Wednesday, 28 December 2016

भारतीय प्राचीन इतिहास



सन् 1920 तक भारत में प्राचीन इतिहास के नाम पर वेद पुराण ही प्रचलित थे जो मिथको, दंतकथाओं , किद्वंतीयो , कल्पनाओ से इतने भरपूर थे की उनमे से यथार्थ इतिहास का पता करना लगभग असम्भव था । ब्राह्मणिक ग्रंथो में जितने भी राजाओ आदि के नाम मिलते हैं उनके जन्म मरण और राज्यकाल की तिथियों का आभाव होने के कारण उन राजाओ का राजनैतिक इतिहास ही नहीं प्रमाणिक हो सकता था ।

उपरोक्त परस्थतियो में जब इतिहास के विद्यार्थी सुमेरियन, बेबीलोन , मिस्री सभ्यतो के बारे में पढ़ते थे की ये सभ्यताए ईसा से तीन चार हजार वर्ष पूर्व की थी तो उनकी प्राचीनता पर आस्चर्य करते थे क्यों की   ब्राह्मणिक साहित्य में सिंधु घाटी जैसी प्राचीन सभ्यता का जिक्र नहीं था , जो सम्पूर्ण पश्चिमोत्तर में फैली थी उसका जिक्र ही नहीं था। पर हाँ, उन ग्रंथो में भारत के लोगो को राक्षस, दानव, असुर आदि नाम देकर विकराल रूप में अवश्य चित्रित किया हुआ था ।

ब्रिटिश सरकार ने सर्वप्रथम भारत में ' अर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इण्डिया' की स्थापना की जिसके प्रथम निदेशक सर अलैक्जेंडर जी थे । उनकी देख रेख में भारत में प्राचीन खंडरो और टीलो का उत्खनन आरम्भ किया गया ,सन् 1921 में निदेशक महोदय की देख रेख में श्री दयाराम साहनी ने हड़प्पा टीले की खुदाई कराई। यह टीला वर्तमान पश्चमी पाकिस्तान में लाहौर से 100 मील दूर है , इसकी खुदाई से धरती में छिपे प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता का पता चला । उसके बाद मोहन जोदड़ो का । यह सभ्यताए मिश्र, बेबिलोनिया आदि सभ्यताओ के समयकालीन ही थीं।
भारत का इतिहास अभिलेखों से भी जाना गया , सम्राट अशोक से पहले का कोई अभिलेख अभी प्राप्त नहीं हुआ है ,वास्तव में अशोक काल से ही अभिलेखों का बनना आरम्भ हुआ था ।

उसके आलावा पुरातत्व विभाग ने प्राचीन स्मारकों से भी भारत का इतिहास जाना ,इस दिशा में लार्ड केनिंग का महत्वपूर्ण योगदान रहा है । मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, तक्षशिला , मथुरा, सारनाथ, पाटलिपुत्र, नालंदा साँची, आदि सैकड़ो स्मारको से भारत का प्रचीन इतिहास जाना गया
इसके आलावा विदेशी यात्रियों के भारत की यात्राओ का वर्णनो से भी भारत के इतिहास की जानकारी मिली ।

1-यूनानी आक्रमणकारी सिकंदर के साथ आये आरिस्टबुलस , चारस और उमेनिस जैसे उत्सकी भ्रमक भी थे जिन्होंने अपने भारत भ्रमण के व्रतांत लिपि बद्ध किया और भारत का सजीव चित्रण किया । यद्यपि इनके ग्रन्थ अब मूल रूप से उपलब्ध नहीं हैं पर फिर भी उनके परवर्ती लेखको ने जो उन ग्रंथो के उदहारण अपने ग्रंथो में दिए है उनसे पर्याप्त ऐतिहासिक सामग्री प्राप्त होती है ।

2- सिकंदर के बाद यूनानी शासक सेल्युकस के राजदूत के रूप में मेगस्थनीज चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में 6 वर्ष तक रहा , उसने अपनी पुस्तक 'इंडिका' में तत्कालीन भारतीय राजनैतिक विवरण दिया ।

यूनानियो के बाद चीनी इतिहासकारो द्वारा लिपिबद्ध की गई जानकारियो से हमें भारतीय इतिहास का ज्ञान मिलता है ।

1- शुमासिन- चिंबके प्रथम इतिहासकार शुमाशीन ने प्रथम शताब्दी में भारत की यात्रा की और अपने अनुभवो को लिपिबद्ध किया।

2- फाह्यान - यह चीनी यात्री सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के शासन काल में भारत आया ,यह सन् 399 ई. में भारत आया और लगभग 14 वर्ष रह के बौद्ध धर्म का अध्यन किया और अपने अनुभवो को लिपिबद्ध किया । इसकी लिखी पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद भी हो चूका है ।

3-सुंगयुन्- यह 518 ईसा में बौद्ध धर्म ग्रंथो की खोज में  भारत आया था , लगभग 3 वर्ष तक रुक और 160 बौद्ध ग्रंथो को लेके चीन चला गया।

4- हेनसांग- यह चीनी यात्री सम्राट हर्षवर्धन के काल में भारत आया , यह नालंदा विश्वबिद्यालय और कन्नौज में लगभग 16 साल रहा । समूर्ण भारत का भ्रमन किया और अपनी पुस्तक ' पाश्चायत संसार के देश' नामक पुस्तक लिखी जिसमे हर्षवर्धन के काल की राजनैतिक, धार्मिक,सामाजिक अवस्थाओ का स्पष्ट वर्णन किया ।

उसके बाद अरब का भारत के साथ जब संपर्क हुआ तो अरबी इतिहासकारो ने भी भारत भ्रमण
किया और भारत के राजनैतिक , धार्मिक और सामाजिक स्थितियो के बारे में विस्तार से लिखा । इनमे से प्रमुख थे अलमसूदी ,अलबिलादुरि और अलबेरूनी ।

अलबेरूनी 11 शताब्दी में महमूद गजनवी के साथ आया था , इसने भारत में रह के भारतीय संभ्यता के बारे में जानकारी प्राप्त की और 1030 में ' तहकीके हिन्द' नाम की पुस्तक लिखी।
उसने अपनी पुस्तक में लिखा " भारतीयो को प्राचीन इतिहास का ज्ञान नहीं है , जब किसी विद्वान् से भारत के प्राचीन इतिहास की किसी विशेष घटना के बारे में पूछा जाता तो वे उसे बताने में असमर्थ होने के कारण बेतुकी कथाये कहना आरम्भ कर देते'

अत: उपरोक्त विवरणों से हम यह कह सकते हैं  की यदि विदेशी भारत के इतिहास के बारे में नहीं लिखते या प्राचीन इतिहास जानने की लालसा न कर के ' भारतीय पुरात्तव' जैसी संस्था न स्थापित करते तो भारत के लोगो को कभी भी अपने इतिहास का ज्ञान नहीं हो पता। भारतीय लोग अब भी काल्पनिक पुराणिक  गल्प कथाओं में उलझे रहते और कौए तथा अन्य पक्षी सवारी के काम आते हैं इस बात पर भरोसा करते रहते ।


Thursday, 22 December 2016

भुल्लन बाबू-कहानी

  सफेद चमचमाती मेट्रो की खिड़कियों में लगे बड़े बड़े शीशों के भीतर से नीचे सड़क पर दौड़ते वाहनों को बड़े हैरत और जिज्ञासा से निहार रहे थे भुल्लन बाबू , ऐसा लग रहा था कि जैसे वे आसमान में उड़ते हुए नीचे झाँक रहे हों जंहा से सब छोटा छोटा दिख रहा हो।

"दादा रे! अइसन लागत बा कि कौनो बिदेसवा में आई गइली ...एतना भारी भारी बिल्डिंग बन गईल दिल्ली मा की दादा देखै त मुडिया दुखा जाए केहुके  " भुल्लन बाबु बाहर बड़ी बड़ी इमारतों को आस्चर्य से देखते हुए सोच में गुम थे ।

भुल्लन बाबू लगभग 20 साल बाद दिल्ली आ रहे थे , बीस साल पहले गाँव से दिल्ली कमाने आये थे तो पहाड़गंज की झुग्गियों में सर छुपाने की जगह मिली थी । एक खिलौने बनाने वाले कारख़ाने में काम मिल गया था जिसमे हैण्ड प्रेस की मशीन चलाते ।
हैण्ड प्रेस की मशीन चलाते चलाते हाथो में गाँठ  पड़ गई थी ,कई बार सोचते की गाँव वापस भाग जाएँ पर भागते कैसे ।गाँव जाते ही उनका स्वागत लाठियों से जो होना था  ,आखिर टिकोरी लाल की मेहरारू का  खेत जाते हुए हाथ  जो पकड़ लिए थे जबरजस्ती ।
भौजी भौजी कर के बहुत मजाक करते  टिकोरीलाल की मेहरारू से और सोचते की भौजी पट गई है ।
टिकोरी की मेहरारू भी तो हँस हँस के बतियाती थी उनसे तब काहे न सोचें?।

एक दिन सांझ को जब  टिकोरी की मेहरारू खेत पर जा रही थी तब  भुल्लन बाबू मौका समझ के कूद पड़े उस पर , अभी हाथ पकडे ही थे की सामने  से टिकोरी अपने बैलों को हांकता हुआ दिखाई दिया ।
भौजी वैसे तो सरमा के मुस्कुरा रही थीं पर टिकोरी को देख के उनका रंग एक दम से बदल गया और टिकोरी की तरफ देख जोर से चिल्लाई-
" ये संतुओ क बाऊ जीsss.....तनिका इंहा आवा हो sss.. देखा तनी भुल्लनवा हमार हथवा पकड़ के जबरजस्ती करत बा"

 टिकोरीलाल ने भुल्लन को अपनी मेहरारू का हाथ पकड़े देखा .... भुल्लन ने टिकोरी के हाथ में सोंटा देखा , भुल्लन को तो जैसे काटो तो खून ही नहीं ।
टिकोरी की मेहरारू ने जब अपना हाथ झटक के छुटाया तो जैसे उसे होश आया ।
भुल्लन बाबू तुरंत सिर पर पैर रख के भागे पर तब तक टिकोरी पास आ गया था ,उसने हाथ में पकड़ा हुआ  सोंटा निशाना ले  फेंक के मार दिया । सोंटा सीधा बैठक पर लगा ,चीख निकल गई भुल्लन बाबू की किन्तु गिरते पड़ते घर की तरफ भाग लिए ।

पीछे पीछे टिकोरी लाल सैकड़ो गालियाँ निकालता हुआ भाग रहा था ।

भुल्लन बाबू घर से पीछे बने तबेले में  घुसे और वंहा  रखे भूसे की ढ़ेरी में जा छुपे । भूसे की ढ़ेरी ही एक मात्र ऐसा छुपने का स्थान था जंहा आज तक कोई न खोज पाया था उन्हें ।
उस दिन भी भूसे की ढ़ेरी में ही छुप के अपनी जान बचाई थी जब कई महीने तक स्कूल गोल किये थे ,अचानक पिता जी स्कूल पहुँच गए  हाल चाल लेने भुल्लन का तब मास्टर ने कहा कि उसका नाम तो 6 महीने पहले ही स्कूल से गोल कर दिया गया है ।
बाद में पिता जी ने छानबीन की तो पता चला की भुल्लन बाबू स्कूल गोल कर  गिल्ली डंडा खेलते और  हीरो बन स्कूल की लड़कियों आते जाते  नैन मटक्का करते।

उस दिन इसी भूसे में छुप के अपनी जान बचाई थी ,क़सम से वर्ना पिता जी ने हरे बांस की टहनी तोड़ लिए थे और हरे बासँ की टहनी तो जल्दी टूटती भी नहीं कितना ही जोर से मार लो ।पूरा दो दिन छुपे रहे इसी भूसे में तब जा के गुस्सा शांत हुआ था पिता जी का ।
आज अगर पता चल गया कि टिकोरी की मेहरारू को धर लिए थे तो न जाने क्या होगा , इधर पिता जी की बांस की हरी डंडी जो लगते ही खाल उतार लेती थी और उधर टिकोरी का बांस का सोंटा जो एक पड़ जाए तो बैल को भी जमीन पर लिटा दे ।

दिन भर चुप्पे वहीँ पड़े रहे ,बाहर हंगमा होता रहा ।सब लोग चप्पा चप्पा छान मारे पर भुल्लन बाबू नहीं मिले ।

रात हुई तो भूख सताने लगी ,भुल्लन बाबु चुपचाप भूसे की ढ़ेरी से निकले और भैंस के थन से जा लगे ।
पर यह क्या थन बिलकुल सूखा था एक बूंद भी दूध की नहीं निकल रहा था  । व्याकुल से भुल्लन बाबू किसी तरह तबेले की किंवाड़ फांद घर में दाखिल हुए तो पाया कि अम्मा अभी जग ही रही थी ।
धीरे आवाज में सैकड़ो गरियाने के बाद रोटी दी खाने को , भुल्लन बाबु ने चबर चबर दुइ मिनट में 5 रोटी डकार गएँ ।तृप्त होने के बाद अम्मा  से पता चला की टिकोरिलाल सुबह पंचायत बैठाएगा ,पंचायत का नाम सुन और बासँ की टहनी और सोंटे को याद कर भुल्लन बाबू के पसीने छूट गए ।

अम्मा जब सो गई तो चुपचाप संदूक खोला ,मील पर गन्ना बेच के 200 रूपये मिले थे जो  पोटली में बाँध नया बैल खरीदने के लिए रखे थे ।पोटली समेटी  और अम्मा की चांदी की पायल भी अपने पैजमे की जेब में डाला आधी रात को ही निकल लिए गाँव से ।

सुबह पांच बजे गोरखपुर के स्टेशन से दिल्ली जाने वाली ट्रेन पकड़ लिए और पहुँच गए दिल्ली ।

जब तक जेब में पैसा था तब तक खूब चकल्लस से खाये पीए और खूब लम्पटियाई  किये पर जैसे ही पैसे खत्म हुए हालत खराब हो गई । तब याद आया की एक रिश्तेदार भी रहता है पहाड़गंज में ,किसी तरह उसका पता मालुम किया और जा धमके उसकी झुग्गी में ।बहुत हाथ पैर जोड़ने पर वह भुल्लन बाबू को अपने पास रखने को तैयार हुआ ।
पास ही एक खिलौने बनाने वाले कारख़ाने में नौकरी भी लगवा दी रिस्तेदार ने भुल्लन बाबू की ।
हैण्ड प्रेस मशीन चलानी पड़ती थी ,हाथ में गाँठ  पड़ जाते थे  मशीन चलाते -चलाते ।कई बार सोचे की भाग जाएँ काम छोड़ छाड़ के पर कारखानेदार की मेहरारू  चम्पाकली बहुत मस्त लगती थी भुल्लन बाबू को इसलिए पिले पड़े रहते थे मशीन में कोल्हू के बैल की तरह।

कभी कभी चाय पानी पूछ लेती थी और हंस के बात भी कर लेती थी ,भुल्लन बाबू  कंही सुने थे की 'लड़की हंसी तो फंसी' इसलिए उनको पक्का एतबार हो गया था कि कारखानेदार की मेहरारू उन से फंस गई थी  ।अब बस भुल्लनबाबू 'शुभ महूर्त'का इंतेजार कर रहे थे की कब वे कारखानेदार की मेहरारू उनकी बांहों में झूले ।एक दिन मौका मिला, कारखानेदार बाहर गया हुआ था और चम्पाकली  अकेली थी ,उ चाय बना के लाइ और हँस के पकड़ा दी।भुल्लन बाबू ने आव देखा न ताव 'जय बजरंग बली .... तोड़ दुश्मन की नली' कह कूद पड़े अखाड़े में ,झट चम्पाकली को बांहों में समेट लिया ।

पर यह क्या सिग्नल ग्रीन की जगह रेड कैसे हो गया ? भुल्लन बाबू आगे कुछ और कर पाते की एक जोरदार- झन्नाटेदार लप्पड़ गाल पर पड़ा की  सारे रोमांटिक इमोशन ऐसे उड़ गएँ जैसे बिजली के तार पर में बैठे कौओं को कोई पत्थर मार के उड़ा दे ।  झट चंपाकली को छोड़ के भाग लिए ..... पीछे चम्पाकली सैकड़ो गालियाँ देती रही ।

आह!!यंहा भी फेल ....

फटाफट  झुग्गी में आ अपने कपडे समेटे और रिस्तेदार के घर में जो थोड़े बहुत पैसे और कीमती सामान था उसे उठा सीधा गोरखपुर की ट्रेन पकड़ी ।
अगर दिल्ली में रुकते तो कारखानेदार जान ही ले लेता उसकी । उसके बाद कभी पलट के न देखा दिल्ली की तरफ।

गांव में आ सब थोड़ा गुस्सा हुए पर बहुत दिन बीत गएँ थे इस लिए सबने माफ़ कर दिया भुल्लन बाबू को । पिता जी ने शादी करवा दी और फिर तीन बच्चे हो गएँ ।वैसे अब सुधर गएँ थे भुल्लन बाबू  पर लम्पटपन  अब भी बंद न हुआ था ,जब भी मौका मिलता गांव की औरतों को छूने की कोशिश कर ही लेते थे ।

आज बीस साल बाद उनका फिर से  दिल्ली आना हुआ ,भुल्लन बाबू के छोटे भाई की नौकरी दिल्ली मे लगने के कारण उसने यंही स्थाई निवास बना लिया था । भुल्लन बाबू को खेत के लिए ट्रैक्टर लेना था अतः उन्होंने छोटे भाई की सलाह पर दिल्ली से ट्रैक्टर खरीदने का मन बनाया  । छोटे भाई ने हिदायत दी थी की स्टेशन पर उतरने के बाद बस में न बैठे बल्कि मेट्रो पकड़ ले आखिर पैसा पास है और मेट्रो में सुरक्षित रहता है यात्री।

बगल में झोला दबाये भुल्लन बाबू मेट्रो में सवार हो लिए थे ,सीट नहीं मिली इसलिए बगल में पैसो का झोला दबाये मेट्रो कोच के बीच में गड़े पोल पर कमर लगाये यात्रा कर रहे थे ।

भुल्लन बाबू अभी आस्चर्य से बाहर देख ही रहे थे की एक भीनी सी खुश्बू उनके नथुनों से टकराई ।
खुशबु जानना थी ,भुल्लन बाबू आँख बंद कर खुशबु का मजा लेने लगे ।फिर आँख खोल कोच में देखने लगे , पहली बार कोच में नजर पड़ी उनकी अन्यथा वे तो बाहर के ही नज़ारे देखने में ही खोये हुए थे।

भुल्लन बाबू ने दिखा कोच खचाखच भरी हुई है , पर सब अपने में ही मस्त हैं। कोई फोनवा का तार कान में घुसेड़े हुये है तो कोई हाथ के दोनों अंगूठे से फोनवा में  खिचर पिचर कर के मुस्कुरा रहा है ।

भुल्लन बाबू उस जानना इत्र की खुश्बू में फिर लीन हो गएँ अचानक उनको ऐसा लगा की कोई उनके पीठ से पीठ सटा रहा है । उन्होंने पलट के देखा तो एक खूबसूरत लड़की उनकी पीठ से पीठ सटाये मुस्कुरा रही थी ।
भुल्लन बाबू को तो जैसे यकीं ही न हुआ की दिल्ली में कदम रखते ही इतनी खूसूरत लड़की यूँ उन से सट जायेगी । अब भुल्लन बाबू ने अपनी दुविधा दूर करने के लिए अपनी कमर को तनिक और पीछे किया और तिरछी आँख कर देखने लगे की लड़की की क्या हरकत होती है ।
लड़की बिना कोई आपत्ति किया यूँ ही खड़ी रही ,अब तो भुल्लन बाबू का दिल बल्लियां उछलने लगा, सोचने लगे की -

"ससुरा गाँव रह के एक्को मेहरारू और न ही लड़की उनको भाव दी  और इंहा देखो आते ही खूबसूरत मेम सट गईं उससे ....साला पिछड़े गाँव की पिछड़ी मेहरारू और लइकी लोग .. उँह ....आई दादा कितना निक और खूबसूरत मेम है "

अब कांख में दबाये पैसे के झोले को भूल कर लड़की की पीठ से पीठ रगड़ने लगे ,थोड़ी देर में उत्तेजना से एक दम पसीने पसीने हो गएँ ।अब सोचा की लड़की पट ही गई तो हाथ से छू के भी देख लिया जाए और एक हाथ पीछे कर लड़की के कमर तक ले आये।

तभी अचानक वज्रपात हुआ और सारी खड़ी फसल नष्ट ...... लड़की का तमाचा इतना जोरदार था कि पूरा कोच अपना मोबाइल छोड़ देखने लगा ।
फिर तो लड़की ने दे लप्पड़ दे लप्पड़ ...... दोनों कान सूजा दिए भुल्लन बाबू के और बीसियों गालियां और धमकियां देने लगी ।
भुल्लन बाबू झट से लड़की के कदमो में लोट गएँ और कान पकड़ के माफ़ी मांगने लगे ,लड़की का मन थोड़ा पसीजा और उसने भुल्लन बाबू को माफ़ कर दिया ।

"साला दिल्ली हमको कदम रखते हुए  फिर पिटवा दिया .... अब नहीं रुकना दिल्ली में न तो जाने  कितनी बार पिटेंगे .... भक्क साला ई मेट्रो पेट्रो और ई बिल्डिंग सिल्डिंग सब साला अभी गिर जाए ... हे!सीयू बाबा पूरी दिल्ली  कौनो गड्ढा में धंसी  जाये .... दादा रे" अपने सूजे हुए कानो को सहलाते हुए कोसा ।

भुल्लन बाबू ने भाई के पास जाने का इरादा कैंसिल कर फिर वापस गोरखपुर की टिकट कटवा ली ।

बस यंही तक थी कहानी .....


Monday, 19 December 2016

जानिये क्यों रखी गईं स्त्रियां शुद्र श्रेणी में -



 हम जानते हैं कि कृषि की खोज स्त्रियों ने की थी जो की  बाद में पुरुष के आधीन हो गया । धरती को स्त्री की संज्ञा इस लिए भी दी गई की वह भी स्त्री की भांति प्रजनन( कृषि/ प्रकृति )की  उत्पादन क्रिया करती है । विश्वास यह था कि प्रकृति की उत्पादन क्रिया स्त्री की प्रजनन क्रिया से जुडी हुई है इसलिए विश्व के विभिन्न जनजातीयों में कृषि सम्बंधित मुख्य अनुष्ठान क्रियाएं स्त्री सम्बंधित ही रही हैं।
सारे भारत में वर्षा की पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होने सम्बंधित अनुष्ठान(जादू- टोने) लगभग स्त्रियों द्वारा ही सम्पन्न होते रहे हैं , कई विद्वानों ने यह तथ्य भी जुटाएं है कि प्राचीन जनजातियों में धर्मिक कार्य और पूजा अर्चना स्त्रियों द्वारा ही सम्पन्न होते थे।

कालांतर में जब पुरुष ने  चरवाही छोड़ कृषि पर अपना वर्चस्व बनाया तो स्त्री के आधीन देवियों शक्तियों को न केवल पुरुष सत्ता के लिए खतरनाक माने जाने लगा बल्कि उन्हें अशौचकारी अर्थात अछूत भी समझा जाने लगा ।

आप इससे समझिये की लाल रंग मासिक धर्म कर प्रतीक है ,इसे गेरुआ रंग भी दे दिया जाता है ।
पिछड़े तबके खासकर जनजातियां ,कई पिछड़ी जनजातियों के कृषि कर्म  में गेरुआ रंग को बहुत शुभ और शगुन के रूप में  माना जाता है । बुआई जैसे कृषि कर्म करने से पहले उत्तरी भारत के कई भील जाति के लोग खेत के एक कोने में एक पत्थर के टुकड़े को सिंदूर रंग के रख देते हैं ।उनका विश्वास होता है कि इससे कृषि उत्पादन बढ़ता है ।

हम जानते हैं कि स्त्री के मासिक चक्र के दौरान होने वाला रक्त स्त्राव मानव प्रजनन का आधार होता है और यह मासिक चक्र स्त्री देहं की स्वाभाविक क्रिया है ।
चुकी कृषि की खोज का श्रेय स्त्रियों को जाता है तब पिछड़े तबकों में जिनमे स्त्री का संबंध कृषि से बना उसके प्रजननशीलता की प्रत्येक अत्यंत पवित्र और पूजनीय मानी जाती रही ।
इसका उदहारण हम तंत्रवादी अनुष्ठानों में देख सकते हैं जंहा स्त्री शरीर विशेष होता है , दरसल ये अनुष्ठान आदिम स्तर कृषि उत्पादन ( जीविकोपार्जन) के जादू टोने थे । आज विज्ञानं के आधार पर ये अनुष्ठान बेशक अंधविश्वास प्रतीत होते हों किन्तु आदिम समय में ये मनोविज्ञान और भौतिक सामर्थ का प्रतीक थे जो स्त्री की विशेष महत्वता को दर्शाते है इसलिए स्त्री की प्रजनन प्रक्रिया का केंद्र रहना स्वभाविक था ।बंगाल के दुर्गा पूजा उत्सव के दौरान सिन्दूर खेला तंत्रिकवाद का ही एक हिस्सा रहा है।

गौरतलब है कि ब्राह्मणिक ग्रन्थो में स्त्री का रजोस्त्राव को इतना दूषित माना गया है कि उसका देवस्थलों पर जाना निषेध तो है ही घरो की रसोई में जाने से लेके शैय्या पर बैठना तक निषेध है।
जबकि इसके उलट निचली और अछूत कही जाने वाली जातियों के कृषि कर्मकांडो में स्त्री के रक्त स्त्राव को पवित्र और उत्पादन वृद्धि का प्रतीक माना गया है ।

इसके अतिरिक्त तंत्रवाद में मासिक चक्र के रक्त या स्त्री की प्रजनन अंग को महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है जबकि ब्राह्मणिक विचारधारा में इस महत्व को उलट दिया गया ।
कबीर जैसे अनेक निचली जाति के संतो ने इस  ब्राह्मणिक 'सूतक' का खंडन जोरदार ढंग से किया है ।इसी ब्राह्मणिक  'सूतक'अथवा 'अशौच' की अवधारणा और निषेध की मान्यता के चलते स्त्रियां उपनयन ,वेदाध्यन , पितृ संपत्ति आदि  अधिकारों से वंचित होने  के कारण पूरी तरह से पुरुषों पर आश्रित होती चलीं गईं उन्हें शूद्रों की श्रेणी में रख दिया गया ।

Thursday, 15 December 2016

जानिए चार्वाक(लोकायत) मत के विषय में

प्रचीन भारत के जनसमूहों में एक  लंबी और गौरवशाली विचारधारा रही है जिसने अपनी साफगोई ,निर्भीकता और विज्ञानसम्मत तर्क के बल पर अडम्बकारी और शोषक ब्राह्मणिक दृष्टिकोण के लिए जबरजस्त चिंता बनाये रखी जब तक की शोषणकारी शक्तियों ने उन्हें नष्ट नहीं कर दिया ।

लोकायत( चार्वाक दर्शन) विचारधारा भी उनमें से एक रही जिसका निर्ममता से दमन किया गया और लुप्त कर दिया गया ।

लोकायत  के विषय में कहा गया है  -लोकेषु आयत: लोकायत: अर्थात लोगो में प्रचलित ।

हलाकि वेदों और उपनिषदों में आद्य भौतिकतावादी चिंन्ह सर्वत्र विद्यमान है किन्तु लोकायत   भौतिकतावाद से भिन्न रही ।   वैदिक साहित्य में ऐसे नास्तिक मतों का उल्लेख  है जो  किसी काल्पनिक आत्मा -परमात्मा का खंडन का 'भूत' को ही अंतिम सत्य सत्य मानते थे ।लोकायत विचारधारा मूल भारतीय चिंतन परम्परा में निरंतर मान्य किन्तु वैदिक वैचारिक परम्परा के लिए हमेशा खतरा बनी रही।

बौद्ध ग्रन्थ 'दिव्यवादन' में लोकायत को ऐसा दर्शन बताया गया है जो सामान्य लोगो में प्रचलित था ।

आदि शंकराचार्य ने लोकायत मातानुयायिओ को साधारण जन (प्राकृत जना:) बताया है।

मनुस्मृति के भाष्यकार मेधातिथि ने अपने भाष्य में उल्लेख किया  है कि लोकायत नाम का शास्त्र था ।उन्हीने न्याय और हेत्वाभास शास्त्रों के रूप लोकायत नाम का शास्त्र बताया है।

दासगुप्त ने बताया है कि लोकायत नाम का कोई ग्रन्थ था जिस पर 150 ईसापूर्व से पहले या तीन सौ वर्ष से भी पूर्व कम से कम एक भाष्य लिखा गया था ।
उन्होंने आगे उल्लेख किया है कि यह नास्तिक मत कि इस जन्म के बाद कोई जीवन नहीं है और मृत्यु के साथ चेतना नष्ट हो जाती है उपनिषद काल में अच्छी तरह स्थापित हो चूका था ।उपनिषद इसी मत का खंडन करना चाहते थे।

वृहदारण्यक उपनिषद में याज्ञवल्क्य ने ऐसे ही एक नास्तिक मत का उल्लेख किया है।

दीघनिकाय के 'समज्ज फल सुत्त' में लोकायतों के उपदेश का विस्तार से वर्णन मिलता है, अजित केशकंबली ,पूरन कश्यप, मस्करीन गोसाल आदि के विचार लोकायत के ही विचार थे।

माधव ने अपने सर्वदर्शनसंग्रह में लोकायत के होने की बात मानी है।

न्यायमंजरी में चार्वाकों के मत का उल्लेख है कि जंहा शरीर रहता है वँहा तक एक तत्व सभी अनुभवों का भोक्ता और दृष्टा के रूप में रहता है किंतु मृत्यु के बाद ऐसा कोई तत्व नहीं रहता।


इस तरह से विभिन्न वैदिक और अवैदिक ग्रन्थो में लोकायत अर्थात चार्वाक दर्शन का उल्लेख है , लोकायतों के तर्क का मुख्य बिंदु यह था कि चेतना तभी तक है जब तक शरीर रहता है शरीर न होने पर चेतना का कोई अस्तित्व नहीं रहता ।इसलिए यह चेतना शरीर का कार्य होना चाहिए ।
'अग्निहोत्र,तीनो वेद ,सन्यासी बनकर तीन काष्ठ खंड लेना ,शरीर पर भस्म पोत लेना ये बुद्धि और पौरुष से रहित व्यक्तियों की जीविका के साधन है "
'चार तत्वों भूमि,जल ,अग्नि,वायु से ही चेतना की उतपत्ति होती है जिस प्रकार चावल आदि पदार्थो के मिश्रण मद शक्ति उत्तपन होती है'
'न तो कोई स्वर्ग है न मोक्ष, और न कोई परालौकिक आत्मा "
'ज्योतिष्टोम यज्ञ में मारा गया पशु यदि स्वर्ग जायेगा तो यजमान स्वयं अपने पिता को इस तरह स्वर्ग क्यों नहीं पहुंचा देता? '
' वेदों के रचियेता भांड ,धूर्त और निशाचर हैं '

आदि विचार लोकायत मत के ही थे , अतः आप समझ सकते हैं कि लोकायतों को क्यों लुप्त किया गया।



Monday, 12 December 2016

दस्ताने



  सुबह के तकरीबन दस बज रहे होंगे , मार्किट जाते समय एक रेड लाइट पर जैसे ही मैंने बाइक रोकी की एक दस बारह साल का लड़का लगभग दौड़ता हुआ मेरे पास आया और कहने लगा -
"भैया दस्ताने खरीद लो "
हलकी सर्दी तो थी ही बाइक चला के हाथ भी थोड़े सुन्न से हो गए थे ।मैंने एक नजर उस पर डाली तो पाया कि उस दुबले पतले से लड़के  हाथों में कंपड़े और रैक्सिन के 10-15 जोड़े दस्ताने थे ।
उसने फिर कहा " भैया .... दस्ताने खरीद लो'
खरीदने का मन तो था पर मैंने लापरवाही से पूछा-कितने के दे रहा है ?
" कपडे वाले 100 रूपये के और रैक्सिन के 170 रूपये के "उसने दोनों दस्ताने मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा

मैंने रैक्सिन का दस्तान लिया और उसे पहन के देखा तो ठीक लगा , फिर मैंने उससे पूछा -
"कितने का लगायेगा?
" भैया 20 रूपये काम दे देना ....आप 150 दे देना " उसने अपने हाथ में पकडे हुए दस्तानों को सही करते हुए कहा ।

मैंने दस्ताना उतार उसे पकड़ाते हुए कहा- " 100 रूपये में देना हो तो बता ?
उसने दस्ताना वापस करते हुए कहा - भैया बोहनी करनी है आप 120 रूपये दे दीजिए"
मुझे 120 रूपये में सौदा बुरा नही लगा ,मैंने पर्स से 150रूपये निकाल के लड़के  को पकड़ा दिया ।तभी ग्रीन लाइट हो गई और पीछे का ट्रैफिक तेज तेज हॉर्न मारने लगा ,मैंने मोटर साईकिल आगे बढ़ा दी ।
वह लड़का मोटरसाइकिल के साथ साथ भागता रहा और दस दस के तीन नोट निकल के पकड़ता रहा ।

कुछ दूर चलने के बाद मैं सोचने लगा की सिर्फ दिल्ली में ही हजारो लोग इस तरह रेड लाइट पर छोटा मोटा सामान बेच में अपना गुजर बसर करते हैं तो पूरे देश में करोडो लोग होंगे जो रेडलाइट पर सामान बेच के अपना जीवन यापन करते होंगे । ये लोग गरीब तो होते हैं किन्तु स्वाभिमानी होते हैं जो छोटा मोटा सामान तो रेडलाइट पर बेच लेते हैं किंतु भीख नहीं मांगते।आप सब ने भी रेडलाइट पर यह नजारा देखा होगा की ट्रैफिक रुकते ही आपकी गाडी/बस के आस पास दासियों  वेंडर छोटी मोटी चीजे लेके बेचने आ जाते हैं  जो अधिकतर आस पास की झुग्गी झोडियो के गरीब फाटे हाल लोग होते हैं ।


प्रधान मंत्री जी देश को कैशलैस बना रहे हैं और यदि सच में कैशलैस हो गया देश तो इन गरीबो का क्या होगा? रेडलाइट कुछ सैकिंड या कुछ मिनट की होती है ऐसे में कौन अपना मोबाइल निकाल के paytm करेगा या अपना कार्ड स्वाइप करेगा? कुछ सैकेंडों की रेडलाइट कँहा इतना समय किसी के पास?
अभी तो जेब में हाथ डाला और पैसे निकाल के दे दिए ।

जब इनसे कोई सामान नहीं खरीदेगा तो इनका क्या होगा?ये मेहनतकश लोग तब भीख मांगने पर मजबूर होंगे अथवा अपराध करने में ।

तब कौन होगा इनकी उस स्थिति का जिम्मेदार ?
दिमाग में कई प्रश्न घुमड़ आये ....

Sunday, 4 December 2016

जानिए क्या है स्वर्ग /जन्नत


स्वर्ग नर्क या जन्नत दोज़ख ये वो शब्द हैं जिनका विषय लिए बिना दुनिया का कोई आस्तिक धर्म ग्रन्थ पूरा नहीं होता ।धर्म -मज़हब इन्ही स्वर्ग नर्क , जन्नत दोज़ख का लालच और भय लिए जनता को आतंकित या लूटते चले आ रहे हैं ।
स्वर्ग पाने और उसके आनंद को भोगने का इतना प्रबल इच्छा पैदा कर दी जाती है धर्म मज़हब द्वारा की मनुष्य सभी कर्मकांड करने के अलावा खुद को बम्ब से उड़ा देने में भी नहीं हिचकता ।

गीता में कृष्ण से कहलवा जाता है - हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम् जित्वा भोग्यसे महीम"
अर्थात- अर्जुन , अगर तू मारा जाएगा तो स्वर्ग जायेगा और यदि विजयी होगा तो पृथ्वी का भोग करेगा।

यंहा स्वर्ग का लालच देके युद्ध के लिए तैयार किया जा रहा है अर्जुन को , अर्जुन को स्वर्ग का लालच दे अपने ही बंधुओ और सम्बन्धियो की हत्या करने के लिए प्रौत्साहित किया जा रहा है ।

अब स्वर्ग क्या है ?

स्वर्ग की व्याख्या ग्रन्थों में इस प्रकार की गई है - पदम् पुराण के अध्याय 90 में लिखा है - जंहा दिव्य अनान्द होते हैं ,जंहा अनेक सुंदर वस्तुएं होती हैं ,सुंदर बाग़ बग़ीचे होते हैं , शुभ कार्य होते हैं  ,कामना के सभी फलों के वृक्ष होते हैं (जिस वृक्ष के नीचे जिस चीज की कामना की जाए वह पूरी हो जाए ) , यात्रा के लिए विमान होते हैं इत्यादि

अब इसी प्रकार का जन्नत का वर्णन  क़ुरान में देखिये -
सुर:अल-वाक़िआ , आयत 12से 37

नेमत के बागों में ,फिर रहे होंगे उनके पास बच्चे(किशोर अवस्था)  सदैव रहने वाले ,कटोरे और जग लिए हुए और प्याला स्वच्छ शराब का , उससे न कोई सर दर्द होगा न बुद्धि  विकार आएगा ,और फल जो चाहे चुन लें ,पक्षियों के मांस जो उनको प्रिय हों ,और बड़ी बड़ी आँखों वाली हूरें , जैसे मोती के दाने अपने आवरण के अंदर , बदला उन कर्मो का जो वो करते हैं ,बेर के वृक्षो जिनमे कोई काँटा न होगा ,गुच्छेदार केले ,और बहता हुआ पानी ,प्रचुर मात्रा में फल जो न कभी समाप्त होंगे न कोई रोका टोकी होगी ,हमने उन महिलाओं को विशेष रूप से बनाया है मन मोहने वाली और सामान रूप से "


है न कमाल का लालच ! एक व्यक्ति जिन भौतिक वस्तुओं की जरुरत रखता है वह सभी स्वर्ग जन्नत में देने का वादा किया जाता है धर्म मज़हब में ।
व्यक्ति संसार में अभाव ग्रस्त रहे ,दुखी रहे ,हीनता के दिन गुजारे किन्तु धर्म मज़हब का झण्डा उठाये सब सहता रहे इस लालच में की स्वर्ग जन्नत में उसकी सभी जरूरते पूरी हो जाएंगी ।

क्या आप भी इसी कारण झंडा उठाये हैं?
सोचिये....

और हाँ ...नास्तिकों का स्वर्ग जन्नत में प्रवेश निषेध है क्यों की स्वर्ग जन्नत के ठेकेदारों को भय था कि कंही नास्तिक लोग उनकी धूर्तता की पोल न खोल दें :)
"न तत्र नास्तिकाः यति"
अर्थात नास्तिक स्वर्ग नहीं पाते ....


Sunday, 27 November 2016

प्रवचन

"धन का लोभ मनुष्य को अनैतिकता की ओर ले जाता है ...मनुष्य क्या लेके आया है और क्या लेके जायेगा? ये तेरे महल अटारी सब कुछ यही रहने वाले है ..... फिर काहे का लोभ ?काहे का संग्रह करे है मुर्ख प्राणी? धन का लोभ काहे करे ? सब ईश्वर के चरणों में अर्पण कर के अपनी आत्मा साफ़ कर ले प्राणी ....ओम.... ओम.." इतना कह ललाट पर चन्दन और रोली से त्रिपुंड रचाये ,भरे गालो के साथ मटके जैसा पेट लिए गले में रुद्राक्ष के साथ सोने की मोटी दो तीन चैन पहने । हाथो में मोटे मोटे रंग बिरंगे नगो की मुद्रिकाएँ धारण किये ऊँचे मंच पर विराजमान महंत चतुरानन्द कुछ देर के लिए खामोश हो गए । फिर एक चांदी की कटोरी में से कुछ मिश्री और मुनक्के के दाने उठा मुंह में रख लिया ।

सामने बैठी भक्तो की संख्या जो हजारो में थी एक साथ जय जयकार कर उठी । महंत जी मुस्कुरा दिए और दोनों हाथ उठा के आशीर्वाद फेंका भक्तो पर । भक्त फिर मुग्ध हो कह उठे -
"बाबा चतुरानन्द की .....जय
"भगवान् चतुरानन्द की ....जय जयकार हो ..."

महंत जी फिर मुस्कुराये और दोनों हाथों से आशीर्वाद फेंक पुनः माइक से मुखातिब हुए ।

"आज भारत में अन्य समस्याओं की तरह दो समस्याएं मुख्य हैं पहली समस्या है भिखारी .....जी हां भिखारी ..भिखारी को भीख देना भारत की समस्या और  बढ़ा देता है ।भिखारी को भीख देखे हम उनके निठल्लेपन को और बढ़ा देते हैं अतः भिखारीयों को मेहनत की शिक्षा दें ताकि वे मेहनत कर अपनी जीविका चला सके ।छोटा मोटा मेहनत का काम भी आत्मगौरव का काम है भीख मांग कर खाना नीच कार्य है ,निठल्लों और कामचोरों का काम है "

महंत जी की बात ख़त्म हुई ही थी की भक्तो ने जोरदार तालियां बजा के उसका समर्थन किया ।

"बोलो भगवान् चतुरानन्द की ..."
जय....हो...

महंत जी मुस्कुराएं और दोनों हाथ उठा के आशीर्वाद फेंका ।

" भक्तो हमें पता चला है की कुछ भक्त  दान दान पेटी में नहीं डाल के किसी को भी पकड़ा देते हैं ,कृपया अपना दान दान पेटी में ही डाले या दान देखे पर्ची कटवा लें ...मनुष्य को अधिक से अधिक दान देना चाहिए ....क्या लेके आया है और क्या लेके जायेगा ...धर्म के नाम पर जितना निकल सके खर्च कीजिये ,जी खोल के दान पेटी में दान दीजिये...ओम ...ओम..." इतना कह महंत जी फिर खामोश हुए मिश्री की डली उठाने के लिए ।
भक्तो ने फिर जयकारा लगाया ।

वे माइक की तरफ मुख़ातिब होने वाले ही थे की एक बहुत ही खूसूरत बाला मंच के पीछे से निकल के आई ,गेरुआ वस्त्र पहने कोई साध्वी लग रही थी।आते ही उसने महंत जी को दोनों हाथ जोड़ के प्रणाम किया और अपना चेहरा महंत जी के कान के पास लाते हुए फुसफुसाई । महंत जी ने तुरंत माइक स्विच ऑफ कर दिया ।

"भगवन, सेठ पन्नालाल आये हैं ... कह रहे हैं कि दस करोड़ हैं ,एक नम्बर में कन्वर्ट करवाना है ...अर्जेन्ट। " युवती ने फुसफुसाते हुए कहा
"हम्म.... उससे कहो की शाम  को आये " महंत जी ने सोचते हुए कहा ।
"और हाँ.... बोलो की पिछली बार की तरह 20% नहीं बल्कि  30% में काम होगा ...खर्चे बढ़ गए हैं ...  " महंत जी ने अपनी बात पूरी की ।
"जी,जो आदेश "युवती ने रहस्मय प्यार भरी मुस्कुराहट के साथ झुकते हुए कहा ।
महंत जी बदले में युवती का हाथ दबाते हुए मुस्कुरा दिए और फिर माइक संभाला।

"तो भक्तो !दूसरी समस्या है काला धन ....हमें इन काला धन रखने वालों का बहिष्कर करना चाहिए ,ये काला धन रखने वाले देश को खोखला कर रहे हैं ....ओम..... ओम...."

पंडाल फिर भक्तो की तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा ।


Friday, 25 November 2016

वो भटकी हुई लड़की - आप बीती


"मुझे कुछ काम मिलेगा?"
"दुकान पर कुछ काम मिल जायेगा क्या ?"  लड़की ने पुनः दर्द भरे लहजे में कहा ।
मैंने उस लड़की की तरफ देखा।

रात के तकरीबन दस बजे से  कुछ ऊपर रहे होंगे , मार्किट की अधिकतर दुकाने बंद हो चुकी थीं । सड़क से भीड़ लगभग छंट सी गई थी  ,अब तो इक्का दुक्का ही दिख रहे थे उसमे भी शादियां अटेंड कर के वापस आने वाले अधिक थे । शराब का ठेका पास होने के कारण कुछ और देर में ही शराबियो का दुकानों के आगे बने चबूतरों पर कब्ज़ा होने वाला ही  था ।

"कैसा काम ? " मैंने दुकान बंद करने की प्रक्रिया आरम्भ करते हुए लड़की की तरफ सरसरी निगाह डालते हुए पूछा
"कोई भी काम ....झाड़ू पोछा भी कर लुंगी "लड़की ने जबाब दिया ।
"मेरे पास तो लड़के की जगह खाली है ,मुझे फीमेल स्टाफ नहीं चाहिए "मैंने उस लड़की को भागने वाले अंदाज में कहा ।
" मैं सब काम कर लुंगी , जो आप कहेंगे ... मुझे काम पर रख लो "लड़की ने लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा ।

अब मैंने अपना काम छोड़ उसकी तरफ ध्यान दिया ,तकरीबन 16-17साल की लड़की रही होगी वह ।चेहरे से बचपना झलकता हुआ किन्तु शरीर पूरा वयस्कता लिए हुए ।रंग साफ तथा  पुरे हाथो में मेहँदी लगी हुई जैसे अक्सर शादी ब्याह में लड़कियां लगवा लेती हैं ।

"कँहा रहती हो ?"मैंने आगे पूछा
"अभी कंही नहीं रहती " लड़की ने धीरे से कहा
"कंही नहीं रहती हूँ !मतलब!घर कँहा है तुम्हारा? " मैंने जोर देखे पूछा ।
"अभी कंही भी नहीं रहती ... आप काम देदो आपकी दुकान में सो जाऊंगी "लड़की ने जबाब दिया ।

मेरा माथा ठनक गया , कंही किसी गैंग की सदस्या तो नहीं जो अकेली लड़की काम मांगती है और फिर गैंग के साथ मिल के चोरी करती है ? या कंही अकेली लड़की पहले किसी दुकान में घुसती है और फिर छेड़ छाड़ का आरोप लगा के से पैसे ऐंठ लेती है ।
मैं थोड़ा घबरा गया पर फिर ध्यान आया की दुकान में तो कैमरे लगे हुए है और रिकॉर्डिग चालू है ।अगर छेड़ छाड़ का आरोप लगाएगी तो मेरे पास सबूत रहेगा । फिर मैं निश्चित हो लड़की की तरफ  पुनः
मुख़ातिब हुआ ।

"क्या नाम है तुम्हरा? और घर कँहा है तुम्हरा ?साफ़ साफ़ बताओ तभी तो कोई काम पर रखेगा " मैंने पूछा
" जी नेहा  , मैं घर से भाग के आई हूँ ....कल्याण पूरी में मेरा घर है " उसने  झिझकते हुए बताया ।
" घर से भाग के आई हो? "मैंने चौकते हुए पूछा ।
" किसी लड़के के साथ भागी हो ? "
"लड़के के साथ नहीं ,अकेली आई हूँ ... माँ सौतेली है और मारती है इसलिए भाग आई हूँ " लड़की ने जबाब दिया ।
 " भाग के आई हो ...तो अभी रोहगी कँहा?उम्र कितनी है तुम्हारी?यंहा इतनी दूर कैसे आई?"मैंने एक साथ कई प्रश्न पूछ डाले।
"पंद्रह साल ...बस में बैठ गई थी मुझे पता नहीं था कि कँहा जायेगी ..कंही भी रह लुंगी....आपके साथ रह लुंगी ,आप अपने साथ रख लीजिए मुझे आपका सब काम करुँगी "लड़की ने थोड़ा करीब आते हुए जबाब दिया ।

मैं थोड़ा  पीछे हट गया ।

"पंद्रह साल !नाबालिग है ,गुस्से में भाग के आई है ।अगर अभी इसे भगा देता हूँ तो सही नहीं रहेगा ...रात का समय है और सड़क भी सूनसान हो चुकी है यदि अब यह बाहर भटकती है तो सम्भवना कम है कि सुबह तक यह सही सलामत रहे  ...यदि किसी गलत हाथो में पड़ गई तो फिर इसका जीवन बर्बाद हो जायेगा ,बाकी जीवन शायद कोठे पर ही बीते ।अभी भी जिस तरह व्यवहार कर रही है कोई भी इसका फायदा उठा सकता है .... नादान लड़की है ,इसकी जरा सी गलती इसका पूरा जीवन बिगाड़ सकती है ।बाहर वैसे भी नसेड़ी सक्रीय हो चुके हैं और पास में ही एक बड़े क्षेत्र की आबादी में कुछ ऐसे भी लोग है जो अपने से अलग प्रार्थना  पदत्ति के समूह की महिलाओं से सम्बन्ध बनाने को 'शबाब' का काम  की मान्यता देते है ,अगर ऐसे लोगो के चंगुल में फंस गई तो न जाने क्या घटना हो जाए इसके साथ ।मेरे मन में न जाने कितनी ही इस प्रकार की शंकाओ की घनी बदली घिर आई  ।

मैंने कुछ सोचा और फिर पड़ोस के एक दुकानदार  को बुला लाया राय लेने के लिए ।जब उसने सारी कहानी सुनी तो उसके आँखों में एक अजीब सी झलक देखी मैंने ,वह लड़की से कई सवाल कर रहा था तो कर रहा था किंतु उसकी आँखे लड़की के वक्ष पर टिकी हुई थी ।

मैं चकरा गया ,लड़की यंही मेरे सामने ही सेफ नहीं लग रही थी ।मैंने तुरंत घर पर अपनी पत्नी को फोन किया और सारी बात उसे बताई ।

मैंने कहा कि मैं लड़की को लेके घर आ रहा हूँ ।

पत्नी ने कहा कि पहले पुलिस को फोन कर दो ।मैंने कहा कि अगर पुलिस को अभी  फोन करते हैं तो हो सकता है की यह भाग जाए तब इसे पकड़ना और मुश्किल होगा ,अगर मैं इसे पकडूँगा तो शोर भी मचा सकती है तब इसे संभालना मुश्किल होगा और हमें  दोस्त की वजाय दुश्मन समझने लगेगी  ।
मैंने कहा कि अभी इसे घर लाता हूँ और खाना खिलाते हैं फिर उसके बाद देखते है  कि आगे क्या करना है ।

मैंने फौरन दुकान का शटर गिराया और लड़की से कहा कि वह मेरे घर चले ,वंहा खाना -पीना करे उसके बाद उस काम पर रख लूंगा ।मुझे प्यार से उसे सम्भलना था ताकि वह कंही पुलिस का नाम सुन के भागने न लगे ।

रास्ते में उससे उसके बारे में और जानकारी लेता रहा ,उसने बताया कि उसकी एक बहन और है बड़ी जिसकी शादी 20 नवम्बर को ही हुई थी उसी शादी में हाथो में मेहंदी लगाईं है ।पापा ट्रक ड्राइवर हैं और अधिकतर बाहर ही रहते हैं ,माँ सौतेली है जो उसको तंग करती रहती है । अभी वह नौंवी कक्षा में ही थी की मां ने पढाई छुड़वा दी और घर के कामो में लगा दिया ,रोज किसी न किसी बात पर पिटाई करती है उसका फेवर लेके पिता भी मारता पीटता है ।आज मौका पा के घर से भाग आई।

मैंने पूछा की मां बाप पुलिस कंप्लेंट करेंगे तो ? पुलिस खोजेगी उसे ।तब उसने तपाक से जबाब दिया की उसकी गली से एक लड़की और भाग गई थी ,पुलिस ने एक दिन खोजा और फिर भूल गई वह लड़की आज तक नहीं मिली ।उसके दिमाग में था की पुलिस उसे एक दिन खोज के शांत हो जायेगी।

इतने में हम घर पहुंच गएँ।

घर पहुँच के  सब एक विवाह समारोह में जाने के लिए तैयार बैठे थे , जब मां को पता चला लड़की के बारे में तो वह गुस्सा हुई की किसी मुसीबत को न उठा लाया हूँ मैं  ।कंही लड़की उल्टा सीधा इल्जाम न लगा दे मेरे ऊपर,कंही उसके घर वाले ही कुछ इल्जाम लगा दें आदि कई तरह की शंकाओं को लेके परेशान हो उठी वह ।
फिर मेरे समझाने से की अकेली लड़की को यूँ रात में असुरक्षित कैसे छोड़ सकता था मैं ,उसके बाद कुछ शांत हुंई।

थोड़ी देर में पत्नी नेहा के लिए खाना ले आई ,खाना खिलाने के बाद उसे समझाने का काम शुरू हुआ । वह अपने घर जाने को तैयार ही न थी बल्कि वह तो हमारे साथ ही रहना चाहती थी । तब मैंने उसे समझाया कि वह नाबालिग है इस लिए पुलिस में सूचित करना जरुरी है वरना बाद में पुलिस हमें परेशान करेगी इसलिए एक बार पुलिस को सूचित करने के बाद हम उसे वापस ले आएंगे और फिर वह  जिनते दिन चाहे वह हमारे साथ  रह सकती है।मैंने उसका विश्वास जींतने के लिए कुछ रूपये भी दे दिए उसे ।

बहुत विश्वास दिलाने के बाद वह राजी हुई पुलिस थाने जाने के लिए ।उसके बाद मैं उसे थाने लेके चल दिया ,साथ में पत्नी और भाई भी थे ।रास्ते में मैंने एक दोस्त को फोन कर दिया की वह थाने आ जाए ।

थाने पहुंच के मैंने सारी बात बताई तो उन्होंने नेहा से उसके घर का पता पूछा जो अब तक मुझे वह सही से नहीं बता रही थी । नेहा ने अपने घर के पते के साथ साथ पिता का फोन नम्बर भी बताया । नेहा के पिता से पुलिस ने बात की और सारी बात बताई ,उसके पिता पुलिस स्टेशन ही जा रहे थे उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाने ।
उसके बाद पुलिस ने काफी तारीफ की हमारी और कहा कि इसे लोग कम ही होते हैं जो इतनी रात को एक अकेली लड़की की मदद करने के लिए पुलिस के पास आएं ।
उन्होंने नेहा से कहा की यह तो बहुत अच्छा हुआ की तुम इन जैसे लोगो के पास पहुँच गई और ये तुम्हे सही सलामत यंहा ले आये वार्ना पता नहीं क्या होता तुम्हारा ।

नेहा चुप खड़ी सब सुनती रही।

  हम नेहा के पिता के आने का इंतेजार करने लगे ,लगभग एक घंटे से अधिक देर हम थाने में बैठे रहे किंतु तब तक नेहा का पिता नहीं आये थे ।रात बहुत ज्यादा हो गई थी लगभग 12 :30 बज गए चुके  थे ,सुबह से काम कर के थक गया था और भूंख भी तेज लग रही थी तो मैंने पुलिस से इजाजत चाही ।पुलिस ने कहा की यदि हम चाहे तो रुक सकते हैं क्यों की नेहा के पिता आ रहे थे और "गुड़ फेथ" के तहत आभार भी प्रकट करना चाहते हैं ।

मैंने पुलिस से कहा की लड़की सही सलामत अपने घर पहुँच जायेगी यही सबसे अच्छी बात है हमारे लिए ,उसके बाद हम सब थाने से निकल लिए ।करीब  एक  घण्टे  बाद नेहा के पिता का फोन आया की उसे नेहा मिल गई है .... बहुत आभर प्रकट कर रहे थे ।

हमें  बहुत ख़ुशी हुई की एक लड़की को किसी गलत हाथो में पड़ के बर्बाद होने से बच गई थी ।

हाँ लेकिन इस बचाव कार्य में हमारी पार्टी जरूर मिस  हो गई थी ,बच्चे मुझ पर गुस्सा थे की उन्हें तैयार करवा के कर के भी मैं पार्टी में नहीं ले गया।
किन्तु मैं कितनी राहत महसूस कर रहा था यह बच्चो को क्या पता.....




Thursday, 17 November 2016

आखरी सिगरेट-कहानी

"खों....खों... खों..आह!"
बुरी तरह खांसते हुए उसकी आँख खुल गई ,खांसी इतनी भयंकर थी की उसे लगा अभी  कलेजा बाहर आ जायेगा । खांसते खांसते आँखों से पानी बहने लगा ,मुंह से बहुत सा थूक निकल के होठो के कोनो से टपकने लगा।

बहुत समय तक यूँ ही खाँसने के बाद उसने अपने सीने को दबाब के साथ मला और काँपते हाथो को बिस्तर पर गड़ाते हुए उठ बैठा ।

जर्जर शरीर को किसी तरह सँभालते हुए उसने बैड के सिरहाने अपनी पीठ लगाई , पास पड़े तौलये को उठा उसने पहले मुंह पोछा और फिर  काले घेरों के बीच निस्तेज आँखों से बहते हुए पानी को साफ किया । थोड़ी देर गहरी गहरी सांस लेने के बाद उसके नशो में कुछ शक्ति का संचार सा हुआ  हाथ बढ़ा टेबल पर रखे पानी के गिलास  को उठाया और एक सांस में ख़त्म कर दिया । पानी से गला तर करने के बाद एक नजर घडी पर डाली तो रात के तीन बज चुके थे ,चारो तरफ सन्नाटा पसरा था ।

"माँ शायद गहरी नींद में होगी तभी नहीं उठी? "उसने सोचा
" करे भी तो क्या बेचारी थक जाती है दिन रात सेवा करते करते मेरी " इतना सोचा के वह कमरे की छत की तरफ देखने लगा ।कुछ देर छत को यूँ ही निहारने के बाद उसने गर्दन नीचे की और सिराहने रखे दवाई की पुड़िया उठाने लगा, किन्तु अचानक उसका हाथ पुड़िया तक पहुँच के ठिठक गया ।
उसने बैड के गद्दे को उठाया ,गद्दे के नीचे एक सिगरेट का पैकेट रखा हुआ था  उसने झट से  सिगरेट का पैकेट उठा लिया ।

पैकेट खोल के देखा तो उसमे एक ही सिगरेट बची हुई थी । कुछ देर आखरी सिगरेट को यूँ ही अलपक देखने के बाद उसे बाहर निकाल  होंठो से लगा लिया , हाथ पैजामे में रखे लाइटर को खोजने लगे  । आगे पीछे की जेबो पर हाथ मारने के बाद आखिर लाइटर को खोज लिया गया , लाइटर  'क्लिक ' की आवाज कर नीली -पीली रौशनी के साथ ज्वलित हो उठा । सिगरेट और लाइटर की थिरकती ज्वाला का मिलन अभी होने वाला ही था कि उसके कानों में आवाज सुनाई दी -

"केशव! फिर सिगरेट? इतनी हालत खराब है फिर भी सिगरेट ....क्या अपनी जान लेकर ही मानेगा तू? डाक्टर ने साफ कह दिया है कि अब एक सिगरेट भी पी तो बचना मुश्किल है तेरा.... क्यों अपनी जान लेने पर तुला है पागल तू? तुझे मां का भी ख्याल नहीं ? चल फेंक दे सिगरेट...."

यह आवाज उसकी मां की थी ,उसने हड़बड़ा के लाइटर बुझा दिया और सिगरेट मुंह से निकाल ली ।किन्तु अगले ही क्षण उसे अहसास हुआ की यह केवल  उसका भ्रम है ,दरवाजा तो बंद है और माँ ऊपर के कमरे में सो रही है ।उसने निश्चित करने के लिए दरवाजे पर नजर डाली , नाइट बल्ब की रौशनी में  भी साफ़ साफ़ बंद दरवाजे को देख सकता था वह।

"हाँ !बन्द है दरवाजा... माँ नहीं है ...यह तो मेरा भ्रम भर है "वह बुदबुदाया और मुस्कुरा दिया ।उसने फिर सिगरेट मुंह से लगाई और लाइटर को रौशन कर दिया। अचानक उसकी नजर लाइटर से निकलने वाली लौ पर गई, लौ मानो किसी नृतकी की तरह थिरक रही हों। उसके हाथ वंही जड़ हो गए , उसके नेत्र उस नृत्य को गहराई ...और गहराई से निहारने लगे ।

" हूँ... इस तरह से क्या देख रहे हो ? सपना ने कोहनी मारते हुए पूछा
"ये चाँद सा रौशन चेहरा .... बालो का रंग सुनहरा... ये झील सी नीली आँखे .…." उसने सपना को छेड़ते हुए फ़िल्मी गाना गाया ।
"ओहो!इतनी भी सुंदर नहीं हूँ मैं " सपना ने इतराते हुए कहा ।
"जानेमन!हमारी नजरो से देखिये .... पूरी कायनात में आप जैसा हसीं कोई नहीं ...न तारे .. न चाँद ... न फूल ...न तितलियां....कोई नहीं ....आप सा हसीन कोई नहीं ..कोई नहीं " उसने दोनों बाहें फैला के ऐक्टिग वाली मुद्रा में कहा ।
"ओहो जी !ऐसा है क्या ....बंद करो अपनी एक्टिंग ,झूठी तारीफ़ तो कोई तुम से सीखे ...उँह"सपना ने मुंह बनाते हुए बनावटी गुस्सा दिखाया ।
"झूठ नहीं सच है .... कितना प्यार है तुम से आओ बताऊँ" इतना कह उसने सपना को खींच अपने सीने से लगा लिया ।
 जैसे ही सपना केशव के सीने से लगी उसने उसके ऊपरी जेब में रखे सिगरेट के पैकेट पर नजर पड़ी ।
"ओहो!तो सिगरेट भी पीते हैं जनाब!"सपना ने केशव की जेब से सिगरेट का पैकेट निकालते हुए पूछा ।
"कभी कभी ... जब तुम्हारी याद आती है न !तब  पी लेता हूँ ...वैसे नहीं " केशव ने थोड़ा झिझकते और मुस्कुराते हुए कहा ।
" अच्छा जी !! झूठ !...बहाना मत बनाओ " सपना ने थोड़ा गुस्से से कहा ।
" ठीक है !अब नहीं पियूँगा ... सच में " केशव ने मुस्कुराते।हुए कहा और सपना से सिगरेट का पैकेट लेके दूर फेंक दिया ।

चेहरे पर खुशी लिए सपना उसके सीने से लग गई।

एक रात.....

करीब रात के एक एक बज रहे होंगे,आज सपना का जन्मदिन था ।केशव ने जन्मदिन बाहर मानाने का प्रोग्राम बनाया था , जन्मदिन सेलिब्रेट कर वापस वे लोग बाइक से घर आ रहे थे की अचानक पीछे से आ रही एक तेज गति कार ने पीछे से  जोरदार टक्कर मार दी ।
टक्कर इतनी जोरदार थी की पीछे बैठी सपना तकरीबन चार फिट ऊपर उछल गई और कार के बोनट से टकरा दूर तक घिसटती चली गई । बाइक डिवाइडर से टकराई ,केशव का सर सड़क से टकराया तो हेलमेट चकनाचूर हो गया ।सर फट गया और एक टांग बाइक के नीचे आने से हड्डियां चकनाचूर हो गईं।

" सपनाsssss.....बेहोश होते केशव ने अपने दर्द की परवाह किये बिना चिल्लाया।
सपना कार के बोनट में फंसी दूर तक घिसटती चली गई ।
केशव बेहोश हो चुका था।

"सपनाssss......" केशव जोर से चिल्लाया ,अचानक उसे जैसे होश आया हो ।उसने देखा की लाइटर अब भी जल रहा है । उसने चेहरे पर हाथ फेरा तो हाथ गीला हो गया , चेहरा पसीना पसीना हो चुका था ।

उसके फिर अतीत में खो गया ,दो दिन बाद जब होश आया तो तो पता चला की सपना मर चुकी है ,केशव जैसे कोमा में चला गया ।बहुत दिन तक इलाज में बाद वह ठीक हुआ पर जिंदगी से एक दम रूखा हुआ ।

सपना की यादें उसे हमेशा तड़पाती, वह एक जिन्दा लाश बन गया था । सपना की यादें भुलाने के लिए उसने सिगरेट पीने शुरू कर दी थी ,एक दिन में 30-40 सिगरेट तक पी जाता । कुछ सालों में उसके  फेफड़े पूरी तरह से ख़राब हो चुके थे ,डाक्टर ने सख्त हिदायत दी थी की यदि अब एक भी सिगरेट पी तो उसका बचना मुश्किल होगा।

केशव ने लाइटर से निकली थिरकती हुई लौ को फिर से देखा ,उस लौ में पुनः सपना का अक्स  उभरता हुआ दिखा ।
उसे सपना बुला रही थी , उसके होठो पर वही मुस्कुराहट थी जिस पर केशव मरता था ।

आज सच में मरने का वक्त था ..... मरने का नही मिलन का वक्त था ।

केशव ने लाइटर की थिरकती लौ और मुंह में दबी सिगरेट की दूरियां मिटा कर एक लंबा काश खिंचा,उसके  चेहरे पर एक लंबी शांतिपूर्ण मुस्कान दौड़ गई।


बस यंही तक थी कहानी .....

Tuesday, 8 November 2016

अंकल-कहानी



सूर्य अभी भी चेहरे  पर लालिमा लिए हुए अनमना सा नींद में चलता चला आ रहा था ,किरणें धरती पर इस           प्रकार पड़ रही थी जैसे सूर्य ने इन्हें कैद किया हुआ हो और  गलती से कोई झरोखा खुला रह गया जिसमें से ये निकल निकल के भागती हुईं धरती की शरण में आ रही हों ।कलियाँ मानो रात भर की लंबी प्रतीक्षा  के बाद मुस्कुराती हुईँ   अपने प्रीतम भँवरों से आलिंगन के लिए  व्याकुल हों ।शीत ऋतु का आरम्भ ही था और हलकी सर्दी मासूस होनी शुरू हो गई थी , दिन भर भीड़ भाड़ की भाग दौड़ झेलने वाली सड़क अभी थोड़ा  सुस्त सी पड़ी थी ।इक्का- दुक्का लोग ही दिख पड़ते थे , उनमे से  भी ज्यादातर मोर्निंग वाक करने वाले अथवा  स्कूल कालेज जाने वाले विद्यार्थी ही थे ।

रोजाना की तरह करमू अपनी नाइट  ड्यूटी ख़त्म कर साईकिल में तेज तेज पैडल मारता हुआ   घर की तरफ ख़ामोशी से बढ़ा चला जा रहा था ।  उसे बाहर फैले मनोरम दृश्यों की अनुभूति करने की जरा सी भी फुर्सत  न थी , वह  चेहरे पर काम  की लम्बी थकान लिए  बस घर की तरफ भागा जा रहा था ताकि जल्दी से बिस्तर की आगोश में समा सके और ऐसा हो भी क्यों न ! था तो वह एक सिक्योरटी गार्ड जो 36 घण्टे की लगातार थकाऊ खड़े  रहने की ड्यूटी पूरी कर के आ रहा था , ऐसा  वह महीने में लगभग कई बार करता ताकि वह ओवरटाइम कर थोड़े अधिक पैसे कमा सके ।

करमू  एक मोड़ पर पहुंचा ही था कि अचानक उसके सामने तेज रफ्तार से बाइक आ गई , ऐसा लगा की बाइक उस से बुरी तरह टकरा जायेगी ।वह हड़बड़ाया  और बचने के लिए हैंडल एक तरफ मोड़ लिया जिससे वह डिवाइडर से टकरा गया  ।बाइक वाले ने भी साइकिल से बचने के  लिए जोरदार  ब्रेक लगाएं , एक तेज चिंघाड़ के साथ बाइक थोड़ी असन्तुलित होती हुई रुक गई ।

करमू डिवाइडर से टकरा के गिर गया था पर गनीमत थी की कोई चोट नहीं आई थी । वह एक दम गुस्से से भर गया  ,उसके मुंह से बाइक सवार के लिए गालियां निकलने वाली ही थी की उसने देखा की बाइक सवार उसके पास ही आ रहा है ।
" अंकल ! सॉरी..... आपको कंही चोट तो नहीं लगी ?"बाइक सवार ने हैलमेट उतारते हुए उस से पूछा ।
"देख के क्यों नहीं चलता ...साले मरने का इरादा है क्या ? या किसी को मारने का ? कोई बड़ी गाडी होती तो तिया पांचा कर देती अभी तेरा ? " करमू ने गुस्से में कहा ।
"अंकल गलती हो गई ,दरसल ऑफिस  के लिए देर हो रही थी न ...इस लिए थोड़ा जल्दी में थे " एक  सुरीली आवाज को सुन करमू ने गर्दन घुमाई तो देखा की एक युवती खड़ी थी ।बहुत ही सुंदर ,उसका गुस्से का उबलता दूध एक दम मद्धिम पड़ गया ।
"अंकल !आप ठीक तो हैं न ?"लड़की ने फिर अपनी मिश्री जैसी मधुर आवाज में करमू से पूछा ।
" हाँ ठीक हूँ " करमू के मुंह से अनायास ही निकल गया पर तुरंत ही उसका मन खीज गया ।इतनी सुंदर लड़की उसे अंकल कह रही है ,बड़ा बुरा सा लगा उसे आखिर उसकी उम्र ही कितनी होगी मात्र 35 साल ही तो है और लड़की भी तो कम से कम 23-24 साल की तो होगी ही ।
"हाँ ठीक हूँ ..." करमू ने बुरा सा मुंह बना अपनी साईकिल खड़ी करते हुए कहा ।
" ओके अंकल ...एक बार फिर सॉरी" लड़की ने कहा और बाइक की तरफ मुड़ गई ,उसके पीछे पीछे लड़का भी चल दिया ।कुछ पल में  लड़के ने बाइक स्टार्ट की और नजरो से ओझल हो गया ।

करमू फिर एक बार साईकिल में पैडल मार रहा था किंतु इस बार वह खामोश नहीं था बल्कि उसके मस्तिष्क में तूफान उठ रहा था ।
उस लड़की की संबोधन 'अंकल.." बार बार गूंज रहा था ।
 "अंकल ....अंकल...." ओह! ऐसा लग रहा था जैसे चारो तरफ से यह आवाज उसे चिढ़ा रही हो ।
"अंकल...क्या मैं सच में इतना बूढ़ा हो गया हूँ ? करमू ने अपने आप से प्रश्न किया ।
"हाँ सच में मैं बूढ़ा ही लगने लगा हूँ ,बूढ़ा!अपनी जिम्मेदारियो को संभालते संभालते कब बूढ़ा दिखने लगा मुझे पता ही न चला"करमू के मस्तिष्क में जीवन की वो सारी घटनाये ऐसे प्रकाशित हो उठी जैसे अभी कल ही घटित हुईं हो ....वह अतीत में चला गया ।
कितना होशियार था वह पढ़ने में , जब दसवीं में आया था तो उसके पिता जी कहते की वह जरूर एक दिन पढ़ लिख के नाम रौशन करेगा उनका ।

दोस्तों में सबसे ज्यादा आकर्षक लगता था करमू इस कारण बहुत से लड़के उस से ईर्ष्या रखते तो मोहल्ले की कई लड़कियां उस के करीब आने की कोशिश में रहती ।एक लड़की से तो उसे सच्ची वाला प्यार भी हुआ था ,जिसे बाइक पर बैठा लॉन्ग ड्राइव पर जाने के दिवा स्वपन देखता। दिवा स्वप्न इस लिए की उसके पास उस समय साईकिल तक न थी तो बाइक बहुत बड़ी बात थी ,पर अरमान तो थे ही जो अभाव नहीं देखते।
फिर अचानक एक दिन उसकी जिंदगी बदल गई ,पिता की अकस्मात मृत्यु ने सब कुछ उजाड़ के रख दिया।परिवार की आर्थिक स्थति बेहद खराब हो गई ,माँ जो कभी घर से बाहर न निकली थी काम के लिए अचानक इतनी बड़ी क्षति को बर्दाश्त नहीं कर पाई और बीमार रहने लगी ।

घर में दो छोटी बहने थी करमू की जो कक्षा 5 और 7में पढ़ती थी उनकी भी पढाई छूट गई ,मजबूर करमू ने परिवार और अपना पेट भरने के लिए किताबे फैंक हाथो में झाड़ू पोछा उठा लिया ।किसी जानकार ने एक हॉस्पिटल में साफ़ सफाई के काम में रखवा दिया , अपने दसवीं की परीक्षाएं भी न दे पाया।

उसके बाद करमू की  जिंदगी कैसे बीतने लगी उसेस्वयं भी अहसह न हुआ,दिन भर कड़ी मेहनत और शाम को थोड़े और अधिक पैसे कमाने के लिए शादियों में गुब्बारे बेचना यही उसकी जिंदगी बन गई ।
अपनी दोनों बहनों की अच्छी परवरिश और फिर उनकी शादी करते करते कब वह 35 साल का 'अंकल' बन गया उसे पता भी न चला , परिवार के  होंठो पर  मुस्कुराहट लाते लाते कब उसके खुद के चेहरे की आभा चुपके से  50 साल के बूढ़े के चेहरे की झुर्रियो में परिवर्तित  हो गई यह देखने का मौका ही न मिला उसे ।

 बाइक पर गर्लफ्रेंड को बैठा के लॉन्ग ड्राइव पर जाने का अरमान न जाने कब पहले बस में थक्के खा के और अब साईकिल में पैडल मार मार के  नौकरी पर पहुँचने  तथा गुब्बारे बेचने में ख़त्म हो गए । लड़कपन में शुरू हुई रोटी कमाने की दौड़ आज तक ख़त्म न हुई ,आज भी चंद पैसो के लिए वही दिन रात की हाड तोड़ मेहनत इनके बीच भावनाये कँहा गुम हुई की खोजे नहीं मिली ।

मस्तिष्क में मजबूरियों का अतीत और वर्तमान की लाश लिय वह घर पहुंचा , कपड़े उतारने के अभी टाँगे ही थे की उसकी मां हाथ में पानी का गिलास लिए उससे कहा-
"करमू बेटे !तेरी छोटी वाली बहन कह रही थी की उसके घर का फ्रिज खराब हो गया है .....अगर तू नया फ्रिज दिला दे उसे तो बहुत अच्छा होगा "

करमू एक क्षण खामोश रहा ,फिर ठड़ी आह भरता हुआ बोला-
"ठीक है माँ ....अगले महीने और अधिक ओवरटाइम कर के दिलाने की कोशिश करूँगा "इतना कह वह यंत्रचालित मानव सा अपने विस्तर में  सोने चल दिया ।

बस यंही तक थी कहानी .....



Sunday, 23 October 2016

जानिए कौन थे वैदिक किन्तु प्रबल नास्तिक ?



यदि हम भारत में नास्तिकता  की बात करें तो अमूमन  इस परम्परा में गैर ब्राहमणों का अधिकार रहा है  ,किन्तु ऐसा भी नहीं रहा की ब्राहमण ने ईश्वर के अस्तित्व को नकारा न हो| ईश्वर परस्त होने के बाद भी कई तार्किक ब्राह्मण ऐसे हुए जिन्होंने ईश्वर के अस्तित्व का जम कर खंडन किया |

ऐसे ही एक विचारक  ब्राह्मण हुए कुल्लुक भट्ट ,यह भी दिलचस्प रहा की कुल्लुक भट्ट ही वे विचारक थे जिन्होंने सातवी सताब्दी में वैदिक संस्कृति को पुनर्जीवित का अथक प्रयास किया |इन्ही का ध्वज बाद में आदि शंकराचार्य ने उठाया और वैदिक संस्कृति को पुर्नप्रतिष्ठित किया |

कुल्लुक भट्ट पहले बौद्ध थे किन्तु बाद में उन्होंने वैदिक धर्म अपनाया और वेदों के प्रति निष्ठा व्यक्त कर उसको प्रचारित करने का संकल्प लिया |भारत से बौद्ध धर्म को नष्ट करने में इनका बड़ा किरदार रहा था ,वे आपने साथ सुन्धावा की सेना ले के चलते थे और जब बौद्धों से तर्क करते हुए हार जाते तो  सेना का प्रयोग करते |

किन्तु, यदि हम उनकी मूल विचारो की बात करें तो वे ईश्वरवाद का खंडन करते हैं ,कुमारिल भट्ट अपनी पुस्तक ‘श्लोक वार्तिक ‘ में ईश्वर के अस्तित्व का लम्बा तर्किक खंडन करते हैं |अब यह आप उनके मस्तिष्क पर बौद्ध धर्म से मिले अनिसश्वरवाद के   ज्ञान का असर कह लीजिये अथवा ईश्वर नाम की कपोल कल्पना का सच जान के उन्होंने इसका खंडन किया |

श्लोक वार्तिका कुमारिल भट्ट का लम्बा और तार्किक खंडन है ईश्वर के विरोध को लेके |

१-      ईश्वरवादी कहते है की ईश्वर अमूर्त है उसका कोई शरीरी नहीं  तथा ईश्वर ने दुनिया बनाई है ,इस पर कुमारिल भट्ट तर्क था की जब ईश्वर का कोई शरीर ही नहीं तो वह दुनिया कैसे बना सकता है ?बिना शरीर के किसी चीज को बनाना कैसे संभव है ?

२-     कुमारिल भट्ट अगला तर्क देते हैं की ईश्वर ने दुनिया किस उद्देश्य से बनाई ?आखरी उसने ऐसी दुनिया क्यों बनाई जिस पर उसका खुद का नियंत्रण नहीं ?जब पहले से कोई भौतिक तत्व उपस्थित नहीं था तो ईश्वर को भौतिक तत्व कंहा से मिले जिससे उसने दुनिया बनाई ?

३-     इस तर्क का खंडन करने के लिए ईश्वरवादी यह कहते हैं की जैसे मकड़ी बिना किसी बाहरी तत्व के जाला बन लेती है उसी प्रकार ईश्वर ने  भी बिना किसी बाहरी तत्व को लिए हुए दुनिया रची | इस पर भट्ट तर्क देते हैं की मकड़ी तो कीड़े मकौड़े खाके और उन्हें पचा के जाले बनाने का पदार्थ तैयार करती है क्या ईश्वर भी भौतिक वस्तुए खा के दुनिया बनाई ? दुनिया अस्तित्वहीन पदार्थ से कैसे अस्तित्व में आ सकती है |

४-     ईश्वरवादी यह तर्क देते हैं की ईश्वर रचना करता है और संहार करता है , इस पर कुमारिल भट्ट खंडन करते हुए तर्क देते हैं की जब बनाया तो नष्ट करने का उद्देश्य क्या ?क्या ईश्वर इतना बुद्धिहीन है की दुनिया को बिना नष्ट किये उसे सुधार नहीं सकता ? फिर जब एक बार नष्ट कर दिया संसार को तो दुबारा किस उद्देश्य से बनाया ? क्या दुबारा बनाने की इच्छा अपूर्ण इच्छाएं नहीं कहलाती ? यदि यही बनाना और संहार करना ही उसका काम है तो क्या वह इस काम से उकता नहीं जाता ? उबना अशरीरिक कैसे हुआ ?

इस प्रकार कुमारिल भट्ट नास्तिकता के पक्ष में बहुत से तार्किक उत्तर देते हैं , जिनका खंडन ईश्वरवादियों  के लिए कठिन है |



Wednesday, 19 October 2016

दखलंदाजी -कहानी

“या हमारे दीन पर हमला है, हम यह बर्दास्त नहीं करेंगे “
“हम ईंट का जबाब पत्थर से देना जानते हैं ....सरकार यह न समझें की इस देश में हम कमजोर है ...हम अपने हक़ के लिए कुछ भी कर सकते हैं ....किसी का भी हमारे मजहब में दखल देने की इज़ाजत मंजूर नहीं .....कुराने पाक और शरियत में दखल देने की इजाजत किसी को नहीं ...अगर कोई इसमें दखल देता है तो हम उसके खिलाफ जायेंगे ..कोई भी सिविल कोड का नाम लेके यूँ हमारे मजहब से खिलवाड़ नहीं कर सकता....कोर्ट भी मजहब से बढ़ के नहीं  ” खान साहब पुरे जोश से भाषण दे रहे थे
“ बिलकुल भी नहीं ....बिलकुल भी नहीं ....हम यह बर्दास्त नहीं करगे ...अल्लाह के हुक्म में दखलंदाजी ..हरगिज नहीं ..हरगिज नहीं “ खान साहब की जोशीली तकरीर सुन भीड़ में और जोश भर गया वह उत्तेजित हो चिल्लाने लगी |

लगभग हजार की भीड़ होगी जिसे खान साहब और बाकी के कुछ ‘नेता ‘ टाइप के लोग संबोधित कर रहे थे , खान साहब एक मदरसे में मौलवी थे और दीन के विषय में काफी विद्वान व्यक्ति थे|

लगभग डेढ़ घंटे इस प्रकार की तकरीरे और भाषण देने के बाद खान साहब और अन्य कौमी नेता लोग मंच से  रुखसत हुए|

कार में बैठे खान साहब को उनके असिस्टेंट ने कहा –
“मौलवी साहब !बहुत बेहतरीन भाषण दिया आपने ...देखिये अल्लाह ने चाहा तो एक दिन आप बहुत अच्छे नेता बनेंगे|कौम की रहनुमाई करेंगे “
खान साहब उसकी बात सुन ख़ुशी से मुस्कुरा दिए और बोलेन –
“ अरे !उनकी हिम्मत कैसे हुई हमारे मामलात में दखलंदाजी करने की? इस देश का मुस्लिम कमजोर नहीं जो कुरान के खिलाफ कोई बात सुने ....तीन तलाक हमारा मसला है और हम किसी को शरियत में बदलाव की इजाजत नहीं देंगे |हमारे मज़हब में तीन तलाक हक़ है और कोई भी कानून इसे रोक नहीं सकता “

”जी जनाब...बिलकुल वजा फरमाया आपने “ असिस्टेंट ने सहमती से सर हिलाते हुए कहा |

अभी बातचीत चल ही रही थी की खान साहब के फोन की घंटी बजी ,खान साहब ने जेब से मोबाइल निकाला और हेलो किया | दूसरी तरफ उनकी बेटी थी ,बेटी ने ऐसा कुछ कहा जिसको सुन खान साहब के चेहरे का रंग उड़ गया |उनके हाथ कांपने लगे, बड़ी मुश्किल से उन्होंने खुद को काबू किया |

असिस्टेंट जब यह देखा तो उसने पुछा की क्या बात हुई ?खान साहब ने उदास होते हुए कहा –
“क्या बताऊ मिया ! बेटी रुखसाना के ससुरालवाले काफी लालची हैं ,शादी में पांच लाख कैश और अल्टो कार दी थी दहेज़ में पर हरामजादो का मन नहीं भरा और रोज कुछ न कुछ मांग करते रहते थे | न देने पर तलाक की धमकी देते रहते थे ,पिछले हफ्ते एक लाख और मांग रहे थे ...अब मेरे पास इतने पैसे अभी नहीं हैं पर ससुरालवाले मान ही नहीं रहे थे | अभी फोन आया रुखसाना का की उसको मर पीट के घर से निकाल दिया है , उसके दुल्हे शौहर ने तीन तलाक भी दे दिया |रुखसाना रोती हुई घर आ रही है ...” इतना कहा खान साहब खामोश हो गए |

फिर अचानक ही गुस्से में भर बोले –
“ ऐसे कैसे तलाक दे देंगे हरामजादे ? इस देश में कानून है की नहीं ? सालो को कोर्ट में घसीट के ले जाऊँगा ....साले पूरा परिवार दहेज़ के केस में जब जेल जायेगा तब अक्ल आएगी उन्हें ....”

उनकी बाते सुन असिस्टेंट की आँखे आश्चर्य से फ़ैल गईं|


Thursday, 13 October 2016

जानिये क्या है मनोचकित्सा

मेरे एक रिस्तेदार हैं( किसी कारण से उनका  नाम नहीं ले सकता) . कल उनके घर जाना हुआ तो पता चला की उनकी पत्नी कई दिनों से बीमार हैं , कई डॉक्टर्स से उन्हें दिखाया किन्तु कोई लाभ न हुआ ।उनका दावा है की डॉक्टर्स तो उनकी पत्नी के रोग के बारे में पता भी न कर पाएं ।
इसलिए थक हार के वे निराश हो चुके थे तब एक दिन किसी पडोसी ने उन्हें गाजियाबाद के एक बाबा का नाम बताया ।यह बाबा मंत्रो के जरिये लोगो को ठीक करता है , मन्त्र मार जल पीने को देता है मरीजो को ।

उस तांत्रिक के अभिमंत्रित जल से रिस्तेदार की पत्नी ठीक होने लगी हैं और पहले से आराम है ऐसा वह कह रहे हैं ।
पर ,जंहा तक मुझे समझ आया है की यह सब ढोंग है ,वह बाबा लोगो को मुर्ख बना रहा है । तन्त्र मन्त्र से ठीक होने का दावा करने वाला व्यक्ति 99.9% कंही न कंही मनोरोगी होता है जिसके बारे में उसे भी नहीं पता होता है ।

मनोचकित्सको के अनुसार मनोरोग सैकड़ो प्रकार के होते है जिसे फोबिया भी कहते हैं ,अमूमन भारत में मनोरोग के बारे में बहुत कम जागरूकता है ।गाँव -देहात में ही नहीं शहरों में भी लोग या तो मनोरोग के बारे में जानते ही नहीं या मानते ही नहीं की उन्हें मनोरोग हुआ है ।जबकि अधिकतर व्यक्ति मनोरोग के शिकार होते हैं जिसमे सनक से लेके पागलपन तक शामिल है ।

मेरा एक मित्र है जो मंगलवार को शराब नहीं पीता जबकि अन्य दिन खूब पी सकता है । मंगलवार को शराब या मांस से परहेज करने वाले आप के आस पास भी बहुत होंगे ।इसका कारण बेशक वे 'श्रद्धा 'अथवा 'आस्था ' कहें किन्तु मनोचकित्सको के अनुसार यह 'मनोरोग ' है ।
यदि भूल से वह व्यक्ति मंगलवार को मांस या शारब पी ले तो उसे यह भयंकर अपराध बोध लगेगा जो और यह अपराधबोध सामान्य से पागलपन की हद तक जा सकता है ।जिसमे यदि व्यक्ति का कभी कोई अनिष्ट हो जाता है तो उसका कारण वह उसी अपराधबोध को मानेगा , अतः वह टोने टोटके करेगा या पागलपन वाली हरकत करेगा। यही मनोरोग है ,यह कम या ज्यादा इस पर निर्भर करेगा की वह आपनी आस्था के प्रति कितना अंधभक्त है ।

आपने अभी हाल की घटना सुनी या पढ़ी होगी की एक जैन परिवार ने आस्था के चलते अपनी 13 वर्षीय पुत्री को 64 दिनों से उपवास पर रखा जिसके चलते उस लड़की की मृत्यु हो गई ।यह मनोरोग का चरम था जिसके चलते परिवार ने लड़की को भूँखा मार दिया ।


प्रसिद्ध वैज्ञानिक फ्रायड ने सिद्ध किया था की मानव मन के तीन धरातल होते है जो इस प्रकार है -
1-चेतन
2-अचेतन
3-अवचेतन

मन तीन प्रकार के कार्य करता है -इच्छाओ का निर्माण, इच्छाओं पर नियंत्रण और उनकी संतुष्टि ।
पहला काम भोगा पर आश्रित मन का है ,दूसरा नैतिक मन का और तीसरा अहंकार का ।इच्छाओं का निर्माण अचेतन मन में होता है , उसका नियंत्रण अवचेतन मन में और उसकी संतुष्टि चेतन मन में ।
जब भोग की इच्छित मन और नैतिक मन का संघर्ष अवचेतन मन में चला जाता है और इच्छाओं को संघर्षपूर्वक कठोरता से नैतिक मन द्वारा  दबा दिया जाता है तब यह संघर्स  अचेतन मन में चलने लगता है तब यही संघर्ष ही ' रोग' बन जाता है ।यह इच्छाये अनगिनत प्रकार की हो सकती है अतः मनोरोग भी अनगिनत प्रकार के होते हैं ।

फ्रायड ने इस संघर्ष से व्यक्ति के मन को मुक्त करने की प्रक्रिया को ही ' मनोचकित्सा 'कहा है ।अचेतन मन में चल रहे नैतिक और इच्छित मन के संघर्ष के रेचन और चेतन मन को संतुष्टि ही मनोचकित्सा है ।

बहुत बार ऐसा होता है की लंबे समय तक डॉक्टर्स की  दवाइयाँ खाने के बाद व्यक्ति जब ठीक होने की अवस्था में पहुंचता है तब वह बाबा या तांत्रिक की शरण में पहुँच जाता है ।चुकी उस उसे लगता है की दवाइयाँ खाने से कुछ नहीं हो रहा है इसलिए वह बाबा पर आस्था रख के आता है , और यही आस्था उसे यह विश्वास दिलाती है की बाबा उसे ठीक कर देंगे ।बाबा उन्हें अहसास दिला देता है की उसका मन्त्र तंत्र उसे ठीक कर देगा , तब यब आस्था काम आती है और दवाईयो का श्रेय बाबा ले जाता है ।चेतन मन संतुष्ट हो जाता है और मरीज को लगता है की वह ठीक हो गया है।

यही सब मेरे उस रिस्तेदार की पत्नी के साथ भी हुआ , बाबा के प्रति आस्था और उसका विश्वाश दिलाने से उनके चेतन मन को संतुष्टि हुई और उन्हें लगा की वह ठीक हो रही हैं ।जबकि तंत्र मन्त्र केवल बकवास है और इससे कोई लाभ नहीं होता ।


Tuesday, 11 October 2016

योद्धा - कहानी

अमूमन प्रतेक रात्रि में भयंकर गर्जना कर अपनी लहरो को क्रोध में  दूर तक उछाल के जैसे सभी कुछ नष्ट कर देने की चेष्ठा करने वाला समुन्दर इस रात्रि जैसे शोक में डूबा  शांत -अचेत पड़ा हुआ  प्रतीत हो रहा था ।उसकी लहरे माध्यम गति से रेतीली भूमि से टकरा रही थीं जैसे कोई मृत्यु के निकट हो और अंतिम साँसे गिन रहा हो ।

रात्रि की कालिमा बहुत घनी प्रतीत हो रही थी , बिलकुल भयभीत करने वाली ।बीच बीच में नरभक्षी आरण्य पशुओं द्वारा हड्डियां चबाने की और माँस के लिए लड़ने झगड़ने की ध्वनियां साफ़ सुनाई दे रहीं थी ।

अभी कुछ ही पहर बीते होंगे युद्ध समाप्त हुए , नियमानुसार संध्या होने के कारण युद्ध रोक लिया गया था अब युद्ध अगले दिन आरम्भ होगा।यही युद्ध का नियम था, सूर्योदय से लेके सूर्यास्त तक ही युद्ध किया जा सकता था उसके बाद नहीं ।दोनों ओर के घायल और मृत सैनिको को अपनी अपनी सेना द्वारा उठाया जा चुका था किंतु मरने वालो की संख्या इतनी अत्यधिक थी की प्रत्येक मृत शरीर को उठाना संभव न था अतः कुछ मृत सैनिक रणभूमि जो की समुन्दर के किनारे थी छूट गए थे ।आरण्य नरभक्षी पशु उन्ही मृत सैनिको को खा रहे थे ।

लंकापति रावण निढ़ाल , निषतेज, निषप्राण  और शोकाकुल -चिंता में आकंठ डूबा एक शिलाखंड पर बैठे दूर तक फैले समुन्दर को देख रहा था ।उसे रह रह के अपने कुनबे के एक एक सदस्य की रण में मृत्यु विचलित कर रही थी ,कुम्भकर्ण,मेघनाथ आदि समस्त उसे सगे-संबंधी एक एक कर राम से लड़ते हुए रण में काम आ गए थे ।अब वह अकेला था , बिलकुल अकेला ।महल में मृत सैनिको की स्त्रियो की चीत्कार उसे विचलित कर रही थी अतःमंदोदरी के लाख समझाने के बाद भी रावण अकेला ही महल से बाहर आ गया । अपने खड़ग् को हाथो में लिए वह एकांत की तलाश में समुन्दर के तट पर पहुंचा तथा एक  शिलाखंड पर अपना खड्ग रख वह धम्म से बैठ गया ।

रावण एकटकी लगाये विशाल समुन्दर जो इस समय उसी की तरह निस्तेज लगा रहा था उसे देख रहा था की एकाएक किसी की वाणी उसके कानो में गूंजी।

" दौहित्र...दौहित्र..'
"दौहित्र .... रावण '

रावण के विचार एकाएक भंग हुए और उसका हाथ खड्ग की तरफ बढ़ा की उसे लगा की यह वाणी तो जानी पहचानी है ,बिलकुल किसी अपने की ।यह वाणी तो वह बचपन से सुनता आ रहा था , किसी अपने प्रिय की ।
रावण ने अपने नेत्र फैला के अंधेरे में और स्पष्ट देखने की चेष्ठा की तो उसे एक साया दिखा ।

साया चलता हुआ उसके और समीप आ गया ।
'' प्रिय रावण...''साये ने बिलकुल करीब आ संबोधित किया

सहसा रावण को अपने नेत्रो पर विश्वास न हुआ किन्तु जब साया बिलकुल समीप आ गया तो रावण ने साये का मुख देखा ।
"मातामह..."
" मातामह...आप!!"यह रावण का नाना सुमाली था ।सुमाली , जिसे रावण सबसे प्रिय था और रावण भी सबसे ज्यादा स्नेह  रखता था अपने नाना । सुमाली ने ही रावण को बलवान और इतना बड़ा योद्धा बनाया था अतः सुमाली के प्रति रावण का विशेष अनुग्रह था , रावण सुमाली को अपना मार्गदर्शक मानता था ।

किन्तु सुमाली कैसे आ सकता है ?रावण के मन में यह प्रश्न उठा , वह कुछ पूछने वाला ही था सुमाली ने हाथ के संकेत  से उसके सभी प्रश्नवाचक ज्वारो को शांत रहने को कहा ।

"प्रिय रावण!इतना व्याकुल क्यों हो? "
"मातामह ! मेरे सभी सगे- संबंधी , सेनापति सैनिक सब युद्ध में काम आ गए .... बिलकुल अकेला हो गया हूँ मैं ... स्त्रियो की चीत्कार मुझे व्याकुल कर रही है ...शत्रु और समीप आता जा रहा है ..लंका में पुरुषो के नाम पर थोड़े से सैनिक और बूढ़े बचे हुए हैं ....आह! मेरा प्रिय इंद्रजीत और कुम्भकर्ण दोनों मुझे छोड़ के चले गए " कहते कहते रावण के नेत्रो से अश्रु निकल अधरों तक लुडक गए ।
" मातामह, कभी कभी विचार करता हूँ की सीता को लौटा दूँ और यह रक्तपात समाप्त कर दूँ "रावण ने एक बार फिर समुन्दर पर नजर डाली और कहा ।
"दौहित्र!क्या तुम यह समझ रहे हो की राम युद्ध सीता के लिए कर रहे हैं ?न यह सत्य नहीं है ! राम सीता के लिय युद्ध नहीं कर रहे हैं " सुमाली ने रावण के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा ।
" क्या !!क्या कह रहे हैं आप मातामह? राम सीता के अनुग्रह नहीं रखते? क्या वे सीता के वियोग में लंका से युद्ध नहीं कर रहे हैं ?रावण ने श्यामवर्णीय मुख पर आश्चर्य के अनेक भाव एक साथ उतपन्न हो गए ।

"वस्तुतःनहीं! वे युद्ध इस लिए कर रहे है की लंका जो की  अनार्य संस्कृति है उसे आर्य संस्कृति में बदला जा सके ।राम ऐसा बालि के वध के उपरांत कर चुके हैं , वैदिक ऋषि विश्वामित्र उनके मार्गदर्शक हैं उन्ही की आज्ञा से राम वैदिक धर्म प्रचारित कर रहे हैं , चुकी तुम अनार्य धर्म के सबसे रक्षक हो अतः तुम्हे समाप्त किये बिना उनका अभियान अधूरा रहेगा  ।राम जानते थे की सुग्रीव आसानी से संधि कर लेगा क्यों की वह धूर्त बाली की पत्नी और राज्य पर कुदृष्टि रखता है उसका मंतव्य बाली को समाप्त कर राजा बनने का है जिसके बारे में वह एक बार चेष्टा भी कर चुका था ।अतः सुग्रीव से यही वचन भरवाये थे राम ने और संधि भी इसी आधार पर हुई की वह किसकिन्धापुरी में वैदिक धर्म का प्रचार करेगा तथा लंका विजय में सहायता करेगा  , बालि को समाप्त करने के बाद ऐसा हुआ भी " सुमाली शांत भाव से सब कहे जा रहा था और रावण बुत सा सब सुने जा रहा था ।

"विभीषण भी इसी मंशा से राम के साथ मिला है ताकि वह तुम्हारे उपरांत लंका के वैभव को भोग कर सके , उसकी इच्छा तुम्हारे  सिंहासन पर विराजमान होना है यंहा तक की तुम्हरी पटरानियों को भी प्राप्त करना चाहता है ....अनार्य संस्कृति पर ये दोनों  विश्वशघाति बहुत अनर्थ करेंगे भविष्य में ....अनार्य संस्कृति लुप्त हो जायेगी और गुलाम बना ली जायेगी " इतना कह सुमाली खामोश हो गया ।

" नहीं!!... कदापि नहीं .....रावण के जीवित रहते हुए ऐसा नहीं हो सकता ... अनार्य संस्कृति कभी मिट नहीं सकती .. मैं हर एक हाथ को काट दूंगा जो रक्ष संस्कृति की तरफ उठेगा ... " रावण क्रोध से चीत्कार उठा
" तथास्तु प्रिय दौहित्र ... किन्तु वे लोग तुम्हे दस सिरो वाला ,क्रूर, अन्यायी ,भयंकर रूप रंगवाला आदि कितने ही विकृत नामो से प्रचारित करेंगे " सुमाली ने रावण को समझाया ।

"परवाह नहीं मातामह, चिंता नहीं ... वे लोग मुझे क्या कह प्रचारित करेंगे इसका शोक न होगा लंका रहे या न किन्तु मैं अपने जीवित रहते वैदिक संस्कृति को लंका पर हावी न होने दूंगा ... उसे कभी लंका में प्रचारित न होने दूंगा  , मैं प्रचारित न होने दूंगा वर्ण व्यवस्था को, पशुबलि , नरमेध यज्ञ , अश्वमेध यज्ञ तथा अनेक कर्मकांडो को ...मैं जीते जी लंका में प्रचलित न होने दूंगा वैदिक संस्कृति को "
 - इतना कह रावण ने हुँहकर भरी और अपना खड्ग उठा तेज गति से अपने महल की तरफ चल दिया , कल के युद्ध की तैयारी करने ।अब उसके मुख शोकाकुल  नहीं अपितु सूर्य सा प्रकाश था , निढ़ाल भुजाओ में पहले सी शक्ति संचालित हो गई थी, आँखों की लालिमा फिर से वापस आ गई जिससे इंद्र जैसे देवता भी भय खाते रहे थे  ।



Friday, 7 October 2016

चरवाहा-कहानी

" हुर्र...ह...अह..ह...
"च्....हुर्र...ह...
जैसी आवाजें निकालता हुआ मुन्नालाल  जंगल से अपने जानवरो को हांकता हुआ घर लौट रहा था ।पांच बकरियां , दो भैंसे और एक गाय का मालिक था मुन्नालाल , खेतो के किनारे बनी मुश्किल से दो फुट की पगडड्डी पर बड़े ध्यान से और बड़ी सधे हुए चाल से हाँक रहा था वह जानवरो को ।रास्ते के दोनों तरफ गेंहू की फ़सल लह लहा रही थी , स्वभाव से चंचल बकरियां जंगल में पेट भर चरने के बाद भी ललचाई नजरो से गेंहू के हरे हरे पौधों को घूर घूर के देख रहीं थी और जैसे ही मुन्नालाल जरा सा नजरो से चूकता दौड़ के खेतो में मुंह मार देती ।तब मुन्नालाल अपने सोंटे से उनकी पिटाई करता ।

मुन्नालाल रोज इसी तरह जंगल से अपने जानवर चरा के लाता , जंगल में तो जानवर खूब उछल कूद करते और जंहा मर्जी चरते मुन्नालाल उन्हें न टोकता किन्तु जैसे ही वह गाँव की सीमा में प्रवेश करता बहुत सतर्क हो जाता ।अभी तीन महीने पहले जंगल से आते समय वह लघुशंका करने लगा था की इतने में बकरियों ने प्रतापचन्द ठाकुर के खेतो में घुस के खड़ी मटर की फसल को नुकसान पहुंचा दिया ।
जब प्रतापचंद को पता चला तो बहुत भला बुरा कहा ,नौबत मार पीट तक आ गई तब सुलह के लिए मुन्नालाल को एक बकरी का बच्चा देना पड़ा था अन्यथा वे उसके जानवरो को कानीहौज तक पहुंचा देता ।

तब से मुन्नालाल बड़ा सतर्क रहता आते जाते वक्त ।

मुन्नालाल के पास ज्यादा जमीन नहीं थी अतः जीविका का मुख्य साधन उसके पशु ही थे ।मुन्नालाल पशुओ के बच्चे खरीद लेता था और उन्हें पालता था जब वे बड़े हो जाते तो अच्छे मुनाफे में उन्हें बाजार में बेच देता , जो पशुओ से दूध प्राप्त होता  वह उसकी अतरिक्त आय होती।

मुन्नालाल का एक ही लड़का था लखपत , लखपत शुरू से ही पढ़ने में बुद्धिमान  था अतः मुन्नालाल ने उसे पढ़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी ।मुन्नालाल सोचता की लखपत पढ़ लिख जायेगा तो कोई अच्छा काम करेगा उसकी तरह अनपढ़ हो  चरवाही नहीं करेगा ।
स्कूली शिक्षा लेने के बाद लखपत ने इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश लेना चाहा था मुन्नालाल बहुत खुश हुआ था , उसने अपनी पत्नी के गहने तो बेच ही दिए थे साथ में अपनी जो थोड़ी सी जमीन थी वह भी बेंच दी ।उसे यकीन था की लखपत पढ़ लिख के उसका नाम तो रौशन करेगा ही पुरे रिस्तेदारो का नाम भी रौशन करेगा ।

गाँव में तो छोड़िये, पुरे जवार में भी लखपत जैसा पढ़ने में बुद्धिमान कोई न था आखिर इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश
पाना कोई सरल तो न था ।

दिन बीतते गए, और लखपत आगे बढ़ता गया ।

इधर मुन्नालाल की जिंदगी वैसे ही चलती रही , वही जानवरो को जंगल में चराना और शाम को उन्हें खेतो से बचा के घर लाना ।

अब लखपत एक इंजिनियर बन चुका था , शहर में ऊँचे वेतन वाली नौकरी और बड़ा सा फ्लैट जल्द ही प्राप्त हो गए उसे । विवाह भी एक सम्पन्न परीवार की कन्या से  हो गया ,जीवन की सभी सुख सुविधाये और मान-सम्मान उसके पास था ।

मुन्नालाल अब बूढ़ा हो चुका था , पत्नी भी बीमार अमूमन बीमार सी ही रहती ।पशुओ की देखभाल न कर पाने के कारण उसने सभी पशु बेच दिए थे , जो लखपत पैसे भेजता उसी से निर्वाह हो रहा था ।यूँ तो लखपत हर माह निश्चित धन मुन्नालाल को भेज देता था खर्चे के लिए  किन्तु मुन्नालाल चाहता था की इस बुढ़ापे में वह और उसकी पत्नी लखपत के साथ रहें , अकेलापन उसे अखरता था ।
सच यह था की जिंदगी भर गाँव, जंगल और जानवरो के बीच रह रह के वह नीरस हो गया था ।
अब वह और उसकी पत्नी शहर में लखपत के साथ बचे हूए दिन आराम से काटना चाहते थे ।

लखपत से कई बार अपनी इच्छा जाहिर करने के बाद आखिर लखपत ने मुन्नालाल और उसकी पत्नी को अपने पास शहर बुला ही लिया ।

शहर आके मुन्नालाल बहुत खुश हुआ ,बड़ी बड़ी इमारते, चमकती गाड़िया, रंग बिरंगे परिधान में स्त्री पुरुष , साफ़ सड़के आदि उसे रोमांचित कर दे रहे थे ।वह तो जैसे सपनो की दुनिया में आ गया हो , लखपत में घर में सभी आधुनिक सुविधाये मौजूद थी जिनका वह जी भर के मजा ले रहा था ।

लखपत ने दो कुत्ते पाल रखे थे जिनको उसका नौकर देखभाल करता था , वह कुत्तो को नहलाता, खाना खिलाता तथा उन्हें बाहर घुमाने ले जाता ।

एक दिन मुन्नालाल सोफे पर बैठा टीवी देख जोर जोर से हँस रहा था ,उसे ऐसा करता देख दूसरे मौजूद लखपत की पत्नी ने चिढ़ते हुए लखपत से कहा -

" जब देखो सोफे पर बैठे बैठे टीवी देखते रहते है और चाय पानी की फरमाइस करते रहते हैं " लखपत की पत्नी ने कहा
"ओहो!तो क्या हो गया... नौकर तो है न !" लखपत ने उत्तर दिया
"नौकर तो हैं पर सारा दिन इन्ही की जी हुजूरी में लगे रहेगे तो बाकि के काम कब करेंगे वे ?" पत्नी ने थोडा गुस्से में जबाब दिया
" तो क्या करें ? गाँव तो भेज नहीं सकते फिर से ...  " लखपत ने असमर्थता जताते हुए कहा ।
" गाँव भेजने की जरुरत नहीं .... एक  आइडिया है मेरे पास " पत्नी ने लखपत से मुस्कुराते हुए कहा ।

फिर उसके बाद लखपत की पत्नी लखपत के कान में कुछ कहने लगी जिसे सुन लखपत मुस्कुरा दिया ।

अगले सुबह कुत्तो की देखभाल करने वाला नौकर नहीं आया, लखपत ने मुन्नालाल से कहा -
" बाबू जी , कुत्तो की देखभाल करने वाला नौकर बीमार है और कुछ दिन नहीं आएगा .... आप गाँव में तो जानवरो की देखभाल करते ही थे ... कुछ दिन कुत्तो को संभाल लीजिये "

लखपत की बात सुन मुन्नालाल को आश्चर्य हुआ , जिंदगी भर तो जानवरो की देखभाल करता ही रहा है वह ।बुढ़ापे में जानवरो से दूर रहे इसी लिए वह लखपत के पास आया है और वह कुत्तो की देखभाल करने को कह रहा है .... और फिर उसने तो गाय भैंसो और बकरियो की देखभाल की है कुत्तो की नहीं ।
मुन्नालाल चाह के भी मना नहीं कर पाया लखपत को ,और  कोई दूसरा विकल्प भी तो नहीं था उसके पास ।

अब मुन्नालाल सुबह पांच बजे उठ जाता , कुत्तो को दो घण्टे बाहर घुमा के लाता फिर उनको नहलाता उन्हें खिलाता शाम को भी यही नियम बन गया था। कई दिन बीत गए किन्तु कुत्तो की देखभाल कारने वाला नौकर वापस नहीं आया, मन मार के मुन्नालाल को ही देखभाल कारना पड़ रहा था कुत्तो का ।कई बार कुत्तो को सम्भलना बड़ा मुश्किल हो जाता था बूढ़े मुन्नालाल के लिए ,गांव में तो कुछ दुरी पर ही बकरियो से खेतो को बचाना पड़ता था किन्तु यंहा तो कुत्तो पर पुरे समय नजर रखनी पड़ती थी ।
 एक बार तो एक कुत्ते ने स्कूल जाते हुए एक बच्चे को काट लिया था तब कितना गुस्सा हुआ था लखपत उस पर उसकी पत्नी ने अलग से उस पर लापरवाही का इल्जाम लगाया था  ,उसकी आँखों से आंसू ही निकल आये थे बुढ़ापे में यह बेज्जती ।


मुन्नालाल अब और सतर्कता से कुत्तो की देखभाल करता ताकि उससे कंही गलती न हो जाये , हाथ में जंजीर पकडे वह कुत्तो के साथ साथ ही चलता ...वह चरवाहा ही रहा बस जानवर बदल गए थे।
हाँ ! अब
हुर्र...ह...अह..ह...
"च्....हुर्र...ह...

के स्थान पर मुंह से -
आऊ.....आउ
ले...ले..
की ध्वनी निकालता


बस यंही तक थी कहानी ....





Tuesday, 4 October 2016

जानिया क्या है दुर्गा पूजा की वास्तविकता

दुर्गा पूजा के विषय में देवीप्रसाद चट्टोपाध्य जी मत प्रकट करते हैं की जो प्रतिमा आज हम देवी दुर्गा की देखते हैं अर्थात सिंहारुड़, दस हाथो वाली , त्रिशूल आदि शस्त्र धारणा किये हुए वास्तव में दुर्गापूजा के मूलभूत सार के साथ इसका कोई वास्तविक धर्मिक सम्बन्ध नहीं है ।वे प्रसिद्ध इतिहासकार बंदोपाध्याय का हवाला देते हुए कहते हैं की अभी एक शताब्दी पहले बंगाल जो की दुर्गा पूजा का केंद्र है  वंहा के  मूर्तिकारों को दस हाथो वाली , त्रिशूल धारी, सिंह सवार देवी के बारे में कुछ पता नहीं था ।

यद्यपि आज इस दस हाथो वाली त्रिशूल धारी मूर्ति की सवारी बड़े धूम धाम से निकाली जाती है किंतु वास्तव में इसका दुर्गा की वास्तविक आराधना से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है यंहा तक की इसका दुर्गा नाम कैसे पड़ा यह विषय भी आज के शोध कर्ताओ के लिए अच्छा विषय हो सकता ही ।

वास्तव में दुर्गापूजा 'शाकम्भरी' पूजा या अनुष्ठान है , जो कृषि की उर्वरकता को बढ़ाने के लिए तांत्रिक अनुष्ठान होता है जो 'पूर्ण घट' केंद्रित होता है ।

जैसा की मैंने अपने पहले के लेखो में बताया है की कृषि स्त्रियों की खोज है अतः कृषि से जुड़े जितने अनुष्ठान है वे स्त्रियों से जुड़े हुए हैं , कृषि और स्त्री को समान माना गया है ।कृषि में उत्पादन की वृद्धि के लिए विश्व के अलग अलग देशो में कई प्रकार के अनुष्ठान किये जाते रहे हैं ।

ट्रांसलविनिया के एक जिले में सूखे के कारण जब सारी जमीन बुरी तरह झुलस जाती है तब कुछ लड़कियां एक दम नग्न हो जाती हैं और खेतो में पहुँच के नृत्य करती है ,उनका विश्वास होता है की इस अनुष्ठान से वर्षा होगी।

उत्तरी अमरीका में जब आनाज को कीड़ा लगता है तो जिन स्त्रियों का मासिक धर्म चल रहा होता है वे रात के एकांत में एक दम नग्न अवस्था में खेतो में चलती हैं ,प्लिनी ने इन हानिकारक कीड़ो के प्रतिकारक के रूप में यह  उपाय बताया है। इसके पीछे विचार यही था की स्त्रियों के अंदर जो उर्वरक शक्ति होती है उसका प्रसार हो और वह प्रसार कृषि तक आये ।ऐसा ही मत ग्रीस आदि देशो में भी प्रचलित रहा है ।

भारतीयो में भी ऐसे तांत्रिक अनुष्ठान सम्बन्धी प्रथाए प्रचलित रही हैं , आप ऐसे अनुष्ठान क्रुक की पुस्तक 'न्यूडिटी इन इण्डिया इन कस्टम एन्ड रिचुअल्स ' में पढ़ सकते हैं ।
'भारतीय विद्या 'नाम की पुस्तक में जिक्र है की जब कभी उत्तरी बंगाल में सूखा पड़ता था तब राजवंशी लोगो की स्त्रियां सब कपडे उतार देती थी और पूर्ण नग्न अवस्था में वरुण देवता के आवाह्न के लिए नृत्य करती थीं।

गुजरात में ऐसी रीतियों थीं , यह रीति विशेषकर कुर्मी, नोनिया , कहार , चमार , दुसाध , धामका जातियो में थी जो श्रमिक थीं ।

आप को एक दिलचस्प तथ्य और बताऊँ  की हड़प्पा में एक आयतकर पट्टी जिस पर एक नग्न स्त्री का चित्र बना है प्राप्त हुई है , जिसकी दोनों टाँगे खुली हुई हैं ।यह चित्र उल्टा बनाया गया है जिसकी दोनों टाँगे खुली हुई हैं और उसके गर्भ से एक पौधा निकल रहा है , इसके ऊपर 6 अक्षर खुदे हुए है जो शायद शाकम्भरी नाम पर कुछ जानकारी देते हैं।


यह चित्र निश्चय ही धरती को माता(स्त्री) की मान्यता को दर्शाता है ।यह चित्र धरती और स्त्री को समान मान्यता की प्रबलता का द्योतक है जिसमे दोनों ही उत्पादन अथवा प्रजनन करती हैं ।

बौद्ध धर्म और हिन्दू धर्म दोनों में धरती को स्त्री माना गया है और शाकम्भरी नाम इंगित है जैसे बुद्ध शाक्य वंशीय थे , शाक्य का अर्थ साग सब्जी अथवा पेड़ पौधे होता है ।
हिन्दू ग्रन्थ मार्कंडेय पुराण , सर्ग 92, श्लोक 43-44 में कहा गया है-
 "हे देवताओ! इसके बाद मैं जीवन पोषक साग सब्जियों के साथ सारे विश्व का पालन पोषण करुँगी ।साग सब्जियों वर्षा के बाद मेरे शरीर से उत्तपन्न होंगे , तब मैं पृथ्वी पर शाकम्बरी के नाम से प्रसिद्ध होंगी "

इस हड़प्पा में मिले धरती ( शाकम्बरी )  चित्र के विषय में मार्शल का कहना है " धरती को उसके गर्भ से उगे हुए एक पौधे के साथ प्रस्तुत करने वाला यह चित्र अनूठा है किन्तु धरती को स्त्री के रूप में प्रस्तुतिकरण अप्राकृतिक नहीं है बल्कि ऐसा विश्व की कई सभ्यताओ में मान्यता रही है "

अब हम आते है अपने मूल लेख पर अर्थात दुर्गा पूजा पर , जैसा की मैंने बताया है की अभी लगभग कुछ सदी पहले बंगाल में सिंह सवार , त्रिशूल धारी दुर्गा के विषय में वंहा के मूर्तिकार नहीं जानते थे ।दुर्गा पूजा के समय एक घट रखा होता है जो तांत्रिक अनुष्ठान का द्योतक है , मुख्य अनुष्ठान इसी घट की होती है ।

घट पूर्ण जल से भरा मिटटी का एक पात्र होता है , जो इस प्रकार रखा जाता है -पांच प्रकार के आनाज (पंच शाक्य) मिटटी की एक चपटी तथा चौकोर आकार की पट्टिका पर बिखेरे जाते हैं ।फिर मिटटी के एक पात्र को पानी से भरकर उसके ऊपर रखा जाता है ।दही और चावल मिलाकर इस पात्र पर रख दिया जाता है ,घट ( घड़ा) के गर्दन के चारो ओर लाल रंग का सूत बांध दिया जाता है ।इसके खुले मुख को पांच प्रकार की पत्तियो से ढँक देते हैं , फिर एक मिटटी का ढक्कन इन पत्तियो पर रख दिया जाता है और इस ढक्कन के ऊपर चावल और सुपारी रखते हैं ।


चावल वाले इस ढक्कन पर फिर ओर एक फल अधिकतर हरा नारियल रखा जाता है , इस नारियल पर सिंदूर लगाया जाता है ।घड़े पर गीले सिंदूर से मानव चित्र बनाते हैं इसे सिंदूर पुत्तलि कहा जाता है ।

मैं आपको चित्र दे रहा हूँ ताकि आप अच्छी तरह समझ सकें।

जिस पट्टिका पर घट रखा जाता है उस पर एक रेखाकृति बनी होती है जिसे सर्वतोभद्र मण्डलम् कहा जाता है , यह रेखाचित्र तंत्रवाद का प्रसिद्ध चित्र है जिसे यंत्र कहा जाता है ।इसके बीच आठ पंखडियो वाले कमल का चित्र होता है जिसे अष्ट दल पद्म कहा जाता है , अब याद कीजिये बौद्ध धर्म का आष्टांगिक मार्ग को।

तंत्रवाद में यह कमल मुखयतः स्त्री की योनि का प्रतिकात्मक चिन्ह है अब समझिये की सर्वतोभद्र मण्डलम् के ऊपर पूर्ण घट रखने का क्या महत्व है ।

पौधो और फलों को स्त्री की योनि के संपर्क में लाया जाता है , यही विचार स्वयं पूर्ण घट भी प्रदर्शित करता है ।यह घड़ा स्त्री गर्भ है , जो सिंदूर से मानव आकृति बनाई जाती है वह शिशु है , सिंदूर और लाल सूत रजस्वला का संकेत है ।

तंत्र के जरिये यह उस विश्वास का द्योतक है की मानव प्रजनन क्रिया या स्त्री प्रजनन क्रिया शक्ति के अनुकरण या संसर्ग से प्रकृति की उत्पादकता निश्चित होती है या वृद्धि होती है । दुर्गा पूजा में सिंदूर का प्रयोग होता जिसे रंग खेला भी कहा जाता ,रंग खेला वास्तव में स्त्री के रजस्वला का द्योतक है अच्छी प्रजनन शक्ति की कामना |

अत: दुर्गा पूजा का मूल महत्व यही है , यह कृषि सम्बन्धी जादू टोना मात्र है ।दुर्गा जी के हाथो में घट देखिये \










Sunday, 2 October 2016

ताकि मिलता रहे न्याय -




"सरपंच जी ! पर वह ज़मीन तो हमारी है , आई बाबा के ज़माने से खेती करते आये हैं उस पर " सुरेखा ने घूँघट किये ही जबाब दिया ।
" चुप कर साली! मर्दों के बीच में ऐसी तैसी करवाने बैठी है? ... चपर चपर जुबान मत चला यंहा " सरपंच ने अपनी  छड़ी सुरेखा की तरफ करते हुए क्रोध में भरे शब्दों में कहा ।
"जब तुझे बोलने को कहा जाए तब बोलियो .... अभी मादरजात चुप चाप बैठी रह ..." सरपंच ने आगे कहा ।
" हाँ ...सुन भैयालाल ...ध्यान से सुन ..जिस पांच एकड़ जमीन की दावेदारी तुम लोग कर रहे हो वह तुम्हारी जमीन नहीं है ....अरे मादरजातो तुम्हारे बाप दादा दुसरो के टुकड़ो पर पलते थे और तुम अपनी जमीन की दावेदारी कर रहे हो...कौन सी ज़मीन है तुम्हारी  ? पंचायत का समय बर्बाद कर रहे हो ? इसका जुर्माना हजार रुपया भरना पड़ेगा "

"पर...पर सरपंच जी हमारी बात ... "भैयालाल ने कुछ कहना चाहा
"चुप!...चुप ... हमारी बात टालेगा  तू? कल से तेरा हुक्का पानी बंद करवा दूंगा " भैयालाल का यूँ बीच में बोलना सरपंच को जँचा नहीं और उसने उसकी बात काटते हुए चेतावनी दी ।

इसके बाद पंचायत खत्म कर दी गई , भैयालाल और उसकी पत्नी सुरेखा ने दुखी मन से अपने घर वापस हो लिए ।

यह कहानी है आज से दस साल पहले की ,महाराष्ट्र् के भंडारा जिले के एक छोटे से गाँव की ।भैयालाल भातमांगे  उसकी पत्नी सुरेखा तथा उनके दो बेटे दीपक और रौशन तथा बेटा प्रियंका की ।रौशन जन्म से अँधा था ।

ऊपर जो पंचायत की घटना थी वह  उस 5 एकड़ जमीन के विवाद की थी जिस पर भैयालाल और सुरेखा अपना हक़ जाता रहे थे किन्तु गाँव के वर्चस्वी जातियां अपना कब्ज़ा जमा रही थीं ।मामला पंचायत तक पहुंचा और सरपंच ने वही फैसला सुनाया जो ऊपर बताया गया ।गाँव में मात्र 4 परीवार दलित के थे बाकी सब वर्चस्वकारी जातियां थीं।

कुछ दिन बाद ।

"अजी सुनते हो !"सुरेखा ने भैयालाल की संबोधित किया
"हूँ ?..... क्या है ? "भैयालाल ने नीम की दातुन मुंह में डाले डाले पूछा।
" मैं यह कह रही थी की कब तक इस कच्चे घर में रहेंगे ? अब बच्चे बड़े होने लगे हैं .... मैं कह रही थी की दो कमरे पक्के ईंट के बन जाते तो अच्छा रहता " सुरेखा ने पानी का लोटा भैयालाल को पकड़ाते हुए कहा ।
"हम्म....कह तो तू ठीक रही है .... ज़मीन तो चली ही गई समझो कम से कम रहने का ठिकाना तो पक्का हो जाए , बरसात में कितनी तकलीफ होती है ... ठीक है कल ही ईंट गिरवाता हूँ भट्टे से " भैयालाल ने कुल्ला करते हुए सांत्वना दी सुरेखा को , सुरेखा मुस्कुरा दी ।

अगले दिन दो हजार ईंटे ट्रॉली पर द्वारा भैयालाल के घर पहुँच गई ।भैयालाल का पक्का मकान बनेगा यह गाँव के वर्चस्वकारी जाति के लोगो को एक आँख भी न सुहाया ।भला यह कैसे हो सकता है की एक दलित के उनके गाँव में पक्का मकान बने ?अतः पूरा वर्चस्वकारी जातियो का समूह पहुँच गया भैयालाल के घर ।

"क्या रे भैयालाल ? तेरे पर ज्यादा चर्बी चढ़ गई ? पक्के मकान में रहेगा? " भीड़ में से एक ने भैयालाल की गर्दन पकड़ते हुए कहा
"पर भाऊ .... मेरा मकान जर्जर हो गया है ... देखो ने आप लोग ... पानी टपकता है बरसात में " भैयालाल ने गिड़गिड़ाते हुए अपनी गर्दन छुड़ाने का प्रयास किया ।
"नहीं !तेरे में गर्मी ज्यादा आ गई है ......कुत्ते ...मादर#@ पहले हमारे खिलाफ पंचायत में जाता है और अब पक्का मकान बना रहा है... चटाक!!"भीड़ में से दूसरा व्यक्ति निकला और भैयालाल को चांटा मारते हुए कहा ।
चांटा खा के भैयालाल दर्द से कराह उठा।
"सुन ....हरामी ....मकान में एक भी ईंट लग गई तो तुझे उसी नीव में जिन्दा गाड़ देंगे " तीसरे ने सुरेखा को चेतावनी देते हुये कहा ।

उसके बाद भीड़ ने ईंटो को तोड़ दिया और बहुत सी ईंटे अपने साथ ले गई ।
पीछे भैयालाल का पूरा परिवार भय और आतंक से बिलखकता रहा।

थोड़े दिनों बाद घटना ।

सुरेखा एक खेत में काम कर रही थी की पास के दूसरे गाँव का दलित व्यक्ति जिसका नाम कामतेप्रसाद था वह भी मजदूरी कर रहा था ।कामते प्रसाद का  किसी बात पर उच्च जातीय मालिक से विवाद हो जाता है , मालिक और कई सारे लोग कामते प्रसाद को बहुत मारते पीटते है जिससे उसे गंभीर चोटे आती हैं ।बात पुलिस तक पहुँचती है ,थाने में सुरेखा कामते प्रसाद के दोषियों को पहचान कर देती है की किस किस ने कामते प्रसाद को मारा है ।

दोषी गिरफ्तार कर लिए जाते हैं पर उसी दिन ही जमानत लेके छूट जाते हैं ।
किंतु, यह तो वर्चस्वकारी जातियो के लिए असहनीय हो जाता है की एक दलित उनके खिलाफ थाने में गवाही दे ,यह तो सरासर अपमान लगा उन्हें अपने प्रति ।

अगले दिन वे लोग सुरेखा के गाँव अपनी जाति के लोगो के पास पहुँच जाते है ,सुरेखा के गांव के वर्चस्वकारी जाति के लोग पहले से ही जमीन आदि को लेके रंजिश रखे हुए थे, और अब सुरेखा की हिम्मत पुलिस तक जाने की हो गई थी ।उन्हें लगा की यदि इसी तरह हिम्मत आती रही तो कल को उनके खिलाफ भी पुलिस तक जा सकती  अतः उन्होंने सुरेखा और उसके परिवार वालो को सबक सिखाने की सोची ।

सैकड़ो की भीड़ एकत्रित हो चल पड़ी भैयालाल के घर की तरह,सबके हाथो में कुछ न कुछ हथियार के तौर पर था
।लगभग सौ घरो के गाँव में मात्र 4 घर दलितों के थे ,वर्चस्वकारी जातियॉ की उग्र भीड़ अपने घरो की तरफ आते देख भय से चारो घर के दरवाज़े बंद कर लिए गए ।

भीड़ भैयालाल के घर के आगे रुकी और दरवाजे पर खड़ी खड़ी गलियों की देने लगी -
" निकलो हरामजादों ... निकल कुतिया !साली गवाही देगी पुलिस को ... निकल "भीड़ सुरेखा के घर के दरवाजे को पीटते हुए कह रही थी ।
अंदर भैयालाल ,सुरेखा और उसके बच्चे मारे डर के कोने में छुपे कांप रहे थे ।

थोड़ी ही देर में भीड़ ने दरवाज़े को उखाड़ दिया , पुरे परिवार को खींच के बाहर निकाल लिया गया ।भीड़ ने लाठी डाँडो से भैयालाल ,दीपक और रौशन पर हमला कर दिया ।रौशन तो जन्म से अँधा था किन्तु भीड़ ने उस पर भी  तरस न खाया ।

भीड़ में से कुछ लोग सुरेखा और उसकी बेटी प्रियंका को मारते पीटते झाड़ियो के पीछे ले गए , उसके बाद उनकी सिर्फ चीखे ही सुनाई आई ।

भीड़ ने पूरा घर तबाह कर दिया,रौशन और दीपक को पीट पीट कर मार दिया गया भैयालाल को मरा समझ के छोड़ा । सुरेखा और प्रियंका को मार दिया गया था , उनके शरीर पर कपड़ो के नाम पर चीथड़े थे शरीर का एक भी अंग ऐसा न था जन्हा घाव न थे ...... दोनों के हर अंग पर गहरे घाव के निशान थे ...हर अंग पर।चार लाशें बिछ गईं थी , केवल भैयालाल की सांसे चल रही थी ।

पुलिस बहुत देर में पहुंची ,कार्यवाई तो और भी सुस्त हुई लाशो का पोस्टमार्टम ठीक से नहीं किया गया ।मामला दबने वाला था की कुछ पत्रकारो ने दिलचस्पी ली अतः केस कोर्ट तक पहुंचा ।फास्ट ट्रैक कोर्ट में केस की सुनवाई हुई जिसमे 54 आरोपी बनाये गए ,जिसमे 4 को मृत्यु दंड की सजा हुई और दो को ता-उम्र कैद। आरोपियों पर sc/st ऐक्ट के तहत केस दर्ज नहीं हुआ था  ,बाद में उच्च न्यायलय ने निचली अदालत का फैसला रद्द करते हुए आरोपियों को मृत्यु दंड की जगह आजीवन कारावास की सजा दी ।

भैयालाल को गांव छोडना पड़ा,अपनी 5एकड़ जमीन और घर दोनों को छोड़ के जाना पड़ा , sc/st ऐक्ट के तहत केस न दर्ज होने के कारण उन्हें मुआवजा भी न मिला ।दस साल हो गए किन्तु न्याय की लड़ाई जारी है ।आज भी महाराष्ट्र् में  वर्चस्वकारी जातियां sc/st ऐक्ट को ख़त्म करने के लिए गोल बंद हो रहीं है ताकि भैयालाल जैसे लोगो को न्याय न मिल पाये ।