Monday, 5 September 2016

मास्टर जी - कहानी

अभी मास्टर ओमप्रकाश घर में घुसे ही थे की उन्हें किसी के रोने की आवाज सुनाई दी , कमरे में जा के देखा तो श्रीमती जी सब्जी काटते हुए सुबक रही हैं ।
" क्या हुआ ? रो क्यों रही हो ?" उन्होंने बगल में लटकाये झोले को सोफे पर पटकते हुए पूछा ।

ओमप्रकाश जी की बात सुन सब्जी काटना छोड़ चाक़ू टेबल पर पटकते हुए श्रीमती जी गुस्से से बोलीं-
" रोऊँ नहीं तो क्या हंसु?मेरे तो करम ही फूट गए जो आप जैसे मास्टर  से ब्याहि .... दो कौड़ी का आदमी भी मेरी इज्जत नहीं करता ... हर कोई धमका देता है "
" क्या हुआ बताओ तो सही ? .... किसने बेज्जती कर दी तुम्हारी ? किस की हिम्मत हुई ?" ओमप्रकाश जी पत्नी की बात सुन थोडा उत्तेजित हो गए
" अरे वो है न .... नासपिटा ... सब्जी वाला ...नन्दू ... उसी ने बेज्जती की है " श्रीमती जी ने आंसू पोछते हुए कहा
" वो नन्दू? उसका तो लड़का मेरे विद्यालय में पढता है कक्षा आठ में .... साले की इतनी हिम्मत ... स्कूल से न निकलवा दिया उसके बच्चे को तो कहना " ओमप्रकाश जी अब पुरे गुस्से में थे ।

" अजी जब निकालना तो निकालना ... अभी उसने भरे बाजार में मेरी बेज्जती कर दी उसका क्या ?" यह कह श्रीमती जी फिर रोने लगी ।
" तू रो मत !!..... ठीक है जाता हूँ उसके पास तेरी बेज्जती का बदला लेता हूँ ....साले की इतनी हिम्मत की हमारी घर की औरत की बेज्जती करे "  मास्टर जी इतना कह गुस्से में बहार निकल गए साथ में अपने 15 वर्षीय लड़के को भी ले गएँ।

बाजार में पहुंच के ....


" क्यों रे दो कौड़ी के सब्जी वाला होके मेरी बीबी की बेज्जती करता है " ओमप्रकाश जी ने नन्दू का कॉलर पकड़ एक झापड़ रसीद कर दिया ।
" मास्टर साहब....मास्स्.... साब!मेरी बात सुनिए " गिड़गिड़ाता हुए  नन्दू  ने अपना कॉलर छुटाने का भरकस प्रयास किया ।
"क्या बात सुनू साले!!....अपने लौंडे के दाखिले के लिए मेरे पैरो में गिर रहा था उस दिन और आज मेरे ही घर वालो की बेज्जती..... तुझे नहीं छोड़ूंगा....तड़ाक!" ओमप्रकाश जी ने नन्दू को चांटा लगा दिया ।
"साहब!....बीबी जी ही हमें उल्टा सीधा बोलीं थी और दो किलो मटर मुफ़्त मांग रही थी ...गरीब आदमी हूँ साहब मुफ़्त कैसे देता " नन्दू ने गिड़गिड़ाते हुए सफाई दी ।
" तेरा गरीबपना तो मैं निकलूंगा जब तेरी बेटे का नाम कटेगा स्कूल से और ऐसा सर्टिफिकेट बनाऊंगा की कंही कंही दाखिला नहीं मिलेगा उसे " ओमप्रकाश जी ने एक थप्पड़ और रसीद कर दिया यह कह।

तभी एक आवाज ने उनको रोक दिया ।

"रुकिए साहब ! क्यों गरीब आदमी को मार रहे हैं ?... छोड़ दीजिये इसे " इस आवाज़ ने सम्मानीय भरे लहजे में उन से निवेदन किया ।

यह एक 28-29 साल का युवक था , पतला और सांवला सा देखने में बिलकुल साधारण ।

मास्टर साहब को यूँ उस युवक का टोकना अच्छा न लगा , वे नन्दू को छोड़ उसे पास आएं और बोले -
" क्यों छोड़ दूँ ?तू कंही का लॉट साहब है क्या .....चल अपना काम कर "
" आप छोड़ दीजिये उसे और शांत हो जाइए ...गरीब आदमी है " युवक ने बड़े ठंढे लहजे में कहा
युवक की बात सुन ओमप्रकाश जी का गुस्सा सातवें आसमान पर था " गरीब आदमी है .... हैं ... गरीब आदमी है .... तो तूने ठेका लिया हुआ सभी का यंहा " इतना कह ओमप्रकाश जी ने एक जोरदार तमाचा युवक के गाल पर भी जड़ दिया ।

पर यह क्या तमाचा खा युवक क्रोधित होने की वजाय मुस्कुरा दिया ।किन्तु अचानक भीड़ से एक लंबा तगड़ा आदमी निकला और उसने ओमप्रकाश जी को इतना जोर से थप्पड़ मारा की ओमप्रकाश जी चक्कर खा के गिर पड़े , उस आदमी ने तुरंत चाकू निकाल लिया और ओमप्रकाश जी की गर्दन से सटा दिया । चाकू इतना जोर से सटा हुआ था की एक हल्की सी रक्त की धार निकल गई ।

ओमप्रकाश जी ने देखा यह तो उन्हें याद आया की यह तो वही आदमी है जिसने भरी भीड़ में एक आदमी को चाकू मार के हत्या कर दी थी पिछले महीने ।किसी ने भी पुलिस में गवाही नहीं दी थी उसके खिलाफ , बड़े आराम से यह उस व्यक्ति की हत्या कर वंहा से चला गया था ।यह तो माना हुआ  बदमाश है , ओमप्रकाश जी डर से थर थर काँपने लगे ।काटो तो खून नहीं वाली हालत हो गई थी डर से उनकी ।
इतने में दो लोग और आ गए , उनके हाथ में रिवाल्वर थी आते उन्होंने ओमप्रकाश पर तान दी ।ओम प्रकाश ने देखा तो उनका लड़का कोने में छुपा कॉप रहा था भय से , आज मौत निश्चित लग रही थी ओमप्रकाश जी को अपनी ।
इन्होंने पचासियो गाली अपनी पत्नी को दी मन मन में जिसके बहकावे में आ आज उनकी जान जाने वाली थी ।

" छोड़ दो इन्हें "अचानक सांवले से युवक ने आदेशात्मक आवाज में कहा ।
उसकी बात सुन यंत्रचलित मनुष्य भाँति उन लोगो ने ओमप्रकाश को छोड़ दिया , गर्दन से चाकू हट चुका था ।

"पाय लागू मास्टर जी " उस सांवले युवक ने ओमप्रकाश जी के पैर छूते हुए कहा ।
ओमप्रकाश जी की सहसा समझ नहीं आया की यह क्या हुआ ?वे तो उस युवक को पहचानते नहीं ।

" मैं लालजीत हूँ मास्टर जी , धनीराम मोची का बेटा .... याद है आपको कई साल पहले आपका ही शिष्य हुआ करता था "

" धनीराम मोची का लड़का .... लल्ला ?" मास्टर जी ने दिमाग पर बहुत जोर देके याद किया

लल्ला नाम से याद आया की तक़रीबन 18-20 साल पहले की बात रही होगी । धनीराम ने ओमप्रकाश जी से जूते के पैसे मांग लिए थे तो उन्होंने उसके पढाई में होनहार लड़के को स्कूल से ही निकलवा दिया था ।

" याद आया मास्टर जी ? मैं वही लल्ला हूँ " मुस्कुराते हुए लल्ला ने ओमप्रकाश जी से पूछा ।
"आपने मुझे स्कूल से निकाल दिया ऐसा केरेक्टर सर्टिफिकेट मेरा आपने बनाया की उसके बाद मेरा कंही दाखिला न हो पाया..... फिर हालात में मुझे चोर लुटेरा और हत्यारा बना दिया .... ये सब मेरे ही गुर्गे हैं .... कई सालो से पुलिस ने तड़ीपार किया हुआ था आज ही वापस आया हूँ "

लल्ला कहे जा रहा था और ओमप्रकाश जी जड़वत हुए सुने जा रहे थे , मानो लल्ला की एक एक शब्द उनके कानो में गूंज रहे हों ।

"मैं आपका कभी शिष्य रहा हूँ इसलिए आपके प्रति सम्मान ही मेरे दिल में .... आपको कोई कुछ नहीं कह सकता .... आप चाहें तो मुझे या नन्दू को मार लिजिये किन्तु उसके बेटे को स्कूल से न निकलयेगा .... मैं नहीं चाहता हूँ की फिर कोई लल्ला बने " इतना कह लल्ला ओमप्रकाश जी के सामने हाथ जोड़ के खड़ा हो गया ।

ओमप्रकाश जी के उपर जैसे हजारो ठंढे पानी के घड़े उड़ेल दिए गए हों ।उनके कानो में जैसे जोर जोर से हवा टकरा के सायं सायं की सीटी बजा रही हो ।


उनकी आँखों से झर झर आंसुओ के रूप में पश्चाताप सैलाब उमड़ पड़ा .... उन्होंने आगे बढ़ के अपने शिष्य को गले लगा लिया ।

बस यंही तक थी कहानी ...

फोटो साभार गूगल

8 comments:

  1. बहुत अच्छी और शिक्षाप्रद कहानी !

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    1. आभार सिंघल साहब

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    2. आभार सिंघल साहब

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  2. शानदार कहानी

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  3. शानदार कहानी

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  4. समाज का एक छुपा हुआ पहलू जो वास्तव में कहीं न कहीं ज़िम्मेदार है असामाजिक तत्वों के निर्माण में।

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  5. समाज का एक छुपा हुआ पहलू जो वास्तव में कहीं न कहीं ज़िम्मेदार है असामाजिक तत्वों के निर्माण में।

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