुभवो को लिपिबद्ध किया । इसकी लिखी पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद भी हो चूका है ।

3-सुंगयुन्- यह 518 ईसा में बौद्ध धर्म ग्रंथो की खोज में  भारत आया था , लगभग 3 वर्ष तक रुक और 160 बौद्ध ग्रंथो को लेके चीन चला गया।

4- हेनसांग- यह चीनी यात्री सम्राट हर्षवर्धन के काल में भारत आया , यह नालंदा विश्वबिद्यालय और कन्नौज में लगभग 16 साल रहा । समूर्ण भारत का भ्रमन किया और अपनी पुस्तक ' पाश्चायत संसार के देश' नामक पुस्तक लिखी जिसमे हर्षवर्धन के काल की राजनैतिक, धार्मिक,सामाजिक अवस्थाओ का स्पष्ट वर्णन किया ।

उसके बाद अरब का भारत के साथ जब संपर्क हुआ तो अरबी इतिहासकारो ने भी भारत भ्रमण
किया और भारत के राजनैतिक , धार्मिक और सामाजिक स्थितियो के बारे में विस्तार से लिखा । इनमे से प्रमुख थे अलमसूदी ,अलबिलादुरि और अलबेरूनी ।

अलबेरूनी 11 शताब्दी में महमूद गजनवी के साथ आया था , इसने भारत में रह के भारतीय संभ्यता के बारे में जानकारी प्राप्त की और 1030 में ' तहकीके हिन्द' नाम की पुस्तक लिखी।
उसने अपनी पुस्तक में लिखा " भारतीयो को प्राचीन इतिहास का ज्ञान नहीं है , जब किसी विद्वान् से भारत के प्राचीन इतिहास की किसी विशेष घटना के बारे में पूछा जाता तो वे उसे बताने में असमर्थ होने के कारण बेतुकी कथाये कहना आरम्भ कर देते'

अत: उपरोक्त विवरणों से हम यह कह सकते हैं  की यदि विदेशी भारत के इतिहास के बारे में नहीं लिखते या प्राचीन इतिहास जानने की लालसा न कर के ' भारतीय पुरात्तव' जैसी संस्था न स्थापित करते तो भारत के लोगो को कभी भी अपने इतिहास का ज्ञान नहीं हो पता। भारतीय लोग अब भी काल्पनिक पुराणिक  गल्प कथाओं में उलझे रहते और कौए तथा अन्य पक्षी सवारी के काम आते हैं इस बात पर भरोसा करते रहते ।


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