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अब आगे ....
केशव की दृष्टि संदूक में रखी एक डायरी पर ठहर गई , उसका हाथ फोन करते करते वंही स्थिर हो गया ।उसने फोन जेब में रखा और झुक के डायरी उठा की ।यह काले रंग की डॉयरी थी जिस पर उसके पिता जी नाम लिखा हुआ था , यह उन्ही की डायरी थी।
केशव ने डायरी के पन्ने पलट के देखे तो शुरआत में कुछ गीत लिखे हुए थे ,उसके बाद पिता जी ने अपनी जीवन की घटनाएं दर्ज की थी उसमें ।एक दो पन्ने पढ़ने के बाद वह कुछ विचलित सा लगने लगा , उसने डायरी बंद की और तेज कदमो से गोदाम के बाहर आ गया ।
दरवाज़े को किसी तरह दुबारा बंद कर वह गोदाम के ही ऊपरी मंजिल पर बने अपने कमरे की तरफ चल दिया।
कमरे में आके वह एक कुर्सी पर बैठ गया और डायरी पढ़ने लगा । जैसे जैसे वह डायरी पढता जा रहा था उसका दिल बैठता जा रहा था , आँखे भारी होती जा रही थी ।
पिता जी ने अपने जीवन के अभी उतार चढाव , उसके पैदा होने की ख़ुशी से लेके उसकी माँ की मृत्यु की असहनीय पीड़ा सब उस डायरी में लिपिबद्ध किया हुआ था ।उसकी माँ की मृत्यु के बाद पिता जी के जीने का सहारा नाटक मण्डली ही थी , नाटक मण्डली को वे बहुत प्यार करते थे यंहा तक की केशव से भी ज्यादा ।उनके जीने का सहारा नाटक मण्डली ही थी ,उन्होंने पैसे के लिए नहीं अपितु कला को जीवित रखने के लिए नाटक मण्डली को बनाया था ।
उसी मण्डली के एक नाटक के दौरान उसकी माँ और वे मिले थे और फिर प्यार शादी में बदल गया ।
केशव की माँ को नाटक मण्डली से बहुत प्यार था , वह मण्डली के सभी सदस्यों को अपने परिवार जैसा ही समझती थी ।उनकी इच्छा थी की नाटक मण्डली कभी न बंद हो ।माँ के जाने के बाद पिता जी ने मण्डली को और ऊंचाइयों तक पहुँचाया । किन्तु जैसे जैसे समय बीतता गया मनोरंजन के आधुनिक साधन आते गएँ और लोगो का नाटक देखने के प्रति रुझान कम होता गया ।
अब नाटक मण्डली की जगह वी सी आर और प्रोजेक्टर ने ले लिया था ।नाटक मण्डली को बुलाने की समस्या अधिक रहती थी क्यों की 20-22 आदमियो का मेहनताना देना पड़ता था ,उनको खाने पीने , स्टेज आदि बनवाने का खर्चा अलग होता था ।जबकि वी सी आर या प्रोजेक्टर में केवल एक व्यक्ति होता था जिससे खर्चा कम आता , फिर बाराती अपनी पसन्द की नई नई फिल्में देखने की फरमाइस कर सकते थे जो की नाटक मण्डली में नहीं हो सकता था ।
इस प्रकार धीरे धीरे नाटक मण्डली को काम मिलना बंद हो गया , किंतु उसके पिता ने कभी इस बात का जिक्र नहीं किया था उससे की कंही उसकी पढाई में बाधा न आ जाए ।केशव को अब ध्यान आ रहा था की जब वह साल दो साल में अपने पिता से मिलता तो क्यों वे बीमार और कमजोर लगते ।
केशव डायरी पढता जा रहा था और उसकी आँखे नम होती जा रहीं थी , पीड़ा के कई भाव झूला झूलने लगे थे उसकी आँखों में ।
नाटक मण्डली के सभी लोग बेरोजगार हो गएँ थे , किसी को कोई और दूसरा काम नहीं आता था अतः सभी को काम खोजने में बहुत परेशनी हो रही थी ।
जगपाल ईंट भट्टे पर मजदूरी करने लगा था , हैदरअली को तो काम ही नहीं मिला कंही मजबूरन भीख मंगनी पड़ती थी उसे ।नत्थूलाल रिक्शा चलाने लग गया था परिवार का पेट भरने के लिए , ऐसे ही अन्य कलाकार भी कोई छोटा मोटा काम करने लगे थे अथवा शहर चले गए थे नौकरी की तलाश में ।
नाटक मण्डली बंद होने और कलाकारों की दुर्दशा का इतना ज्यादा आघात हुआ की केशव के पिता ने खाट ही पकड़ ली । अकेले रहने के कारण उन्हें उनका भाई यानि केशव के चाचा अपने घर ले गएँ ताकि देखभाल हो सके , किन्तु वे अंतिम समय तक चाहते थे की नाटक मण्डली दुबारा शुरू हो जाए।
केशव ने डायरी बंद की और दोनों हाथो से सर पकड़ के बैठ गया ,बहुत देर तक यूँ ही बैठे बैठे सोचते रहने के बाद उसने अंतर्मन में कई फ़ैसले लिए ।पूरी रात आँखों में ही कटी , नींद जैसे उससे रूठ गई हो ।
सुबह होते ही वह राज मिस्त्री तथा मजदूरो को ले आया , गोदाम की मरम्मत शुरू करवा दी ।नया गेट लगवा के उस पर तथा दीवारो पर रंग रोगन करवा दिया , दोनों संदूकों के सामान को निकाल साफ सफाई करवा दी ,तख्तो, चादरों और दरियों को नए में बदल दिया गया । बल्बस बदल के ट्यूबलाइटस् लगवा दी गईं थी ।
अब गोदाम वैसा ही चमक रहा था जैसा उसके बचपन में था , गोदाम के बाहर "यह मकान बिकाऊ है " का बोर्ड हटा दिया था केशव ने ।यह सब करने के बाद केशव ने अपना लैपटॉप निकाला और कुछ लिखने लगा,काफी देर लिखने के बाद उसके हाथ रुक गएँ क्षण भर सोचने के पश्चात उसने दृण हाथो से एंटर का बटन दबा दिया ।
यह रेजिग्नेशन मेल था , कंपनी अनुबंध से अनुसार केशव को अब उसका पीएफ , बोनस आदि कुछ नहीं मिलेगा बल्कि एक महीने की सेलरी और काट ली जायेगी किन्तु केशव को लगा जैसे एक बोझ कम हुआ हो ,महीन सी मुस्कुराहट बिखर गई उसके होंठो पर ।
अब उसने अपने पिता जी की नाटक मण्डली के पुराने साथियो को खोजना शुरू कर दिया ।हैदरअली को खोजने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई उसे , सड़क के किनारे ही भीख मांगता हुआ मिल गया ।जिस चेहरे को देखते ही दर्शको के मुखबिंदु पर हँसी आ जाती थी आज उस चेहरे को देख दया के भाव उठ रहे थे , मैले कुचैले कपड़ो की गठरी बांधे चेहरे पर घनी अधपकी दाढ़ी लिए वह धूल भरी सड़क पर मौन बैठा रहता ।जिसे जो देना होता वह उसके सामने फेंक देता था ।
केशव की एक आवाज में वह उसे पहचान गया ,बहुत फ़ूट फूट के रोया वह नाटक मण्डली को याद कर ।केशव ने उसे बताया की वह नाटक मण्डली फिर से शुरू करेगा ,हैदरअली को सहसा यकीं न हुआ किन्तु केशव सच कह रहा था ।हैदरअली केशव के साथ आ गया ।
अब बारी थी जगराम की , क्यों की वह सबसे विशिष्ठ कलाकार था उस मण्डली का ।खोज शुरू हुई तो जगराम के मिलने पर ही ख़त्म हुई , ईंट भट्टे पर काम कर के वह काली खाल का अस्थिपिंजर नजर आ रहा था ।सुनी आँखे , निस्तेज चेहरा , पके बाल जिस कमर लचकाने पर महिलाएं रस्क रखती थी उससे वह कमर अब कंही नजर नहीं आ रही थी , नजर आ रहा था तो बेबस जगराम ।
वह भी हैदरअली की तरह रोते हुए मिला केशव से ।जब उसे केशव का आशय पता चला तो उसने केशव से कहा -
"अब यह मुमकिन नहीं , उम्र ढल चुकी है और नाटक मण्डली अब कौन देखता है .. क्यों आप पैसा और समय बर्बाद कर रहें हैं ?"
"आप फ़िक्र मत करो !मैं सब ऑरेन्ज कर लूंगा बस आप तैयार हो और बाकी के लोगो को तैयार करो "केशव ने जगराम का साहस बांधते हुए कहा
जगराम केशव की बात मान दुबारा नाटक मण्डली में आने के लिए तैयार हो गया । उसके बाद शुरू हुई अन्य कलाकारों की खोज ।
किन्तु 20 में से 10 लोग ही मिल पाये , बाकी कुछ मर गए थे तो कोई अत्यधिक बीमार था तो कोई शहर बस गया था जिन्हें अभी तत्काल खोजपाना आसान न था ।
10 लोग पुरानी मण्डली के थे तो 12 नाए लोगो को भर्ती कर लिया गया जिनको सिखाने और निखारने की जिम्मेदारी पुराने लोगो पर थी , सभी लोगो को नाटक की स्क्रीप्ट देके और रात दिन तैयारी करवाने की जिम्मेदारी जगराम को दे केशव शहर आ गया था कुछ जरुरी खरीदारी करने ।उसने बैंक से अपनी जितनी जमा पूंजी थी वह खाली कर ली ,उसने कुछ सामान ख़रीदा ।
चार महीने की कलाकारों की लगन , मेहनत और केशव के जूनून ने मण्डली को फिर खड़ा कर दिया था ।पुरे शहर में एक बार फिर ' उत्सव नाटक मण्डली ' के पोस्टर छपे हुए थे ।जगराम के साथ दो सुंदर महिला डांसर भी थीं पोस्टर में जिनका आइटम सांग रखा गया था , पोस्टर में इन तीनो को प्रमुखता से छापा गया था ।
यह पहला नाटक केशव ने प्रमोशन के लिए रखा हुआ था , सभी की एंट्री फ्री थी ।जंहा नाटक चल रहा था वंही थोड़ी दूर पर एक बारात रुकी हुई थी जिसमे प्रोजक्टर से फ़िल्म दिखाई जा रही थी ।
नाटक के लिए ऊँचा और रंग बिरंगे फूलो पत्तियो से स्टेज सजा हुआ था , आगे रंगीन और आकर्षक रंगो युक्त पर्दा लगा हुआ था ।पर अब नाटक के प्रदर्शन में कुछ ख़ास बदलाव किये गए थे ,पंडाल के बीच में दो बड़ी बड़ी स्क्रीन्स लगी हुईं थी ।लाउडस्पीकर की जगह बड़े बड़े 30 हजार वॉट के 8 -10 स्पीकर रखे हुए थे जिनका कनेक्सन एक डी जे जैसे ऑपरेटर से जुड़ा हुआ था ।केशव खुद हैण्डी कैम लिए हुए बीच में खड़ा था वह जो भी शूट कर रहा था स्क्रीन्स पर दिख रहा था ।
नाटक शुरू हुआ , जैसे ही कैमरे से केशव ने नाटक को कवर किया वह स्क्रीन्स पर प्रदर्शित हुआ ,जो लोग अब तक बनी बनाई पिक्चर ही देखते थे स्क्रीन पर अब वे लाइव देख के अचंभा कर रहे थे , जब केशव लोगो पर कैमरे का फोकस करता तो वे स्क्रीन्स पर अपनी शक्ले देख रोमांचित हो उठते। नाटक के कलाकार तो थे ही मंझे हुए , थोड़ी ही देर में ऐसा शमा बंधा की हजारो की भीड़ उमड़ पड़ी नाटक देखने , स्पिकार्स का बेस लोगो को कलाकारों के साथ झूमने पर मजबूर कर दे रहा था दर्शको को ।
डिस्को लाइट्स इफेक्टस स्टेज को अद्भुत बना दे रहे थे , जैसा आज तक लोगो ने अपनी आँखों से नहीं देखा था ।देखा भी था तो सिर्फ टीवी में या फिल्मो में ।सारे आधुनिक तिकड़म भिड़ा दी थी केशव ने नाटक के लिए ।
जंहा बारत रुकी हुई थी वह सारे बाराती नाटक देखने बारात छोड़ पहुँच गए , बड़ी मुश्किल से लोग जरा सी देर के लिए खाना खाने जाते और फिर वापस आ के खड़े खड़े ही नाटक देखते ।
नाटक सुपरहिट रहा ,अगले दिन कसबे के लोकल न्यूज पेपर में केशव का सक्षात्कार छपा हुआ था ।अब उत्सव नाटक मण्डली पहले से ज्यादा व्यस्त और पॉपुलर हो चुकी थी , लोग अग्रिम राशि देके काफी महीने पहले बुक करवाने लगे थे ।उत्सव नाटक मण्डली का खोया रुतवा चौगुनी कीमत पर वापस आ रहा था ।
बस यंही तक थी कहानी ....
अच्छी कहानी !
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