" भारत कभी विश्व गुरु था " आपने अक्सर लोगो को यह कहते हुए सुना होगा , पर वास्तव में क्या भारत कभी विश्वगुरु था या नहीं ?अधिकतर जनमानस के मन में यह प्रश्न उठता होगा की आखिर भारत को विश्वगुरु किस कारण कहा जाता था ?
जब भारत विश्व गुरु था तो उस समय किसका शासन काल था ?कौन सी संस्कृति थी भारत में जिसने भारत को विश्व गुरु बना दिया था ?
ऐसी कई शंकाएं आपके मन में भी उठी होंगी कभी न कभी ।
लीजिये ,इन सभी शंकाओ के उत्तर हाज़िर हैं -
भारत में सिकन्दर के आक्रमण के बाद इतिहास लिखना आरम्भ हुआ वह भी विदेशियो द्वारा अन्यथा भारतीय मनीषी तो पुराण पोथी लिख के जनता को अन्धविश्वास के जाल में उलझाये हुए थे ।सिकंदर के साथ आया हैरोटोडस ने भारत में सिकन्दर की विजयो और तत्कालीन भारतीय समाज का वृतांत लिखा , किंतु आज वह मूल रूप से उपलब्ध नहीं है ।
सिकंदर के बाद आया मेग्नस्थिज , उस समय मौर्य काल था जो की बौद्ध संस्कृति काल था । मेगस्थनीज ने बौद्ध संस्कृति के बारे में परवर्ती लेखको से सुना हुआ था अतः वह उत्सुक हो भारत आया ।मौर्य शासन में रह उसने लगभग 6 साल भारत में बिताएं और अध्ययन किया ।उसने तत्कालीन राजनैतिक और सांस्कृतिक वर्णन लिखा जिसका नाम दिया'इंडिका "
पहली शताब्दी के कुछ पहले या उसके आरम्भ में बौद्ध संस्कृति भारत से बाहर पहुंची तो बौद्ध संस्कृति को जानने और समझने की उत्सुकता वंहा के निवासियो में जागृत हुई और उन्होंने भारत को श्रद्धा पूर्वक देखा ।
चीन, जापान, कोरिया आदि ऐसे ही देश रहे।
शुमाशीन - बौद्ध संस्कृति को जानने की लालक पैदा हुई चीनी इतिहासकार शुमाशीन ने जो पहली शताब्दी के प्रथम में आया , उसने कई बौद्ध ग्रन्थो का अध्ययन किया और अपना वृतांत लिखा किन्तु दुर्भाग्य से आज वह उपलब्ध नहीं ।
फाहियान- यह 399 इसा में भारत आया और 14 वर्ष तक भारत में रह बौद्ध संस्कृति और उसके ग्रन्थो का अध्ययन करता रहा ।उसने बौद्ध संस्कृति के नियम,परिपाटी, सिद्धांत तथा सामाजिक व्यवस्था का विवरण लिखा ।
बौद्ध धर्म में दीक्षित होने के बाद उसने बौद्ध धर्म के छिन्न भिन्न और अपूर्ण ग्रन्थो ख़ास कर विनयपिटक से खिन्न होके उसने भारत आके उसे पूर्ण जानने और मठो के नियमो से भली प्रकार सीखने का निश्चय किया ।
फाहियान में बौद्ध धर्म के प्रति इतनी ललक और श्रद्धा की उसने भारत आने के लिए अपनी जान तक की परवाह नहीं की ।वह भारत आने के अपने यात्रा विवरण में लिखता है -
"यंहा अनेक दुष्ट आत्माये रहती है और तपती गर्म हवाएँ है । जो भी यात्री इनका मुकाबला करता है वे उन्हें नष्ट कर देती हैं ।यंहा न तो आसमान में उड़ता पंक्षी दिखाई देगा और न जमीन पर कोई पशु ,तुम व्याकुल हो रास्ता खोजोगे पर वह तुम्हे नहीं मिलेगा ।रास्ते का संकेत केवल मरे हुए पशुओ और आदमियो की हड्डियां होंगी जो रेत पर बिखरी होंगी "
आप सोचिये की कितना जूनून रहा होगा फाहियान को बौद्ध धर्म के बारे में जानने का की वह मौत से लड़ता हुआ भारत आया ।इसके बाद वह भारत में कई साल रहा और सारनाथ, बोध गया, कुशी नगर,कपिलवस्तु , मगध, आदि बौद्ध स्थानो पर रह उसने बौद्ध धर्म के बारे में जाना ।
414इसा में वह वापस चीन पहुंचा।
हवेइ शंग और सुंग - ये 518 चीन से भारत आये , इनका मकसद था बौद्ध धर्म का अध्यन करना । ये अपने साथ बौद्ध धर्म के 170 ग्रन्थ लेके वापस गए ।
ह्वान सांग- यह चीन के प्रख्यात बौद्ध तीर्थ यात्रियों में सर्वाधिक उल्लेखनीय और सम्माननीय रहा ।बौद्ध अनुयायी बनने के बाद इसने भारत में और गहराई से बौद्ध धर्म को जानने की इच्छा व्यक्त की ।
इसने बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों की खोज में सुदूर और दुर्गम रास्तो से गुजर के भारत की यात्रा की
ह्वान सांग ने लगभग 657बौद्ध ग्रन्थो का चीनी अनुवाद किया । यह कन्नौज, मगध में रहा किन्तु अपना अधिकतर समय नालंदा महाविहार में अध्ययन में बिताया जो उस समय बौद्ध शिक्षा का केंद्र था ।
इतसिंग-ह्वान सांग के बाद अगला चीनी यात्री था , इसने चौदह वर्ष की उम्र में बौद्ध धर्म में प्रव्रज्या ली और 18 साल की उम्र में बुद्ध के देश भारत आने का निस्चय किया ।
654 इसा में बौद्ध धर्म के ग्रन्थ प्राप्त कर विनयपिटक के अध्ययन में ही पांच साल लगा दिए ।
इसके बाद बहुत से अन्य यात्री भारत में बौद्ध धर्म को जानने और समझने आते रहे जिनमे कोरिया , जापान , श्रीलंका , वर्मा , वियतनाम आदि कई देशो के तीर्थयात्री बुद्ध को अपना गुरु मान के और बौद्ध धर्म के बारे में गहराई से जानने ,समझने, अनुसरण करने आते रहे ।
तो, भारत इसलिए कभी विश्व गुरु कहा गया क्यों की उस समय बौद्ध धर्म जंहा जंहा फैला उन्होंने भारत को बुद्ध भूमि मान के इसे गुरु माना।
आपका लेख एक तरफ़ा है। आपको पता होना चाहिए कि बुद्ध से बहुत पहले ही भारतीय मनीषी विश्वभर में यात्रा करते थे। अगस्त्य ऋषि ने देश देशांतर में आर्य/हिंदू संस्कृति का प्रसार किया था। उनसे भी पहले से भारत विश्वगुरु था।
ReplyDeleteअगत्सय का कालखंड क्या है? और उस समय तो हिन्दू नाम सपने में भी न था!यहां बलि प्रथा थी! हर जगह बपचड़ खाने थे! ये बुध के बाद ही बंद हुये!
Deleteसिंघल साहब , अगस्त्य का ऐतिहासिक प्रमाण दीजिये
Deleteविनय जी अगस्त्स का हिन्दु धर्म लोगों ने कयू नही अपनाया
ReplyDeleteजी आभार
Deletenice but or achha likh saktey they..
ReplyDeleteजी आभार
Deleteविरोधी विरोध करेगें करने दिजिए। awesome
ReplyDeleteजी आभार
Deleteथैंक्स
ReplyDeleteकृपया बाबासाहेब डा.अम्बेडकर का सम्पूर्ण वाग्मय पढ़ें-
ReplyDeleteखण्ड-1, भारत में जाति-प्रथा एवं जातिप्रथा-उन्मूलन, भाषायी प्रांतों पर विचार, रानाडे, गांधी और जिन्ना आदि,
खण्ड-2 संवैधानिक सुधार एवं आर्थिक समस्याएं,
खण्ड-3 डा.अम्बेडकर – बम्बई विधान मंडल में,
खण्ड-4 डा.अम्बेडकर – साइमन कमीशन (भारतीय सांविधानिक आयोग) के साथ,
खण्ड-5 - डा.अम्बेडकर – गोलमेज सम्मेलन में,
खण्ड-6 - डा.अम्बेडकर – हिन्दुत्व का दर्शन,
खण्ड-7 - डा.अम्बेडकर – क्रान्ति तथा प्रतिक्रांति, बुध्द अथवा कार्ल मार्क्स आदि,
खण्ड-8 - हिन्दू धर्म की पहेलियां,
खण्ड-9 - डा.अम्बेडकर – अस्पृश्यता अथवा बहिष्कृत बस्तियों के प्राणी,
खण्ड-10 – अस्पृश्यता का विद्रोह, गांधी और उनका अन्शन, पूना-पैक्ट,
खण्ड-11 – ईस्ट इण्डिया कम्पनी का प्रशासन और वित्त प्रबन्ध,
खण्ड-12 – रूपये की समस्या, इसका उद्भव और समाधान,
खण्ड-13 – शूद्र कौन थे?
खण्ड-14 – अछूत कौन थे और वे अछूत कैसे बने
खण्ड-14 – खण्ड-15 – पाकिस्तान और भारत का विभाजन,
खण्ड-16 – कांग्रेस एवं गांधी ने अस्पृश्यों के लिए क्या किया? ?
खण्ड-17 – गांधी एवं अछूतों का उध्दार,
खण्ड-18 – डा.अम्बेडकर – सेन्ट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली में,
खण्ड-19 – अनुसूचित जातियों की शिकायतें तथा सत्ता हस्तान्तरण सम्बन्धी मबत्वपूर्ण पत्र-व्यवहार आदि।
खण्ड- 20 – डा.अम्बेडकर – केन्द्रीय विधान सभा में(1),
खण्ड- 21 – डा.अम्बेडकर – केन्द्रीय विधान सभा में(2),
प्रकाशक,
डा.अम्बेडकर प्रतिष्ठान,
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय,
भारत सरकार, नई दिल्ली-110 001,
(011-23357625, 23320589, 23320571, 2332076)
प्रकाशक,
डा.अम्बेडकर प्रतिष्ठान,
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय,
भारत सरकार, नई दिल्ली-110 001,
(011-23357625, 23320589, 23320571, 2332076) भाई, उपरोक्त किताबें बाबा साहब द्वारा लिखित हैं तथा भारत सरकार द्वारा छपवाई जाती हैं। इनका मूल्य रियायती मात्र रु. 745.00 ही हैं।
आप इन किताबों को प्राप्त कर अवश्य पढ़ें।
सिंघल वैश्या जाति का जातिवादी टुच्चा है जिसके पास ब्राह्मण का टुच्चापन है बेचारा टुच्ची बातें तो करेगा ही
ReplyDeleteभारत किस कालखंड में विश्व गुरु बना या था या कहलाया ?
ReplyDeleteजिनके पास जो भी जानकारी है कृपया जरूर दे।