Saturday, 10 September 2016

जानिए क्यों अवांछनीय होती है कन्याये

भारत में पुरुषो के अनुपात में महिलाओ की संख्या कम है यह जानकारी सर्वज्ञात है किन्तु बहुत से राज्यो में जिनमे हरियाणा , पंजाब शामिल हैं उनमे तो यह लिंगानुपात चिंता का विषय रहा है क्यों की इन राज्यो में महिलाओं की संख्या इतनी कम है की यंहा के पुरुष विवाह के लिए दूसरे राज्यो की महिलाओं को खरीद तक के ले आते हैं।

भारत में कन्या भूर्ण हत्या समस्या एक आम किन्तु गम्भीर समस्या रही है जिस कारण कन्यायो की संख्या निरन्तर कम होती गई ,कुप्रथाओं और रूढ़िवादी मानसिकता के चलते लोग कन्या पैदा होना अशुभ मानते हैं जिस कारण उनकी हत्या बड़ी निर्ममता से करते रहें हैं ।हलाकि सरकार ने भूर्ण लिंग जांच पर प्रतिबंध लगाया हुआ है और सजा का प्रवधान भी रखा है किन्तु अब भी डॉक्टर लालच में आ के यह जांच कर देते हैं और कन्या के पैदा होने से पहले ही उनकी हत्या कर दी जाती है ।

कन्या हत्या का एक प्रमुख कारण गरीबी और अशिक्षा  माना जाता रहा है ।गरीब माता पिता बच्चियो का लालन पालन असमर्थ होते हैं , किसी तरह पल भी गईँ तो फिर उनके विवाह का खर्चा उठाने की असमर्थता के भय से उनकी हत्या कर देते हैं ।
किन्तु यह सत्य प्रतीत नहीं होता , आज ऐसी खबरे आ रहीं है की समाज में सम्पन्न और पढ़े लिखे माता पिता भी अपनी कन्यायो की हत्या कर दे रहे हैं । कन्या भूर्ण जांच और उसकी हत्या करने वाला  अधिकतर परिवार पढ़ा लिखा और सम्पन ही होता है ।

हाल की ही एक चर्चित खबर पढ़ पढ़ लीजिए, जयपुर की एक कारोबारी की पत्नी जो की पढ़ी लिखी थी और आर्थिक रूप से सम्पन्न थी उसने अपनी चार माह की पुत्री की हत्या कर उसे एसी केबिनेट में डाल दिया ।
उस महिला की एक पुत्री और थी जो 8 साल की थी ,दुसरी भी बेटी पैदा होने से वह महिला इतनी अवसाद में थी की  उसने चार महीने की फूल सी बेटी के गर्दन पर 16 घाव किये उसको मारने के लिए ।सोचिये कितनी मानसिक रूप से विक्षिप्तत हो गई होगी वह महिला !

बेटे की इतनी चाहत थी उस महिला को की उसने हवन यज्ञ भी करवाया था , किन्तु हवन यज्ञ के बाद भी कन्या पैदा हुई ।बेटी के जन्म के बाद ही महिला तनाव में चली गई और अंत में उसकी हत्या ही कर दी उसने ।

अभिभावको द्वारा बेटे की इसी चाहत का नतीजा है की आज भी ऐसी खबरे सुनने और पढ़ने को मिलती हैं की फला तांत्रिक ने किसी दम्पत्ति से लाखो रूपये ऐठ लिए या नरबलि देते हुए कोई तांत्रिक पकड़ा गया ।

भारतीय लोग बेटे की चाहत में इतने पागल क्यों होते हैं ?यदि आंकड़े देखा जाए तो महिलाये ही कन्या भूर्ण हत्या की प्रत्यक्ष अपराधी अधिक पाई जाएँगी ।घर की महिलाये ही गर्भवती महिला पर अधिक दबाब डालती हैं बेटे के लिये ।ऐसा मैं इस किये कह सकता हूँ की मेरी भी दो बेटियां है ,बहुत बार हम पर भी दबाब बनाया मेरी माता और महिला रिस्तेदारो ने बेटे के लिए और यदाकदा अब भी यह दबाब जारी है ।

किन्तु इस 'बेटे की चाहत' के दबाब के पीछे क्या मानसिकता होती है ? जंहा तक मैं समझ पाया हूँ वंश बेल आगे बढ़ाने और आर्थिक सुधार मुख्य कारण होते है ।
भारतीय समाज पुरुष सत्तात्मक रहा है , जंहा घर की जिम्मेदारी और आर्थिक रूप से आगे बढ़ने की जिम्मेदारी पुरुषो के कंधे पर ही होती है ।
बेटियो का विवाह कर के विदा कर दिया जाता है ,बेटी के घर का पानी तक पीना माता पिता के लिए निषेध तक होता है अतः उनके जाने के बाद माता पिता असहाय हो जाते हैं ।

बुढ़ापे में देखभाल कौन करेगा?कौन आर्थिक रूप से सहायता करेगा? कौन कमाए धन का उपयोग करेगा जैसी कई समस्याएं खड़ी हो जाती है ।दामाद को 'यम'भी कहा जाता है समाज में ,सामाजिक प्रथा ऐसी की ससुर के मरने पर जमाई का कन्धा लगाना तो दूर उसकी शक्ल तक नहीं देखने दिया जाता ।श्मशान में चिता को आग पुत्र ही लगाएगा , श्राद्ध पुत्र ही करेगा तभी वैतरणी पार होगी ।

ऐतरेय ब्राह्मण जैसे धर्म ग्रन्थ कहते हैं 'कृपनं ह दुहिता'( 7/3/1) अर्थात पुत्री कष्टप्रदा और दुखदायनी होती है । उक्त अंश पर भाष्य करते हुए पुराने विद्वान् भाष्यकार सायणाचार्य कहते हैं "संभवे स्वजनदुःखकारिका ..... हृदयदारिका पितुः' अर्थात जब कन्या उत्पन्न होती है , तब स्वजनो को दुःख देती है , जब इसका विवाह करते हैं तब यह धन का अपहरण करती है , युवावस्था में बहुत सी गलतियां कर बैठती है इसलिए दारिका अर्थात लड़की पिता के हिर्दय को चीरने वाली कही गई है ।

समाज मे आज भी ऐसी धार्मिक मान्यताएं प्रचलित जिसमे कन्या पैदा होना दुःख माना जाता है , आपको अपनी बताऊँ जब मेरी पहली बेटी हुई तो किन्नर नेग मांगने नहीं आये ।जब मैंने उनके न आने का कारण पूछा तो बोलें की हम लड़की पैदा होने पर नेग नहीं लेते , लड़की पैदा होने की ख़ुशी नहीं मानी जाती ।मुझे घोर आश्चर्य हुआ था, मैं उनपर बहुत गुस्सा हुआ  और कहा की मुझे तो बहुत ख़ुशी हुई  की लड़की हुई ।

यह सत्य है की जब तक समाज में धर्मिक रूढ़िवादिता की मानसिकता रहेगी तब तक कन्याओ के प्रति नजरियां बदलना बहुत मुश्किल होगा ।जिस समाज की आँखे तब भी न खुले जब ओल्पिक जैसे प्रतियोगिता में देश का नाम बेटियां रोशन करती हों तो क्या कहा जा सकता है ?
यही कहा जा सकता है की अभी समाज को बदलने में काफी समय लगेगा ,खासकर जब तक की महिलाये आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं हो जाती हैं ।


- संजय (केशव)

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